अयोध्या में जमीन खरीद पर फिर विवाद, मीडिया रिपोर्ट में नेता-अफसरों के नाम, तेज हुई सियासत
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण का रास्ता साफ होने के बाद वहां जमीन खरीद के मामलों पर कई बार…
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण का रास्ता साफ होने के बाद वहां जमीन खरीद के मामलों पर कई बार सवाल उठ चुके हैं. अब अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट सामने आने के बाद अयोध्या में जमीन खरीद का मामला फिर से तूल पकड़ता दिख रहा है.
इस बीच समाजवादी पार्टी (एसपी) ने इस रिपोर्ट को शेयर करते हुए अपनी प्रतिक्रिया दी है. एसपी ने ट्वीट कर लिखा है, ”अयोध्या में BJP के मेयर, MLA, MP में लगी जमीन खरीदने की होड़ छीन रही दलितों का हक! गैर कानूनी रूप से दलितों से जमीन की खरीद की जांच उन्हीं के द्वारा की जा रही है जिनके रिश्तेदारों ने जमीन खरीदी थी. ये है भ्रष्टाचार पर 0 टॉलरेंस का दावा करने वाले CM का सच! जनता देगी जवाब.”
वहीं कांग्रेस नेता सुरेंद्र राजपूत ने इस मामले पर कहा है, ”सुप्रीम कोर्ट की ओर से राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ होते ही भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और उनके समर्थकों का चाल-चरित्र और चेहरा सामने आ गया है. अब ये स्पष्ट हो गया है कि भगवान राम का मंदिर इनके लिए आस्था का विषय नहीं है, वोट की लूट और नोट की लूट का विषय है.”
इसके अलावा उन्होंने कहा है, ”आज की तारीख में एक तरफ ये लोग चंदा चोरी कर रहे हैं, दूसरी तरफ आसपास की जमीनों को औने-पौने दाम पर हड़पकर वहां पर अपने व्यवसाय खड़े करना चाहते हैं. अब भारतीय जनता पार्टी को बताना होगा कि इन लोगों ने ऐसा कुकृत्य भगवान श्रीराम के नाम पर क्यों किया.”
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रिपोर्ट से क्या सामने आया?
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अयोध्या के भूमि सौदों से जुड़ा लेन-देन का एक सेट हितों के टकराव और औचित्य से जुड़े गंभीर सवाल उठाता है. कम से कम चार खरीदार, दलित निवासियों से भूमि के ट्रांसफर में कथित अनियमितताओं के लिए विक्रेता की जांच कर रहे अधिकारियों के करीबी संबंधी हैं.
लेन-देन के इस नेटवर्क के केंद्र में महेश योगी की ओर से स्थापित महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट (MRVT) है, जिसने 1990 के दशक की शुरुआत में, राम मंदिर स्थल से 5 किलोमीटर से भी कम दूर बरहटा मांझा गांव और अयोध्या में आसपास के कुछ अन्य गांवों में बड़े पैमाने पर जमीन का अधिग्रहण किया था. इस जमीन में से लगभग 21 बीघा जमीन कथित तौर पर दलितों से नियमों का उल्लंघन करते हुए खरीदी गई थी.
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियम (2016 से, और उससे पहले जमींदारी उन्मूलन अधिनियम) के अनुसार, किसी भी गैर-दलित की ओर से दलित व्यक्तियों से संबंधित कृषि भूमि (3.5 बीघा से कम स्वामित्व वाली) का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता, जब तक कि उसे डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की मंजूरी न मिली हो. ऐसे में MRVT ने कथित तौर पर एक चैनल के रूप में अपने एक दलित कर्मचारी रोंघई का इस्तेमाल करके 1992 में लगभग एक दर्जन दलित ग्रामीणों से जमीन के टुकड़े खरीदे.
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रिपोर्ट के मुताबिक, रिकॉर्ड बताते हैं कि बिक्री के दस्तावेज रोंघई के नाम पर दर्ज किए गए थे. इसके बाद, रोंघई ने जून 1996 में एक अपंजीकृत दान-पत्र पर हस्ताक्षर किए और MRVT को यह सब “दान” कर दिया.
द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी छानबीन के हवाले से लिखा है कि यह पूरी जमीन MRVT द्वारा – रोंघई के माध्यम से – लगभग 6.38 लाख रुपये में खरीदी गई थी. क्षेत्र में मौजूदा सर्कल रेट (अगस्त 2017 से लागू) के अनुसार, इसकी कीमत 3.90 करोड़ रुपये से 8.50 करोड़ रुपये है. जिन दलित निवासियों की जमीन रोंघई द्वारा खरीदी गई थी और MRVT को “दान” की गई थी, रिकॉर्ड के मुताबिक, उनमें से एक महादेव को 3 बीघा जमीन के लिए 1.02 लाख रुपये मिले थे. सितंबर 2019 में, जब MRVT ने ‘रोंघई के माध्यम से खरीदी गई जमीन’ के टुकड़े बेचना शुरू किया, तो महादेव ने राजस्व बोर्ड से शिकायत की कि उनकी जमीन को “अवैध रूप से ट्रांसफर कर दिया गया है.”
उनकी शिकायत पर इस ट्रांसफर की जांच के लिए एडिशनल कमिश्नर शिव पूजन और तत्कालीन एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट गोरेलाल शुक्ला की समिति गठित की गई थी.
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रिपोर्ट में बताया गया है कि 1 अक्टूबर, 2020 को तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट अनुज कुमार झा ने इस समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी थी, और MRVT और कुछ सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की थी.
इसे 18 मार्च, 2021 को अयोध्या के डिविजनल कमिश्नर एमपी अग्रवाल ने मंजूरी दे दी और 22 अगस्त 1996 के ऑर्डर में ”सुधार” और ”राज्य सरकार को विचाराधीन भूमि वापस करने” के लिए अयोध्या में असिस्टेंट रिकॉर्ड ऑफिसर (एआरओ) भान सिंह की अदालत में इस साल 6 अगस्त को आखिरकार एक मामला दायर कर दिया गया.
जहां रेवेन्यू ऑडर्स के पुनरीक्षण/समीक्षा के लिए दायर आवेदनों के अपीलीय प्राधिकारी अग्रवाल ने जांच रिपोर्ट राजस्व बोर्ड को कार्रवाई के लिए फॉरवर्ड की, वहीं उनके रिश्तेदारों ने MRVT से जमीन खरीदी.
दरअसल, ट्रस्ट के खिलाफ मामला लंबित होने के बीच, अग्रवाल के ससुर समेत दो रिश्तेदारों ने 10 दिसंबर 2020 को बरहटा मांझा गांव में MVRT से 2530 वर्ग मीटर और 1260 वर्ग मीटर जमीन खरीदी थी.
दो अन्य सरकारी अधिकारियों – तत्कालीन मुख्य राजस्व अधिकारी (सीआरओ) पुरुषोत्तम दास गुप्ता और डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (डीआईजी) दीपक कुमार- के करीबी संबंधियों ने भी क्रमशः 12 अक्टूबर 2021 को 1130 वर्ग मीटर और 1 सितंबर 2021 को 1020 वर्ग मीटर जमीन MRVT से खरीदी.
गुप्ता सितंबर 2021 तक (लगभग तीन सालों तक) अयोध्या में मुख्य राजस्व अधिकारी थे. सीआरओ के रूप में, वह अयोध्या में जिला मजिस्ट्रेट की ओर से उन्हें सौंपे गए सभी जमीन मामलों के लिए जिम्मेदार थे.
बरहटा मांझा गांव में MRVT से जमीन खरीदने वाले अन्य लोगों में अयोध्या जिले के गोसाईगंज से विधायक इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी (18 नवंबर, 2019 को 2593 वर्ग मीटर) और उमाधर द्विवेदी, यूपी कैडर के एक आईएएस अधिकारी (23 अक्टूबर, 2021 को 1680 वर्ग मीटर), जो नौ साल पहले बतौर कमिश्नर (इलाहाबाद) रिटायर हुए, और अब लखनऊ में रहते हैं शामिल हैं.
हालांकि अखबार की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इन अधिकारियों के संबंधियों की ओर से खरीदी गई जमीन विवादित 21 बीघे जमीन में नहीं आती है, लेकिन स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि यह तथ्य कि इन सभी मामलों में विक्रेता MRVT है, जिसे एक आरोपी के रूप में नामित किया गया है, यह औचित्य पर सवाल उठाता है.
सुप्रीम कोर्ट की ओर से राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण को मंजूरी के बाद अयोध्या में जमीन प्राइम रियल एस्टेट बन गई है. इंडियन एक्सप्रेस की एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि मंदिर से जुड़ा आधिकारिक ट्रस्ट (श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट) अब तक लगभग 70 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर चुका है, दूसरी ओर निजी खरीदार भी भारी लाभ की उम्मीद में जमीन खरीद रहे हैं. यहां तक कि सरकारी अधिकारी भी इसे भुनाने की उम्मीद कर रहे हैं. खरीदारों में स्थानीय विधायक, उन नौकरशाहों के करीबी रिश्तेदार, जो अयोध्या में सेवाएं दे रहे हैं या दे चुके हैं, भी शामिल हैं.
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