आगरा में एक नहीं दो ताजमहल हैं! दूसरे वाले की बेहद ही दिलचस्प प्रेम कहानी, यहां जानिए

अरविंद शर्मा

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Agra News: उत्तर प्रदेश के आगरा में एक नहीं दो ‘ताजमहल’ हैं. शाहजहां के अपनी पत्नी मुमताज की याद में बनवाए ताजमहल को लगभग सभी जानते और पहचानते हैं, लेकिन शायद ही कोई जानता हो कि एक पत्नी ने अपने पति की याद में भी ताजमहल जैसी ईमारत बनवाई थी. आज हम आपको इसी ताजमहल जैसी सुर्ख लाल इमारत की दिलचस्प जानकारी देंगे.

यहां जानिए पूरी कहानी

दरअसल, यह कर्नल जॉन विलियम हैसिंग का मकबरा है. विलियम हैसिंग डच था और सिपाही की जीवन वृत्त के उद्देश्य से लंका आया था. उसने 1765 में कैंडी युद्ध में भाग लिया था. इसके पश्चात वह हैदराबाद के निजाम की सेवा में रहा और 1784 में मराठा सरदार महादजी सिंधिया की नौकरी में आ गया. विलियम हैसिंग ने फ्रांसीसी सेनापति दा तूने के नेतृत्व में कई युद्ध लड़े. महादजी उस पर पूरा विश्वास करते थे और वह उसे 1762 में अपने साथ पूना ले गए.

वहां 1764 में महादजी की मौत के बाद वह आगरा लौट आया. आगरा उस समय मराठों के अधिकार में था. उसे 1766 में किले और उसके दुर्ग रक्षक मराठा सेना का अधिपति बनाया गया. किले में 29 जुलाई 1803 को उसकी मृत्यु हो गई. 1803 में ही किले पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया. एक मान्यता के मुताबिक, विलियम हैसिंग की मौत के बाद उसकी पत्नी के मन में अपने पति की याद में नायाब इमारत बनवाने का ख्याल आया और उसने ताजमहल से प्रेरित होकर इस लाल ताजमहल जैसी इमारत का निर्माण करवाया. यह इमारत ताजमहल जैसी खूबसूरत और विशाल तो नहीं है, लेकिन एक पत्नी का पति के प्रति प्रेम और मृत्यु उपरांत उस प्रेम को जिंदा रखने के लिए समर्पण की निशानी बनकर आज भी खड़ी हुई है.

क्या है हैसिंग के मकबरे की खासियत?

हैसिंग के मकबरे के अंदर एक तहखाना है, जिसमें असली कब्र है और उसके चारों ओर एक गलियारा है. इमारत के हर कोने पर लघु बुर्ज के रूप में एक अष्टास चबूतरा है. पश्चिम की ओर दोहरी सीढ़ियां हैं और 22 फीट लंबा और 8.3/4 फीट चौड़ा एक चबूतरा है. प्रत्येक के मध्य में एक ईवान (वृहत महराब) है, जिसके उभय पक्ष पर अलंकारिक बुहैरे पेशात्मक (मेहबदार आलय) बने हुए हैं.

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दीवान के किनारों पर पतली और छोटी मीनारें हैं. अनंत शीर्ष और निर्जीव सुशोभित हैं. 2 फीट लंबी चौड़ी चतुरा लघु मीनारें मकबरे के कोनों पर लगी हुई हैं. उन पर लंब रूप धारियां हैं. शीर्ष पर चतुरास क्षत्रिय हैं. मकबरे के ऊपर एक दहरा गुंबद है, जिस पर महापदम और कलश कृति सुशोभित हैं. लघु मीनारों के निर्याह और क्षत्रियों के साथ यह गुम्मद एक पूर्ण ऊर्ध्व रचना पेश करती है. अंदर 17.3/4 फिट लंबा चौड़ा एक चौकोर कक्ष है, जिसकी फलक युक्त धारीदार छत है. प्रतिकृति कब्र पर अंग्रेजी में अभिलेख लिखा है. यह इमारत संतुलन और लाल पत्थर पर नक्काशी का बेजोड़ उदाहरण है.

शायद भारत में यह अलग पहचान रखने वाला डच मकबरा है. आत्मा, अक्षर और बनावट से यह आगरा की बेमिसाल देन है और यमुना चंबल क्षेत्र की कलाकृति है. यह 20वीं शताब्दी में मुगल विचारों भावनाओं और कला कौशलों की क्रमिकता का सूचक भी माना जा सकता है.

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