गीता प्रेस सिर्फ प्रेस नहीं, साहित्य का मंदिर है : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को कहा कि ‘गीता प्रेस सिर्फ एक प्रेस नहीं है, साहित्य का एक मंदिर है.’

राष्ट्रपति कोविंद ने शनिवार को गोरखपुर गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष के उद्घाटन समारोह में कहा, ”मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति की एक अवधारणा रही है कि एक प्रेस होगा, लेकिन आज देखने को मिला कि गीता प्रेस सिर्फ प्रेस नहीं है, साहित्य का एक मंदिर है.”

उन्होंने कहा, ”सनातन धर्म को बचाये रखने में हमारे मंदिरों, तीर्थ स्थलों का जितना योगदान है, उतना ही योगदान गीता प्रेस से प्रकाशित साहित्य का है.”

गौरतलब है कि गीता प्रेस सर्वाधिक हिंदू धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली संस्था है. गोरखपुर शहर में स्थापित गीता प्रेस में धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन और मुद्रण होता है. गीता प्रेस की स्थापना 1923 में गीता मर्मज्ञ जयदयाल गोयन्दका ने किया था.

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राष्ट्रपति ने कहा, ”मेरा सौभाग्य है कि गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष समारोह में शामिल हो रहा हूं, यह पिछले जन्मों के कुछ पुण्य का फल है कि मुझे यहां समारोह में आने का मौका मिला.” कोविंद ने कहा, ‘‘यहां आने से पहले मुझे गीता प्रेस के कर्मचारियों से मिलने का अवसर मिला. इस प्रेस के लिए जो मैंने उनकी निष्ठा, ईमानदारी और सद्भावना देखी वह अद्वितीय थी.” उन्होंने गीता प्रेस के लीला चित्र मंदिर की भी खूब सराहना की.

राष्ट्रपति ने कहा कि इस संसार में जो बड़े कार्य होते हैं, उसके पीछे दैवीय शक्तियां होती हैं और गीता प्रेस को आगे ले जाने में हनुमान प्रसाद पोद्दार की अहम भूमिका है. कोविंद ने गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयन्दका को स्मरण किया और यह भी बताया कि हनुमान प्रसाद पोद्दार ने जयदयाल जी से प्रेस स्थापित करने का प्रस्ताव रखा था.

उन्होंने कहा, ‘‘धर्म और शासन दोनों एक-दूसरे के साथ चलते हैं, दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं और आज वह दृश्य यहां देखने को मिल रहा है.’’

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कोविंद ने कहा, ‘‘योगी (आदित्यनाथ) इस प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं और गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी. एक व्यक्ति में दोनों समाहित होना बहुत बड़ी बात है.’’

गीता प्रेस का इतिहास बताते हुए राष्ट्रपति ने उसकी सराहना की और कहा कि गीता प्रेस ने हिंदू धार्मिक प्रसंगों को जनमानस तक पहुंचाया है.

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