जन्मदिन विशेष: पिता-पुत्र के प्रेम से लेकर सियासत की कटुता तक, किस्सा मुलायम और अखिलेश का

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भारत की राजनीति में सियासी परिवारों के किस्से खूब सुने और सुनाए जाते हैं. उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक, सियासी परिवारों के किस्से हैं, जिनमें प्रेम और राजनीतिक कटुता-रंजिश का तड़का लगाकर खूब परोसा जाता है. ऐसा ही एक सियासी परिवार है दिग्गज समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव का. भारत की राजनीति के सशक्त किरदारों में एक मुलायम सिंह यादव का आज जन्मदिन है. 22 नवंबर 1939 को पैदा हुए मुलायम सिंह यादव इस साल 82वां जन्मदिन मना रहे हैं. मुलायम सिंह यादव का पूरा परिवार सियासत में सक्रिय है. राजनीति में धरतीपुत्र के नाम से विख्यात मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में कभी यह परिवार एकजुट था, लेकिन सत्ता के लिए हुई ‘महाभारत’ ने इस परिवार की एकजुटता को भी तोड़ दिया. आज मुलायम के कुनबे में दो धड़े हैं. एक बेटे अखिलेश का और दूसरा भाई शिवपाल का.

मुलायम सिंह यादव के 82वें जन्मदिन पर देश की तमाम हस्तियां उन्हें शुभकामनाएं दे रही हैं. पीएम मोदी ने ट्वीट कर लिखा है कि, ‘उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जी को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं. देश की राजनीति में उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. मैं उनके स्वस्थ एवं सुदीर्घ जीवन की कामना करता हूं.’

सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने बधाई संदेश में लिखा है, ‘उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं. प्रभु श्री राम से आपके उत्तम स्वास्थ्य व सुदीर्घ जीवन की कामना करता हूं.’

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मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर आज हम आपको इस सियासी परिवार के किस्सों से रूबरू करा रहे हैं. उन किस्सों में जहां पिता-पुत्र, भाई-भाई के प्रेम हैं, तो सत्ता के लिए सियासी कटुता की भी कई घटनाएं हैं.

पहले संक्षेप में जानिए मुलायम सिंह यादव का जीवन परिचय

इटावा जिले के सैफई गांव में 22 नवंबर, 1939 को जन्‍मे मुलायम सिंह यादव ने शुरुआती जीवन एक शिक्षक के रूप में शुरू किया. 1967 में पहली बार विधानसभा के सदस्य चुने गए. वह साल 1977 में रामनरेश यादव के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश सरकार में पहली बार मंत्री बने. वर्ष 1989 में वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 1996 में मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने के बाद संयुक्त मोर्चा की सरकार में वह रक्षा मंत्री भी बने. मुलायम सिंह यादव 2003 से 2007 तक दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. अपने लंबे राजनीतिक जीवन में मुलायम सिंह यादव ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं. उन्होंने 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की.

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2012 में मिली जीत तो अखिलेश को बनाया सीएम पर बाद में चलकर पारिवारिक लड़ाई भी झेली

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में अपने पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया. अखिलेश 2017 तक इस पद पर बने रहे. इसी बीच परिवार में कलह के बाद मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव एसपी से अलग हो गये और उन्होंने बाद में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के नाम से एक अलग दल का गठन किया.

मुलायम ने यूं कराई थी अखिलेश की सियासी एंट्री

भारतीय राजनीति में अक्सर पिता की राजनीतिक विरासत पुत्र ही संभालते नजर आते हैं. ऐसा ही कुछ मुलायम सिंह यादव के परिवार में देखने को मिला. 2012 में बेटे अखिलेश को सीएम बनाने से पहले मुलायम ने करीब एक दशक से अधिक समय तक उन्हें राजनीति का ककहरा सिखाया था. भारत और यूपी की सियासत में अखिलेश यादव की एंट्री की कहानी भी काफी रोचक है. यह कहानी अखिलेश-डिंपल की शादी के तुरंत बाद की है और दोनों के हनीमून पीरियड के बीच ही कुछ ऐसा हुआ था की ‘टीपू’ को पॉलिटिक्स में एंट्री लेनी पड़ी.

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अखिलेश यादव ने 24 नवंबर 1999 को अपनी दोस्त डिंपल के साथ शादी की थी. इसके अगले ही महीने यानी दिसंबर 1999 में अखिलेश और डिंपल देहरादून में थे. उसी वक्त मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को फोन कर कहा कि तुम्हें कन्नौज से लोकसभा का उपचुनाव लड़ना है, घर लौट आओ. अखिलेश ने 2000 में हुए इस चुनाव को लड़ा और जीत हासिल कर पहली बार सांसद बने. इसके बाद साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में भी अखिलेश यहीं से लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंचे.

पार्टी में भीतरघात, टूटफूट रोकने के लिए मुलायम ने चला था अखिलेश वाला दांव पर डेढ़ दशक बाद हुआ वही

असल में अखिलेश को कन्नौज उपचुनाव लड़वाने के पीछे मुलायम की एक खास रणनीति थी. 1999 के लोकसभा चुनाव में मुलायम ने इस सीट के साथ-साथ संभल से भी चुनाव लड़ा था. उन्होंने कहा था कि जिस सीट से उनको कम वोट मिलेंगे, वह उसे छोड़ देंगे. ऐसे में जब कन्नौज में उनकी जीत का अंतर कम रहा तो उन्होंने इस सीट को छोड़ने का फैसला किया. हालांकि, उनके इस फैसले के बाद सीट के कई दावेदार सामने आने लगे और पार्टी में भीतरघात की आशंकाएं पैदा होने लगीं. इसे रोकने के लिए ही उन्होंने अखिलेश की सियासी एंट्री करवाई.

मुलायम के इस दांव ने पार्टी के लिए फौरी तौर पर खड़े हो रहे संकट को तो खत्म किया, लेकिन शायद तब पहलवानी के शौकीन इस दिग्गज नेता को नहीं पता था कि डेढ़ दशक बाद एक ऐसा संकट आएगा, जब वह कुछ नहीं कर पाएंगे और पार्टी टूट जाएगी.

2016 के अंत में सार्वजनिक हुआ मुलायम परिवार का विवाद, कीमत 2017 के चुनावों में चुकानी पड़ी

2012 से लेकर 2017 तक अखिलेश यादव यूपी के सीएम रहे. 2016 में जब उनकी सरकार आखिरी साल में चल रही थी, तो जहां बीजेपी अपने पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थी, वहीं अखिलेश पार्टी के आंतरिक संकट से लड़ रहे थे. इस बार उनकी लड़ाई किसी और के साथ नहीं बल्कि अपने चाचा शिवपाल के साथ थी. दोनों ही लोग अलग राह पर चल रहे थे और दोनों के दावे थे कि मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद उन्हीं के साथ है. यह एक तरह से पार्टी पर पकड़ की लड़ाई थी. यह तय किया जा रहा था कि पार्टी पर कंट्रोल किसका रहेगा. पर असल में मुलायम कहां और किसके साथ खड़े थे?

पहले भाई शिवपाल के साथ नजर आए मुलायम: असल में यह विवाद 2016 में उस वक्त सार्वजनिक हुआ जब समाजवादी पार्टी की तरफ से राष्ट्रीय अध्यक्ष (तब मुलायम सिंह यादव) ने कैंडिडेट की सूची जारी की, तो अखिलेश ने एक समानांतर सूची जारी कर दी. मुलायम ने चिट्ठी लिख कर अखिलेश यादव से जवाब मांगा. यही नहीं, 30 दिसंबर 2016 को मुलायम ने अखिलेश यादव और अपने चचेरे भाई रामगोपाल यादव को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित भी कर दिया. तब रामगोपाल यादव अखिलेश की तरफ से बयानबाजी कर रहे थे.

फिर अखिलेश ने कर दिया तख्तापलट और कहा- पिता को साजिशकर्ताओं से बचाने के लिए हर कदम उठाऊंगा

एक जनवरी 2017 को जब पूरा देश और प्रदेश नया साल मना रहा था, समाजवादी पार्टी में शह और मात का खेल चल रहा था. अखिलेश यादव पार्टी से निष्कासन के बाद तख्तापलट कर पिता मुलायम की जगह खुद पार्टी मुखिया बन बैठे थे. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने पिता को साजिशकर्ताओं से बचाने के लिए कुछ भी करेंगे.

अखिलेश को उठाना पड़ा चुनावी नुकसान

परिवार में पैदा हुए संकट का खामियाजा अखिलेश को 2017 के विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ा. बीजेपी और खासकर पीएम मोदी ने अपनी चुनावी रैलियों में इसे बड़ा मुद्दा बनाया. पीएम मोदी ने यह मैसेज देने की कोशिश की कि जो अपने पिता का नहीं हुआ वह यूपी की जनता का क्या होगा. 2017 के चुनावों में जब समाजवादी पार्टी की हार हुई, तो मुलायम सिंह यादव ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि अखिलेश ने उनका अपमान किया है. उन्होंने एक तरह से पीएम मोदी के भाषण को इंडोर्स करते हुए कहा तब कहा था कि लोगों ने पीएम के बयान को (जो पिता का नहीं हुआ, वह किसी और का क्या होगा) गंभीरता से लिया.

अब फिर पटरी पर लौटता दिख रहा है मामला

मुलायम परिवार का विवाद अभी भी बरकरार है. हालांकि अखिलेश और शिवपाल, दोनों ही खेमों को लगता है कि इस विवाद का हल होना चाहिए. तभी शिवपाल लंबे अर्से से कह रहे हैं कि 2022 के चुनावों में गठबंधन के लिए उनकी फर्स्ट चॉइस अखिलेश हैं. पूर्व सीएम अखिलेश यादव भी अपने चाचा शिवपाल को लेकर नरमी के संकेत दे चुके हैं. अब यह देखना रोचक होगा कि अखिलेश-शिवपाल का गठबंधन होता है या शिपवाल एक बार फिर समाजवादी पार्टी संग विलय करते हैं. यह भी अगर 2022 में भी चाचा भतीजा साथ नहीं आते, तो बीजेपी इस मामले को क्या चुनावी रंग देती है.

हालांकि बीजेपी ने एक बार फिर अखिलेश के पारिवारिक विवाद को लेकर हमला बोलना शुरू कर दिया है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने एक वीडियो ट्वीट किया है, जिसमें पारिवारिक विवाद का जिक्र कर अखिलेश यादव पर निशाना साधा गया है. बीजेपी की उत्तर प्रदेश यूनिट ने इस ट्वीट में लिखा है, ”गद्दी छीनने के लिए सियासत में पार्टी को यूं भी हथियाना पड़ता है, पिता-चाचा जो भी हो, उसको धकियाना पड़ता है. समझ गए न किसकी बात हो रही है ? याद है न, कहीं भूले तो नहीं?”

भाषा के इनपुट्स के साथ

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