प्रयागराज की बाढ़ में ढहा मचान पर मचानवाले बाबा की अखंड ज्योति नहीं बुझी! देवरहा बाबा के शिष्य के यहां हुआ चमत्कार
प्रयागराज इस समय भीषण बाढ़ की चपेट में है. गंगा और यमुना का पानी शहर के निचले इलाकों को डुबो चुका है. लेकिन इस संकट की घड़ी में भी एक मठ ऐसा है जो डूबकर भी डिगा नहीं.संगम क्षेत्र से सटे झूंसी पुल के नीचे स्थित एक पंडाल या यूं कहें कि एक मचाननुमा मठ आज भी अखंड ज्योति को प्रज्वलित किए हुए है.
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प्रयागराज इस समय भीषण बाढ़ की चपेट में है. गंगा और यमुना का पानी शहर के निचले इलाकों को डुबो चुका है. मेला क्षेत्र से लेकर घाट, श्मशान, मंदिर, आश्रम सभी जलमग्न हो चुके हैं. लेकिन इस संकट की घड़ी में भी एक मठ ऐसा है जो डूबकर भी डिगा नहीं.संगम क्षेत्र से सटे झूंसी पुल के नीचे स्थित एक पंडाल या यूं कहें कि एक मचाननुमा मठ आज भी अखंड ज्योति को प्रज्वलित किए हुए है. ऐसा कहा जाता है कि ये ज्योति कभी बुझती नहीं है फिर चाहे कोई आंधी आए, तूफान आए या फिर बाढ़.
अखंड आस्था का प्रतीक मचान पर बना पंडाल
हर साल माघ मेला, अर्धकुंभ और महाकुंभ के दौरान संगम क्षेत्र में साधु-संतों के हजारों पंडाल, आश्रम, शिविर लगाते हैं. लेकिन मेला खत्म होते ही सारे पंडाल हट जाते हैं. संत अपने-अपने स्थानों को लौट जाते हैं. लेकिन झूंसी पुल के नीचे बना यह एकमात्र ऐसा पंडाल है जो साल भर वहीं मौजूद रहता है. तकरीबन 10 फीट ऊंचे चबूतरे पर बना झोपड़ीनुमा मचान और 80 फीट ऊंचा लोहे का खंभा जिसके ऊपर शीशे से ढका हुआ मंच और उसमें जलती अखंड ज्योति यह दृश्य अब प्रयागराज की बाढ़ में लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है. लेकिन इस बार बाढ़ ने मचान को भी ध्वस्त कर दिया. लेकिन अभी भी अखंड ज्योति अपने खंभे के साथ बाढ़ पानी में बरकरार है.
बाढ़ में भी नहीं बुझी ज्योति
जब पूरा मेला क्षेत्र बाढ़ के पानी में डूब गया तब भी यह मठ डटा रहा. थोड़ा पंडाल तो टूटा गया लेकिन ज्योति नहीं बूझी. यहां तक कि जब रास्ते बंद हो गए तब भी नाव से आकर अखंड ज्योति को जलाने का काम जारी रहा है. इस पूरे मठ की देखरेख कर रहे हैं देवरहा बाबा के शिष्य रामदास महाराज हैं, जिन्हें श्रद्धालु ‘मचान वाले बाबा’ के नाम से भी जानते हैं.
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नाव से पहुंचकर जलाते हैं घी की अखंड ज्योति
रामदास महाराज बीते दो दशकों से इस अखंड ज्योति की सेवा में लगे हैं. देसी घी से ज्योति को प्रज्वलित करते हैं. बाढ़ के दिनों में जब चारों ओर पानी ही पानी होता है तब भी वह नाव से इस पवित्र स्थल तक पहुंचते हैं. हालांकि जब ज्योति को जलाया जाता है तो इस बात का ख्याल रखा जाता है कि ये कई दिनों तक जलती रहे. मचान वाले बाबा का कहना है कि 'यह ज्योति देश के कल्याण, धर्म की रक्षा और मानव कल्याण के लिए जलाई जाती है. चाहे कैसी भी आपदा आए यह ज्योति बुझनी नहीं चाहिए.'
मेला में श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र
मेला के दौरान रामदास महाराज का मचाननुमा आश्रम विशेष आकर्षण का केंद्र होता है. श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं दर्शन करते हैं और ज्योति की महिमा सुनते हैं. रामदास महाराज अक्सर मचान पर चढ़ने के बाद कई दिनों तक नीचे नहीं आते. ऊपर ही पूजा-पाठ ध्यान करते हैं और अखंड ज्योति की सेवा में लीन रहते हैं.
क्यों है ये पंडाल अनोखा ?
यह संगम क्षेत्र का इकलौता स्थायी पंडाल है जो पूरे साल वहीं रहता है. बाढ़, बारिश, गर्मी हर मौसम झेलने के लिए इसकी विशेष उंचाई और संरचना तैयार की गई है. 80 फीट ऊंचे खंभे पर शीशे से ढके मंच में जलती अखंड ज्योति देश में अनोखी मानी जाती है. पंडाल के रखरखाव और सेवा के लिए कोई सरकारी या संस्था आधारित सहायता नहीं है. सिर्फ रामदास महाराज और उनके शिष्यों की सेवा भावना से ये चल रहा है. जब पूरी संगम नगरी जल संकट से जूझ रही है तो ऐसे में झूसी का यह अखंड पंडाल और उसकी जलती ज्योति न सिर्फ एक चमत्कारी दृश्य है बल्कि यह बताती है कि सच्ची श्रद्धा और सेवा में कैसी शक्ति होती है.