वाराणसी: क्या है गंगा किनारे धसते मकानों और काली पड़ती नदी के पीछे की वजह? जानिए

रोशन जायसवाल

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उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा किनारे गंगोत्री विहार कॉलोनी के लगभग 10 मकानों के क्षतिग्रस्त होने और पंपिंग स्टेशन के बंद हो जाने से लगभग 5-7 करोड़ लीटर सीवेज का पानी गंगा में गिरने के मामले में पर्यावरणविद और IIT-BHU के प्रोफेसर विशंभरनाथ मिश्र ने अपनी राय दी है. इसके वजह प्रोफेसर मिश्र ने गलत डिजाइन, मानक के विपरीत पंपिंग स्टेशन और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) को बनाया जाना बताया है. आपको बता दें कि गंगा में सीवेज का पानी गिरने से नदी काली भी पड़ती जा रही है.

पर्यावरणविद और IIT-BHU के प्रोफेसर विशंभरनाथ मिश्र ने बताया,

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“वाराणसी में अस्सी और वरुणा मुख्य डिस्चार्ज चैनल हैं. सबसे ज्यादा डिस्चार्ज वरुणा से होता है. उसके बाद वाराणसी में अस्सी नाले का नंबर आता है. आज से 10 साल पहले हम लोगों की ओर से अस्सी का मेजरमेंट जब किया गया था तो उस समय 64 से 65 एमएलडी डिस्चार्ज पाया गया. आज वह डिस्चार्ज 80 एमएलडी के करीब होगा, लेकिन बनाया गया पंपिंग स्टेशन 50 एमएलडी का ही है. अगर यह पूरी क्षमता से पम्पिंग भी करते हैं तो 50 एमएलडी ही कर पाएंगे, बाकी सीवेज गंगा में बहाया जाएगा.”

विशंभरनाथ मिश्र, प्रोफेसर IIT-BHU

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गंगा प्रदूषण मुक्त क्यों नहीं हो पा रही है, जानिए प्रोफेसर मिश्र का वर्जन

IIT-BHU के प्रोफेसर विशंभरनाथ मिश्र ने बताया, “पंपिंग स्टेशन से लेकर रमना एसटीपी तक डाली गई पाइपलाइन की ना तो पाइलिंग ठीक से की गई है और ना ही पिचिंग. इसी वजह से पाइप मिट्टी में धंस रहा है और पाइप में जहां भी जॉइंट है, वहां से पंप के चलते वक्त पानी रिस रहा है. आसपास के मकानों में क्रेक आ चुके हैं और फर्श भी धंस रहे हैं. ये तो स्थानीय मुद्दा है लेकिन गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के मकसद से जितने भी काम हो रहे हैं वो पुरानी टेक्नोलॉजी के तहत हो रहे हैं. इसमें फिकल कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया को खत्म करने का कोई तरीका नहीं है. इस तरह गंगा प्रदूषण मुक्त नहीं हो पाएंगी.”

उन्होंने आगे बताया कि पंप बंद हो जाने से अब सारा अवजल गंगा में सीधे गिर रहा है, जिसके चलते गंगा का पानी न केवल काला होगा बल्कि सारे पैरामीटर भी गड़बड़ हो जाएंगे.

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कैसे प्रदुषण मुक्त होगी गंगा?

प्रोफेसर विशंभरनाथ मिश्र के अनुसार, “गंगा को अगर प्रदूषण मुक्त करना है तो इसके तीन स्टेप हैं. पहला प्रॉपर इंटरसेक्शन, दूसरा डायवर्जन और तीसरा एसटीपी में फिकल कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया को खत्म करके पानी का फिर से इस्तेमाल. अभी अपस्ट्रीम में फिकल कॉलीफॉर्म 40 से 50 हजार मिलेगा जो कि गर्मी में एक लाख तक चला जाता है, जबकि स्टैंडर्ड के लिए कहा गया है कि पर हंड्रेड एमएल में इसका काउंट 500 के अंदर होना चाहिए. इसलिए प्रॉपर इंटरसेप्शन, डायवर्जन और लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना बेहद जरूरी है.”

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