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बिकरू कांड: न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट में भी अनंत देव तिवारी समेत 8 पुलिसकर्मी दोषी

यूपी तक

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कानपुर के चर्चित बिकरू कांड में गठित न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट में निलंबित डीआईजी अनंत देव तिवारी समेत 8 पुलिसकर्मी दोषी पाए गए हैं. न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट में अनंत देव तिवारी के साथ एसपी ग्रामीण रहे प्रद्युमन सिंह, तत्कालीन सीओ कैंट आरके चतुर्वेदी, सीओ एलआईयू सूक्ष्म प्रकाश को भी दोषी ठहराया गया है.

जांच रिपोर्ट में अनंत देव तिवारी के अलावा एसएसपी दिनेश कुमार पी, एडिशनल एसपी बृजेश श्रीवास्तव, सीओ बिल्लौर नंदलाल और पासपोर्ट नोडल अफसर अमित कुमार के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई है. बता दें कि इससे पहले एसआईटी भी कानपुर में तैनात रहे अफसरों और पुलिसकर्मियों की आरोपियों से मिलीभगत और लापरवाही के आरोपों में दोषी ठहरा चुकी है.

न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा?

रिटायर्ड जस्टिस बीएस चौहान शशिकांत अग्रवाल और पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता की 3 सदस्यीय आयोग ने इस मामले में 797 पेज की अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपते हुए 8 पुलिसकर्मियों को इस मामले का दोषी ठहराया है.

न्यायिक आयोग ने अपनी जांच में साफ कहा कि इन अफसरों की लापरवाही के चलते ही विकास दुबे और उसके गैंग पर कभी कार्रवाई नहीं हो सकी. 1997 में बने विकास दुबे की राइफल का लाइसेंस 2004 में कैंसिल हो गया, लेकिन लाइसेंस कैंसिल होने के बावजूद पुलिस की तरफ से कभी जांच नहीं हुई कि उसका हथियार जमा हुआ या नहीं. 16 साल तक विकास दुबे अपनी लाइसेंसी राइफल को रखे रहा और 2 जुलाई 2020 को उसने इसी राइफल से 8 पुलिसकर्मियों की जान ले ली.

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न्यायिक आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने साल 2019 में लाइसेंस के सत्यापन का अभियान भी चलाया, लेकिन इस अभियान में भी विकास दुबे का कागजी सत्यापन तो हुआ लेकिन अफसरों ने कभी मौके पर जाकर भौतिक जांच नहीं की. इतना ही नही साल 2017 में विकास दुबे को यूपी एसटीएफ ने लखनऊ के कृष्णानगर से जब पकड़ा तो उसके पास से भाई दीप प्रकाश दुबे की लाइसेंसी राइफल बरामद हुई थी. उस वक्त तक भी कानपुर पुलिस ने विकास दुबे के पास से बरामद हुए भाई की राइफल पर लाइसेंस कैंसिलेशन की कार्यवाही नहीं की.

आयोग ने करीब 1200 पेज के दस्तावेजी सबूतों को इकट्ठा करने के बाद माना कि अनंत देव तिवारी ने विकास दुबे के खिलाफ कभी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की. विकास दुबे इलाके का हिस्ट्रीशीटर होने के बावजूद जिले के टॉप टेन अपराधियों में शामिल नहीं किया गया. विकास दुबे के भाई और भाई की पत्नी को लगातार लाइसेंस मिलते रहे. विकास दुबे पर 64 मुकदमे दर्ज हैं, जिनमें से 21 केस की फाइलें गायब हैं. न्यायिक आयोग को तक शिवली, कल्याणपुर, चौबेपुर और बिल्हौर थाने में दर्ज इन मुकदमों की फाइल नहीं मिली. ऐसे में क्राइम मीटिंग में विकास दुबे पर दर्ज मुकदमों में क्या हो रहा है किसी अफसर ने कभी नहीं पूछा.

न्यायिक आयोग ने एसपी ग्रामीण रहे प्रद्युमन सिंह को मार्च 2020 में विकास दुबे पर ट्रैक्टर निकालने को लेकर मारपीट की दर्ज एफआईआर में कार्रवाई नहीं करने का दोषी माना. आयोग ने साफ कहा कि हाई कोर्ट से जमानत पर चल रहे विकास दुबे पर इस मुकदमे के दर्ज होने के बाद जमानत रद्द करवाने की कोशिश नहीं की गई.

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न्यायिक आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, सीओ एलआईयू रहे सूक्ष्म प्रकाश को विकास दुबे गैंग की दबंगई गुंडई और उसके द्वारा इलाके में अर्जित की जा रही संपत्ति पर कभी कोई रिपोर्ट अफसरों को नहीं दी गई, ना ही एलआईयू ने बताया कि विकास दुबे के पास कितनी फायर पावर है गैंग में कौन-कौन लोग शामिल हैं. वहीं, दूसरी तरफ सीओ कैंट रहे आरके चतुर्वेदी ने विकास दुबे और पुलिसकर्मियों के गठजोड़ से जुआ खेलने के मामले में क्लीन चिट दे दी थी. दरअसल, डिप्टी एसपी देवेंद्र मिश्रा ने एसएसपी अनंत देव तिवारी से शिकायत की कि एसओ चौबेपुर विनय तिवारी विकास दुबे से मिलकर इलाके में जुआ खिलवाता है. मामले की जांच सीओ कैंट आरके चतुर्वेदी को दी गई. जांच के बाद आरके चतुर्वेदी ने इस मामले में विनय तिवारी को क्लीन चिट दे दी थी.

इस मामले में दोषी पाए गए नोडल पासपोर्ट अधिकारी अमित कुमार पर आयोग ने विकास दुबे के फाइनेंसर कहे जाने वाले जय बाजपेई पर मुकदमा दर्ज होने के बाद भी फर्जी पते पर पासपोर्ट जारी करने का दोषी बताया है. जिस पर आयोग ने अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की है.

न्यायिक जांच आयोग ने चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ लघु दंड की भी सिफारिश की है, जिसमें तत्कालीन एसएसपी दिनेश कुमार पी, एसपी ग्रामीण बृजेश कुमार श्रीवास्तव, सीओ बिल्लौर नंदलाल सिंह व नोडल पासपोर्ट अधिकारी अमित कुमार शामिल हैं. बता दें कि न्यायिक आयोग की जांच में लघु दंड के दोषी पाए गए पुलिसकर्मियों को मिसकंडक्ट, डिमोशन या वेतन वृद्धि पर रोक की सजा सुनाई जा सकती है.

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वृहद दंड के दोषी पाए गए डीआईजी अनंत देव तिवारी समेत 4 पुलिस अफसरों के लिए बड़ी मुश्किल है. वृहद दंड के तहत इन अफसरों को पुलिस विभाग से टर्मिनेट, सस्पेंड करने के साथ-साथ न्यूनतम वेतनमान देने की भी सजा सुनाई जा सकती है. फिलहाल इस मामले में आईजी रेंज लखनऊ लक्ष्मी सिंह सुनवाई कर रही हैं, जिसमें एसपी रूरल प्रद्युमन सिंह, सीओ कैंट आरके चतुर्वेदी और सीओ एलआईयू सूक्ष्म प्रकाश अपना बयान भी दर्ज करवा चुके हैं. सभी दोषी पाए गए पुलिसकर्मियों के बयान दर्ज होने के बाद सुनवाई कर रही लक्ष्मी सिंह सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी और उसके बाद पुलिसकर्मियों पर क्या कार्रवाई होगी,शासन यह तय करेगा.

न्यायिक आयोग की जांच से पहले एसआईटी ने की थी जांच

2 जुलाई 2020 को कानपुर के बिकरू कांड ने उत्तर प्रदेश की पुलिसिंग पर सवाल खड़े कर दिए थे. विकास दुबे गैंग का आपराधिक साम्राज्य सामने आने के बाद सरकार ने पहले एसआईटी जांच के आदेश दिए और फिर न्यायिक आयोग से भी जांच करवाई. गठित की गई एसआईटी को 1990 से 2020 के बीच विकास दुबे गैंग कैसे पनपा, किस विभाग में कितनी लापरवाही की, अपराधिक इतिहास के साथ-साथ जमीन कब्जा, अवैध संपत्ति जुटाने की जांच करवाई गई. बीते नवंबर महीने में एसआईटी जांच पूरी हुई, 100 से अधिक पुलिस प्रशासन व राजस्व के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की गई.

एसआईटी की रिपोर्ट आने के बाद विकास दुबे एनकाउंटर पर सवाल खड़े किए जाने लगे. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा तो सरकार ने विकास दुबे और उसके गैंग मेम्बर के एनकाउंटर की जांच के लिए न्यायिक आयोग गठित किया. सरकार ने तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग गठित कर एनकाउंटर के साथ-साथ विकास दुबे गैंग पर कार्रवाई में पुलिस अफसरों की भूमिका की भी जांच की.

(इनपुट्स- समर्थ श्रीवास्तव और संतोष कुमार)

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