पूरी दुनिया में ऐसा उत्सव कहीं नहीं! काशी में महाश्मशान घाट पर खेली गई चिता भस्म की होली
पूरे देश-दुनिया में होली का त्योहार काफी धूम-धाम से मनाया जाता है. मगर, वाराणसी की होली अपने अनोखे अंदाज में मनाए जाने के लिए प्रसिद्ध…
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पूरे देश-दुनिया में होली का त्योहार काफी धूम-धाम से मनाया जाता है. मगर, वाराणसी की होली अपने अनोखे अंदाज में मनाए जाने के लिए प्रसिद्ध है.
काशी में होली रंगभरी एकादशी से शुरू हो जाती है. सबसे पहले काशीवासी अपने ईष्ट भोले बाबा के साथ महाशमशान पर चिता भस्म से होली खेलकर त्योहार की शुरुआत करते हैं.
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इसके बाद से ही वाराणसी में होली की शुरुआत हो जाती है. रंगभरी एकादशी से होली खेलने की मान्यता 350 साल से भी पुरानी बताई जाती है.
हर साल की तरह इस बार भी रंगभरी एकादशी पर 14 मार्च को वाराणसी में महाश्मशान घाट पर चिता भस्म की होली खेली गई.
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इस दौरान डमरू, घंटे, घड़ियाल और मृदंग, साउंड सिस्टम से निकलती धुनों के बीच चारों ओर जलती चिताओं की भस्म से होली खेली गई.
बताया जाता है कि जब रंगभरी एकादशी के दिन श्री विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी.
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मगर भगवान शिव अपने प्रिय श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरी के साथ होली नहीं खेल पाए थे.
इसलिए रंगभरी एकादशी से शुरू हुए पंचदिवसीय होली पर्व की अगली कड़ी में बाबा विश्वनाथ इन्हीं लोगों के साथ चिता-भस्म की होली खेलने महाश्मशान पर आते हैं.
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