74 से 84 करोड़, फिर भी अधूरा...लखनऊ के इस ओवरब्रिज के ना बनने से लाखों लोग रोज हो रहे परेशान 

Lucknow News: लखनऊ में एक ओवरब्रिज को लोगों की परेशानी दूर करने के लिए बनाया जा रहा था. मगर अब ये ओवरब्रिज लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है. जानें क्या है वो वजह जिसकी वजह से ये ओवरब्रिज नहीं बन पा रहा.

Lucknow News

अंकित मिश्रा

• 06:23 PM • 19 Jun 2025

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Lucknow News: लखनऊ में एक अधूरा ओवरब्रिज, जिसे लोगों की सुविधा के लिए बनाया जा रहा था, अब लाखों लोगों के लिए बड़ी परेशानी का कारण बन गया है. इस ब्रिज के कारण हर दिन 5 लाख से ज़्यादा लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. स्कूल जाने वाले बच्चों से लेकर अस्पताल जाने वाले मरीज तक, सभी को रेलवे फाटक पर घंटों इंतजार करना पड़ता है. जब ट्रेनें आती हैं, तो पूरा इलाका रुक जाता है, और लोग अपनी जान जोखिम में डालकर रेल की पटरियां पार करने को मजबूर होते हैं. 

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क्या है इस अधूरे ब्रिज की कहानी?

लखनऊ-कानपुर रेल सेक्शन पर क्रॉसिंग संख्या 4 पर कृष्णानगर को केसरीखेड़ा से जोड़ने के लिए दो लेन का यह ओवरब्रिज बनाया जा रहा है. इसे 1 फरवरी 2024 को शुरू किया गया था. इस प्रोजेक्ट की शुरुआती लागत 74.48 करोड़ रुपये थी, जो अब बढ़कर 84 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है. ब्रिज का काम जमीन से शुरू होकर दीवारों तक पहुंचा, लेकिन एक कॉम्प्लेक्स के कारण वहीं रुक गया, जो इस पुल के रास्ते में आ रहा है. 

भूमि अधिग्रहण बना सबसे बड़ी बाधा

उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के अनुसार, यह कॉम्प्लेक्स ग्रीन बेल्ट के तहत आता है और इसे हटाना जरूरी है. लेकिन जिस जमीन पर यह कॉम्प्लेक्स बना है, उसके मालिकों की सहमति नहीं मिल पा रही है. अब यह मामला भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन और मुआवजे के कानून में फंस गया है. यह कानून प्रक्रिया में पारदर्शिता तो लाता है, लेकिन काम की गति को धीमा कर देता है. 

स्थानीय लोगों की मुश्किलें

महाराजापुरम, गंगाखेड़ा, पंडितखेड़ा जैसे इलाकों के लोग रोजाना इसी अधूरे पुल के नीचे अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं. यहां ट्रैफिक जाम एक आम बात हो गई है, और जब दो-तीन ट्रेनें एक साथ आ जाती हैं, तो हालात और भी बदतर हो जाते हैं. 

जानकारों का मानना है कि यह कोई तकनीकी या पैसों से जुड़ी समस्या नहीं है, बल्कि यह इच्छाशक्ति की कमी और सिस्टम की सुस्ती का नतीजा है. ओवरब्रिज का काम अधूरा है, लेकिन लोगों की मुश्किलें पूरी हैं. सवाल यह है कि क्या यह जमीन का विवाद कभी सुलझेगा और क्या इन इलाकों के लोगों को इस रोजमर्रा की परेशानी से आजादी मिल पाएगी.

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