इस साल 2 फरवरी से गुप्त नवरात्रि की शुरुआत, यहां जानें पूजन का शुभ मुहूर्त
हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक को गुप्त नवरात्रि पर्व के नाम से…
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हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक को गुप्त नवरात्रि पर्व के नाम से जाना जाता है. हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक त्योहारों में से एक गुप्त नवरात्रि है.
गुप्त नवरात्रि साल में दो बार आती है. पहली गुप्त नवरात्रि आषाढ़ मास में और दूसरी माघ मास में पड़ती है. वस्तुतः इस वर्ष गुप्त नवरात्रि 2 फरवरी, बुधवार से 11 फरवरी शुक्रवार तक है. गुप्त नवरात्रि पर इस वर्ष दो विशेष योग बन रहे हैं.
ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद ने बताया, “गुप्त नवरात्रि पर इस बार रवियोग और सर्वार्थसिद्धि योग बन रहा है. मान्यता है कि इस योग में पूजा करने से कई गुना ज्यादा फल मिलता है. मां दुर्गा प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं. इस वर्ष नैका (नाव) पर सवार होकर मां शक्ति स्वरूपा आएंगी और गमन हाथी पर होगा.”
उन्होंने कहा, “पौराणिक काल से ही लोगों की आस्था गुप्त नवरात्रि में रही है. गुप्त नवरात्रि में शक्ति की उपासना की जाती है ताकि जीवन तनाव मुक्त रहे। माना जाता है कि अगर कोई समस्या है या सिद्धि पाना चाहते हैं तो उससे निजात पाने के लिए मां शक्ति के खास मंत्रों के जाप से उससे मुक्ति पाया जा सकता है या हासिल किया जा सकता है.”
ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद ने कहा, “सिद्धि के लिए ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै, ॐ क्लीं सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन्य धान्य सुतान्यवितं, मनुष्यो मत प्रसादेंन भविष्यति न संचयः क्लीं ॐ, ॐ श्रीं ह्रीं हसौ: हूं फट नीलसरस्वत्ये स्वाहा आदि विशेष मंत्रों का जप किया जा सकता है.”
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शुभ मुहूर्त
कलश स्थापना मुहूर्त:- सुबह 06:33 से 09:32 तक
अभिजीत मुहूर्त:- पूर्वाह्न 11:25 से 12:35 तक
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डॉ. विनोद ने बताया, “देवी भागवत में आए प्रसंग के मुताबिक जिस तरह चैत्र और शारदीय नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. उसी प्रकार माघी गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्या की उपासना की जाती है. गुप्त नवरात्रि की अवधि में साधक श्यामा (काली), तारिणी (तारा), षोडशी (त्रिपुर सुंदरी), देवी भुवनेश्वरी, देवी छिन्नमस्ता, देवी धूमवाती, देवी बागलमुखी, माता मतंगी और देवी लक्ष्मी (कमला) की आराधना करते हैं. चूंकि इस नवरात्रि में दस महाविद्या की उपासना गुप्त रूप से होती है, इसलिए इसे गुप्त नवरात्रि का नाम दिया गया है.”
उन्होंने बताया, “शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे. गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥ ( देवीपुराण). रविवार और सोमवार को भगवती हाथी पर आती हैं, शनि और मंगल वार को घोड़े पर, बृहस्पति और शुक्रवार को डोला पर, बुधवार को नाव पर आती हैं.”
डॉ. विनोद ने कहा, “गजेश जलदा देवी क्षत्रभंग तुरंगमे. नौकायां कार्यसिद्धिस्यात् दोलायों मरणधु्रवम्॥ अर्थात् मां दुर्गा के हाथी पर आने से अच्छी वर्षा होती है, घोड़े पर आने से राजाओं में युद्ध होता है. नाव पर आने से सब कार्यों में सिद्ध मिलती है और यदि डोले पर आती है तो उस वर्ष में अनेक कारणों से बहुत लोगों की मृत्यु होती है.”
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उन्होंने कहा, “शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा, शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला। बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा, सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥”
ज्योतिषाचार्य डॉ. विनोद ने अंत मे बताया, “भगवती रविवार और सोमवार को महिषा (भैंसा) की सवारी से जाती हैं जिससे देश में रोग और शोक की वृद्धि होती है. शनि और मंगल को पैदल जाती हैं जिससे विकलता की वृद्धि होती है। बुध और शुक्र को दिन में भगवती हाथी पर जाती हैं. इससे वृष्टि वृद्धि होती है. बृहस्पतिवार को भगवती मनुष्य की सवारी से जाती हैं. जो सुख और सौख्य की वृद्धि करती है। इस प्रकार भगवती का आना जाना शुभ और अशुभ का फल सूचक हैं। इस फल का प्रभाव यजमान पर ही नहीं, पूरे राष्ट्र पर पड़ता हैं.”
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