UP: रिपोर्ट का दावा- BSP के वोटों से BJP को मिली दोबारा सत्ता, केशव मौर्य इस वजह से हारे

शिल्पी सेन

ADVERTISEMENT

UPTAK
social share
google news

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में बीजेपी को दोबारा जीत दिलाने में बीएसपी खुद बीजेपी के सहयोगियों निषाद पार्टी और अपना दल से ज्यादा मददगार रही हैं. वहीं किसान आंदोलन और लखीमपुर खीरी हिंसा से बीजेपी को कोई खास नुकसान नहीं हुआ. विधानसभा चुनाव की समीक्षा में ये बातें सामने आई हैं. यूपी बीजेपी ने चुनाव के नतीजों पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें इसके अलावा भी कई ऐसी बातें हैं, जिससे पार्टी को नतीजों की तह तक पहुंचने में मदद मिलेगी और आगे 2024 के लिए रोड मैप तैयार करने में वो बातें अहम होंगी.

बीजेपी के बारे में कहा जाता है कि पार्टी एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव की तैयारी में जुट जाती है. विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने नतीजों की समीक्षा शुरू की तो उन बातों को जानने की कोशिश की है, जिसकी वजह से पार्टी को उन सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. जानकारी के अनुसार, पार्टी ने एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को भेजा है.

M-Y फैक्टर को कमजोर करने में बीएसपी की भूमिका

नतीजों की समीक्षा में यूं तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं, पर सबसे खास बात ये है कि बीएसपी की चुनावी स्ट्रैटेजी और प्रत्याशियों के चयन ने समाजवादी पार्टी के परम्परागत मुस्लिम-यादव फैक्टर को कुछ सीटों पर कमजोर कर दिया.

दरअसल, जब प्रत्याशियों की घोषणा हो रही थी उसी समय बीएसपी के मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या चर्चा में आ गई थी. बहुजन समाज पार्टी ने 122 सीटों पर ऐसे प्रत्याशी मैदान में उतारे, जो उस सीट पर सपा के प्रत्याशी की जाति के ही थे. ऐसे प्रत्याशियों में 91 मुस्लिम कैंडिडेट, जबकि 15 यादव उम्मीदवार थे.

यह भी पढ़ें...

ADVERTISEMENT

बीएसपी के ऐसे प्रत्याशियों की वजह से वोट बंटा और इसका लाभ बीजेपी को मिला. ऐसे ज्यादातर प्रत्याशी सीटों पर थे जहां मुस्लिम और यादव वोट मिलने से समाजवादी पार्टी को लाभ होने की सम्भावना थी. अगर इन सीटों के नतीजों पर नजर डालें तो इसमें बीजेपी को फ़ायदा साफ नजर आ रहा है. 122 सीटों में 68 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की. इसके बावजूद समाजवादी पार्टी के कोर वोटर मुस्लिम और यादव के सपा का साथ देने की बात भी स्पष्ट है. इसका उदाहरण मुरादाबाद मंडल है.

मुरादाबाद मंडल में समाजवादी पार्टी के M-Y फैक्टर की वजह से बीजेपी को नुकसान हुआ और सपा गठबंधन को जीत मिली. ऐसे में अगर इन सीटों पर बीएसपी सपा के इस समीकरण को न बिगाड़ती तो नतीजे बहुत चौंकाने वाले होते.

इसके अलावा बीएसपी के कोर वोटरों ने भी बीजेपी का साथ दिया. ये वही वोटर हैं जिनके बारे में पहले ही इस बात का आकलन हो चुका है कि ‘लाभार्थी’ वर्ग के रूप में एक नया वोटरों का वर्ग बीजेपी के साथ आया, जिनको सरकार की योजनाओं से सबसे ज्यादा लाभ मिला है.

ADVERTISEMENT

अखिलेश यादव-जयंत चौधरी की केमिस्ट्री ज्यादा प्रभावी नहीं

चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी गठबंधन को सबसे ज्यादा उम्मीदें पश्चिमी यूपी से थीं क्योंकि यहीं वो सीटें थीं जहां किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा प्रभाव था. जयंत चौधरी ने भी आरएलडी के प्रभाव वाले इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा सम्पर्क किया.

आरएलडी ने इस क्षेत्र में सपा गठबंधन के तहत 30 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि सिर्फ 8 में उसे जीत दर्ज करने में सफलता मिली. इस क्षेत्रों में जाट प्रत्याशियों के नतीजों की समीक्षा भी महत्वपूर्ण है. बीजेपी ने 17 जाट प्रत्याशियों को टिकट दिया था, जिसमें से 10 प्रत्याशी जीते. वहीं आरएलडी ने 10 प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें सिर्फ 4 जीते.

यहां समाजवादी पार्टी के जाट प्रत्याशियों की चर्चा करना भी जरूरी है. सपा ने 7 जाट प्रत्याशियों को टिकट दिया था, उसमें से 3 को जीत मिली. समीक्षा में ये बात साफ है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के जाट वोटरों में अलग अलग रुझान काम कर रहा था. इसमें ग्रामीण क्षेत्र के बात वोटरों ने एसपी-आरएलडी का साथ दिया, जबकि शहरी जाट वोटर बीजेपी के साथ रहे.

ADVERTISEMENT

जाहिर है किसान आंदोलन का असर पश्चिमी यूपी की इन सीटों कर बहुत ज्यादा नहीं रहा. वहीं लखीमपुर कांड से भी बीजेपी को वोट के मामले में नुकसान नहीं दिखा और विपक्ष और किसान संगठनों के प्रचार के बावजूद पार्टी ने लखीमपुर की सभी सीटें जीत लीं.

सहयोगी निषाद पार्टी और अपना दल के वोट बैंक का लाभ नहीं

नतीजों की इस विस्तृत समीक्षा का एक सबसे रोचक पहलू ये भी है कि बीजेपी के अपने सहयोगी निषाद पार्टी और अपना दल के प्रभाव के क्षेत्रों में इनके कोर वोट बैंक ने बीजेपी का पूरी तरह से साथ नहीं दिया.

डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के सिराथू विधानसभा सीट से सपा की पल्लवी पटेल से पराजय मिली. इसके पीछे भी काफी हद तक इसी फैक्टर ने काम किया. ऐसी करीब एक दर्जन सीटें हैं, जहां कुर्मी वोट बैंक प्रभावी है. अपना दल के प्रभाव वाली इन सीटों कर बीजेपी को कोई खास लाभ नहीं हुआ. यानि बीजेपी का प्रत्याशी खड़ा होने पर उनको अपना दल का वोट ट्रांसफर नहीं हुआ, जबकि जिन सीटों पर अपना दल के प्रत्याशी खड़े थे वहां उनको उस वोट का लाभ मिला.

यही बात निषाद पार्टी के प्रभाव वाली पूर्वांचल की सीटों पर भी हुआ. इन सीटों पर निषाद पार्टी के प्रत्याशियों को तो उनके कोर वोट बैंक का लाभ मिला, पर बीजेपी को वो वोट नहीं मिले. मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़ में समाजवादी पार्टी को यहां मुस्लिम यादव वोट मिले, जबकि निषाद, कुर्मी, राजभर, पाल, शाक्य जैसे वोट बीजेपी को नहीं मिले. यही वजह रही कि यहां बीजेपी का प्रदर्शन प्रभावित हुआ. बीजेपी के अपने राजभर नेता यहां वोट दिलाने में नाकाम रहे.

एंटी इनकंबेंसी का खास असर नहीं

शुरू में बड़े पैमाने पर टिकट बदलने की चर्चा के बाद बीजेपी ने 2017 में जीत दर्ज करने वाले 214 विधायकों को टिकट दिया था. उनमें से 170 विधायक जीते. इस बात से इस रणनीति पर मुहर लगी कि एक साथ बहुत बड़ी संख्या में टिकट बदलने से पार्टी को नए प्रत्याशियों के लिए जमीन तैयार करनी पड़ती.

समीक्षा में ये बात भी सामने आयी है कि बीजेपी के मुकाबले सपा को पोस्टल वोट्स ज्यादा मिले. 4.42 में से 2.25 लाख पोस्टल वोट एसपी गठबंधन को मिले, जबकि बीजेपी+ को सिर्फ 1.48 लाख पोस्टल बैलट वोट मिले.

    Main news
    follow whatsapp

    ADVERTISEMENT