महाकुंभ के 3 अमृत स्नान तो हो गए, अब नागा साधु क्या करने की तैयारी में हैं? उनका पूरा गुप्त प्लान जान लीजिए

महाकुंभ में तीनों अमृत स्नान—मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और वसंत पंचमी—संपन्न हो चुके हैं. अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि नागा संन्यासी आगे कहां जाएंगे और उनकी दिनचर्या कैसी होगी? इस बारे में UP Tak ने निरंजनी अखाड़े के नागा साधु दिगंबर जी से खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने आगे की पूरी योजना साझा की.

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Mahakumbh Naga Sadhu
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Maha Kumbh news: महाकुंभ में तीनों अमृत स्नान—मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और वसंत पंचमी—संपन्न हो चुके हैं. अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि नागा संन्यासी आगे कहां जाएंगे और उनकी दिनचर्या कैसी होगी? इस बारे में UP Tak ने निरंजनी अखाड़े के नागा साधु दिगंबर जी से खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने आगे की पूरी योजना साझा की.

गुरु भाइयों के स्नान के बाद काशी की ओर प्रस्थान

नागा साधुओं के लिए अमृत स्नान के बाद भी एक विशेष स्नान शेष रहता है, जिसे "गुरु भाइयों का स्नान" कहा जाता है. यह स्नान त्रिवेणी संगम में संपन्न किया जाता है. दिगंबर जी बताते हैं,
"हमारे गुरु भाइयों का एक और स्नान होता है, जिसे संपन्न करने के बाद हम अखाड़े की छावनी में वापस लौटते हैं. इसके बाद हमारे पंच परमेश्वर का चुनाव होता है, जिसमें अखाड़े के नए मठाधीशों और प्रमुख संतों का चयन किया जाता है. सात फरवरी को यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद सभी नागा संन्यासी काशी के लिए प्रस्थान करेंगे."

काशी में शिवरात्रि और मसान की होली

महाकुंभ समाप्त होने के बाद नागा साधु वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन और शिवरात्रि उत्सव में भाग लेते हैं. दिगंबर जी बताते हैं कि सभी अखाड़ों की जमातें काशी में एकत्रित होंगी और मशान की होली खेलेंगी. यह विशेष होली महादेव के अवतारों में से एक "मशाननाथ" को समर्पित होती है और नागा संन्यासियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है.

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इसके बाद कहां जाएंगे नागा साधु?

नागा संन्यासी सिर्फ प्रयागराज और काशी तक सीमित नहीं रहते. महाकुंभ के बाद वे अलग-अलग दिशाओं में प्रस्थान कर जाते हैं. दिगंबर जी के अनुसार, "हम लोग पूरे भारत में रहते हैं. कुछ हरिद्वार चले जाते हैं, तो कुछ हिमालय, केदारनाथ, बद्रीनाथ और नर्मदा खंड की ओर निकल जाते हैं. कुछ नागा नेपाल तक जाते हैं, तो कुछ जंगलों और गुफाओं में तपस्या करने के लिए प्रस्थान करते हैं. वहीं, कुछ साधु अखाड़ों की सेवा में तैनात हो जाते हैं और सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपने-अपने स्थानों पर तपस्या और धर्म कार्यों में जुट जाते हैं."

नागा साधुओं का ऐतिहासिक महत्व

नागा साधु केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए नहीं जाने जाते, बल्कि इनका ऐतिहासिक महत्व भी है. ये संन्यासी मुगलों और ब्रिटिश शासन के दौरान सनातन धर्म की रक्षा के लिए युद्ध में भी उतरे थे. तलवार, त्रिशूल, भाला और धनुष जैसे अस्त्र-शस्त्र चलाने की विधिवत शिक्षा इन्हें दी जाती है. यही कारण है कि इन्हें सनातन धर्म के योद्धा संन्यासी भी कहा जाता है.

रुद्राक्ष और नागा संन्यासियों की परंपराएं

नागा साधु हमेशा अपने शरीर पर रुद्राक्ष धारण किए रहते हैं. दिगंबर जी बताते हैं, "हमारे पास सवा लाख रुद्राक्ष की माला है, जो हमारे आध्यात्मिक ऊर्जा केंद्रों को जाग्रत रखने का काम करती है. यह हमारी साधना का हिस्सा है और हमें शक्ति प्रदान करती है."

महाकुंभ के तीनों अमृत स्नानों के बाद नागा संन्यासी अब काशी की ओर प्रस्थान करेंगे. वहां वे शिवरात्रि का पर्व मनाने के बाद मसान की होली खेलेंगे और फिर अपने-अपने आश्रमों, अखाड़ों और तपस्या स्थलों की ओर लौट जाएंगे. कुछ हरिद्वार और हिमालय की ओर प्रस्थान करेंगे, तो कुछ जंगलों और गुफाओं में जाकर ध्यान और तपस्या करेंगे. नागा संन्यासियों की यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है, जो सनातन धर्म की रक्षा और आध्यात्मिक साधना का प्रतीक मानी जाती है.

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