मैनपुरी जीत के बाद बदलने लगे समीकरण, सपा की साइकिल से उतरी पार्टियां फिर सवारी को तैयार

भाषा

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मैनपुरी संसदीय उपचुनाव में डिंपल यादव की जीत और अखिलेश यादव व शिवपाल यादव के बीच घनिष्ठता के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) के असंतुष्टों और पूर्व सहयोगियों को राज्य के मुख्य विपक्षी दल में एक बार फिर संभावनाएं दिखने लगी हैं. ऐसे कयास भी लगाए जा रहे हैं कि सपा यदि उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनावों में ठीक-ठाक प्रदर्शन करती है तो वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले कुछ गैर भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) दल पार्टी के पीछे लामबंद हो सकते हैं.

मैनपुरी उपचुनाव में डिंपल की जबरदस्त जीत के बाद शुक्रवार को बदायूं के पूर्व विधायक आबिद रजा जहां पार्टी में दोबारा शामिल हो गए, वहीं सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने सपा के प्रति अपने तेवर में नरमी के संकेत देते हुए कहा, “शिवपाल सिंह यादव पहल करेंगे तो हमारी सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से फिर से बातचीत हो सकती है.

राजनीतिक विश्लेषक और शिक्षक विपिन बिहारी श्रीवास्तव ने कहा कि मैनपुरी उपचुनाव और यादव परिवार की एकजुटता ने भाजपा के समानांतर भविष्य तलाशने वालों की उम्मीद जगा दी है और अगर सपा ने निकाय चुनावों में ठीक-ठाक प्रदर्शन किया तो लोकसभा चुनावों के लिए छोटे दल फिर सपा के साथ आने को आतुर होंगे. उन्होंने कहा कि अखिलेश और शिवपाल की निकटता को निकाय चुनाव की कसौटी पर खरा उतरना होगा और इस चुनाव के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव की भी दिशा तय हो जाएगी.

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गौरतलब है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा, महान दल, अपना दल (कमेरावादी) और जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) जैसे छोटे दलों ने सपा नीत गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था. अपना दल (कमेरावादी) को छोड़कर इनमें से बाकी सभी दलों ने विधानसभा चुनाव के बाद सपा से दूरी बना ली थी, लेकिन मैनपुरी में सपा की जीत के बाद इन दलों में एक बार फिर हलचल बढ़ गई है.

दस अक्टूबर 2022 को सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में डिंपल ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी एवं भाजपा प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य को 2.88 लाख से अधिक मतों से हराया. 2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम ने मैनपुरी से करीब 90 हजार मतों के अंतर से चुनाव जीता था. माना जा रहा है कि अखिलेश और शिवपाल के बीच मतभेद समाप्त होने और यादव परिवार की एकजुटता ने ही सपा के पक्ष में माहौल बनाया.

राजनीतिक जानकार यही दावा कर रहे हैं कि अगर यादव परिवार की एकजुटता बनी रही तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा ही भाजपा के मुख्य विकल्प के रूप में उभरेगी.यही वजह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के सहयोगी रह चुके राजभर 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सपा में संभावनाएं तलाशने में जुट गए हैं.

इस सिलसिले में जब राजभर से बातचीत की गई तो उन्होंने से कहा, “हां, बिल्कुल! बात करने में क्‍या दिक्‍कत है. कोई खेत-मेड़ का झगड़ा तो है नहीं, राजनीति में कौन किसका दुश्मन है.अपनी बात को बल देने के लिए राजभर ने बिहार में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और राष्‍ट्रीय जनता दल (राजद), कश्मीर में भाजपा और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और उत्तर प्रदेश में 2019 में सपा और बसपा के बीच हुए गठबंधन का उदाहरण भी दिया. राजभर ने दावा किया, “हम निकाय चुनाव अकेले अपने दम पर लड़ेंगे, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी न किसी से गठबंधन जरूर करेंगे।” यह पूछे जाने पर कि क्या सपा के किसी नेता ने सुभासपा से हाथ मिलाने की पहल की है, उन्होंने कहा कि अभी किसी ने कोई पहल नहीं की है.

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सियासी गलियारों में अटकलें लगाई जा रही हैं कि राजभर जैसे छोटे दलों के नेता निकाय चुनाव में सपा की स्थिति का आकलन करेंगे और परिणाम के हिसाब से ही 2024 के चुनाव के लिए अपनी दिशा तय करेंगे. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में बहुत जल्द नगर निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी होने की संभावना है. राज्‍य में 17 नगर निगम, 200 नगर पालिका परिषद और 545 नगर पंचायतों में महापौर, अध्यक्ष और सभासदों के चयन के लिए मतदान होना है. विधानसभा चुनाव के बाद हुए विधान परिषद चुनाव में टिकट न मिलने से जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के अध्यक्ष डॉ. संजय चौहान सपा से खफा हो गए थे, लेकिन अब वह फिर पार्टी के साथ आ गए हैं.

2019 में सपा के चिह्न पर चंदौली से लोकसभा चुनाव लड़ चुके डॉ. चौहान ने स्वीकार किया, “विधान परिषद के चुनाव में मौका न मिलने से सपा से थोड़ी दूरी हो गई थी, लेकिन अब हम अखिलेश जी के साथ हैं और निकाय चुनाव में सपा का समर्थन करेंगे. उन्होंने कहा कि लोग भाजपा से धीरे-धीरे ऊबने लगे हैं. मुझे लगता है कि 2024 में सपा को ठीक-ठाक सफलता मिलेगी.

हालांकि, महान दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने कहा, “हम लोग (छोटे दल) मुख्‍य खिलाड़ी नहीं हैं और मुख्‍य खिलाड़ी (बड़े दल) अभी पत्ते नहीं खोल रहे हैं. ऐसे में हम किसके साथ जाएंगे, इसे लेकर खूब तुक्केबाजी चल रही है. अखिलेश के साथ दोबारा तालमेल बैठाने की संभावनाओं पर मौर्य ने कहा, “देखिए, अखिलेश यादव से ही नहीं, भाजपा से, कांग्रेस से, बसपा से, सभी से गठबंधन की संभावनाएं हैं. जब हम अपनी बदौलत एक भी सीट जीत नहीं सकते तो किसी न किसी का सहारा तो लेंगे ही. अब सहारा कौन देगा, यह उन पर (बड़े दलों पर) निर्भर करता है. महान दल के नेता ने कहा, “पहल बड़े दलों को करनी है और अगर कोई हमें बुलाता ही नहीं है तो हम गठबंधन के लिए तैयार होकर भी क्‍या करेंगे.” उन्होंने संकेत दिया कि वह मौके का इंतजार कर रहे हैं. इस बारे में पूछे जाने पर सपा के राष्ट्रीय सचिव और मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, “सपा ही भाजपा की एकमात्र विकल्प है. अखिलेश जी सक्षम हैं। लोगों को यह अच्छी तरह से मालूम है. उन्होंने उम्मीद जताई कि देर से ही सही, लेकिन बहुत से लोग सपा में आएंगे.

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