राजनीति

UP चुनाव: कोरोना का शिकार बना था हापुड़ का ये गांव, 2022 में BJP पर भारी न पड़ जाए ये मुद्दा

उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले यूपी तक आपके लिए हर जिले की सियासी तस्वीर सामने ला रहा है. इस विशेष सीरीज की कड़ी में आज देखिए कि हापुड़ में पिछले 2 विधानसभा चुनाव में क्या समीकरण रहे थे और साथ में जानिए वे कौनसे स्थानीय मुद्दे हैं, जिनपर नहीं हुआ है काम.

हापुड़ में पिछले 2 विधानसभा चुनावों की तस्वीर देखी जाए तो मुख्य तौर पर जिले में एसपी और बीजेपी का वर्चस्व रहा है. आपको बता दें कि 2012 के विधानसभा में हापुड़ जिले में एक भी सीट न जीतने वाली बीजेपी ने 2017 के चुनावों में 2 सीट पर कब्जा जमाया था. वहीं, बीजेपी की लहर के बावजूद धौलाना विधानसभा सीट पर बीएसपी जीती थी. आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हापुड़ और गढ़ की सीट बचाने के साथ-साथ धौलाना विधानसभा सीट पर भी अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव रहेगा.

आइए हापुड़ जिले की प्रोफाइल पर एक नजर डालते हैं

गंगा किनारे बसा हापुड़ जिला उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में पड़ता है. तत्कालीन मुख्यमंत्री कुमारी मायावती ने 28 सितंबर 2011 को हापुड़ को पंचशील नगर नाम से एक जिले के रूप में घोषित किया था. इसके बाद हुए सत्ता परिवर्तन में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जुलाई 2012 में इसका नाम बदलकर हापुड़ कर दिया था.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, आजादी के बाद मेरठ जिले में आने वाली हापुड़ तहसील को वर्ष 1974 में गाजियाबाद जिले का हिस्सा बना दिया गया था. हापुड़ पापड़ और गुड़ उत्पादन के लिए भी मशहूर है.

हापुड़ जिले में 3 विधानसभा क्षेत्र हैं

  1. धौलाना

  2. हापुड़

  3. गढ़

  • आपको बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनावों में हापुड़ विधानसभा क्षेत्र की 3 में से 2 विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी, जबकि एक सीट बीएसपी जीती थी.

  • वहीं, 2012 के विधानसभा चुनाव में एसपी के खाते में 2 जबकि कांग्रेस के हिस्से में 1 विधानसभा सीट गई थी.

हापुड़ जिले की विधानसभा सीटों का विस्तार से विवरण:

धौलाना

2017: इस चुनाव में यह सीट बीएसपी के खाते में गई थी. बीएसपी के असलम चौधरी ने बीजेपी के रमेश चंद तोमर को 3,576 वोटों से हराया था.

2012: इस चुनाव में एसपी के धर्मेश सिंह तोमर ने बीएसपी के असलम को 9,339 वोटों से हराया था.

हापुड़

2017: इस चुनाव में बीजेपी के विजय पाल को जीत हासिल हुई थी. उन्होंने कांग्रेस के गजराज सिंह को 15,006 वोटों से हराया था.

2012: इस चुनाव में कांग्रेस के गजराज सिंह ने बीएसपी के धर्मपाल सिंह को 22,152 वोटों से हराया था.

गढ़

2017: इस चुनाव में बीजेपी के कमल सिंह मलिक ने बीएसपी के प्रशांत चौधरी को 35,294 वोटों से हराया था.

2012: इस चुनाव में एसपी के मदन चौहान ने बीएसपी के फरहत हसन को 18,119 वोटों से हराया था.

घोषणा के 7 साल बाद शुरू हुआ घाट का निर्माण

ऐसा माना जाता है कि गढ़ विधानसभा क्षेत्र में आने वाले पूट गांव के तार महाभारत काल से जुड़े हुए हैं. कहा जाता है कि द्रोणाचार्य इस गांव में अपने शिष्यों को प्रशिक्षण देते थे. इस गांव का प्राचीन नाम पुष्पावती था. गंगा किनारे बसे इस गांव में बाढ़ की समस्या अक्सर रहती है. इसी के चलते साल 2014 में भारत सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट के अंतर्गत गांव में घाट बनवाने की घोषणा की थी. लेकिन 2021 में जाकर घाट बनाने का काम शुरू हुआ है. घोषणा होने के बावजूद काफी समय तक घाट न बनने पर स्थानीय लोगों ने इसका काफी विरोध किया था.

पूट गांव में एक प्राचीन गुरुकुल भी है. कहते हैं कि इस गुरुकुल के विकास के लिए अब तक कोई बड़ा काम नहीं हुआ है. स्थानीय लोगों का आरोप है कि बीजेपी विधायक कमल सिंह मालिक इस गुरुकुल में आते तो जरूर हैं, लेकिन उनकी तरफ से गुरुकुल को अब तक कोई बड़ी सौगात नहीं दी गई है.

कोरोना ने खोल दी थी असौड़ा गांव में स्वास्थ्य विभाग की पोल

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हापुड़ विधानसभा क्षेत्र का असौड़ा गांव काफी चर्चा में आया था. दरअसल, गांव में एक ही सरकारी अस्पताल है. ’15 बैडेड आयुर्वेदिक अस्पताल’ कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मात्र एक इमारत के रूप में खड़ा हुआ था. स्वास्थ्य व्यवस्था के नाम पर अस्पताल में कुछ इंतजाम नहीं थे. 15 बेड वाले अस्पताल में मात्र 2 बेड ही उपलब्ध थे.

दूसरी लहर के दौरान इस गांव में करीब 35 लोगों की मौत हो गई थी. स्थानीय लोगों ने बताया था कि अस्पताल में इंतजाम न होने के कारण उन्हें कोरोना का टेस्ट कराने के लिए शहर जाना पड़ा था. हालांकि, 4 साल पहले बने इस अस्पताल का संचालन ‘आज तक’ की पड़ताल के बाद शुरू हो सका. ये वो बड़ा मुद्दा था जिससे बीजेपी सरकार की काफी किरकिरी हुई थी. महामारी के दौरान प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था का दावा करने वाली योगी सरकार असौड़ा गांव में घिरती नजर आई थी.

खैर, प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं, ऐसे में विपक्ष सरकार को इन मुद्दों पर घेरने की कोशिश करेगा. अब देखना यह दिलचस्प रहेगा कि आने वाले समय में हापुड़ की जनता किस पार्टी को गले जीत की माला पहनाती है.

इनपुट्स: देवेंद्र कुमार

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