महंगे सिलेंडर के कारण चूल्हे पर लौटीं महिलाएं! उत्तर प्रदेश में देखिए उज्जवला योजना का हाल
केंद्र की मोदी सरकार ने अपनी पहली पारी में उज्जवला योजना की शुरुआत की थी, जिसके अंतर्गत गरीब परिवारों को मुफ्त में गैस कनेक्शन दिए…
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केंद्र की मोदी सरकार ने अपनी पहली पारी में उज्जवला योजना की शुरुआत की थी, जिसके अंतर्गत गरीब परिवारों को मुफ्त में गैस कनेक्शन दिए जाने का प्रावधान किया गया था. इस योजना के तहत तमाम पात्र परिवारों को मुफ्त में गैस का कनेक्शन भी दिया गया, लेकिन वर्तमान समय में गैस सिलेंडर की महंगाई की वजह से बहुत ऐसे गरीब परिवार हैं, जो सिलेंडर रिफिल नहीं करवा पा रहे हैं. सरकार द्वारा दिए गए गैस सिलेंडर और गैस चूल्हा अलग कमरे में धूल फांक रहे हैं और महिलाएं वैसे ही उपले पर धुए में खाना बनाने पर मजबूर हैं.
एक तरफ प्रदेश भाजपा सरकार उत्तर प्रदेश में रिकॉर्ड संख्या में उज्ज्वला कनेक्शन देने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी तरफ कई परिवार ऐसे भी हैं जो योजना का लाभ मिलने के बाद भी रसोई गैस, सिलेंडर गैस स्टोव पर अपना खाना नहीं बना पा रहे हैं.
जानें उज्जवला योजना की लाभार्थियों ने क्या बताया?
यह तस्वीर लखनऊ के कुरौनी गांव के गौरी शंकर खेड़ा की है, जहां एलपीजी गैस की ऊंची कीमत के चलते जिन लाभार्थियों को गैस सिलेंडर का कनेक्शन मिला था, वे अब पुराने चूल्हों की ओर लौट रहे हैं.
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30 साल की नीलम को 2016 में मिला कनेक्शन मिला था, लेकिन वह अब पिछले 6 महीने से गैस नहीं भर पा रही हैं. उन्होंने कहा कि ‘कम आय और एलपीजी गैस की ऊंची कीमत एक ऐसी चीज है जिसे वो पूरा नहीं कर सकतीं.’ उन्होंने बताया कि खाना बनाने के लिए वो लकड़ियां लेने के लिए पास के जंगल क्षेत्र में जाती थीं, और अब जीवन फिर से वहीं आ गया है जहां वह थी. अपना दुख साझा करते हुए नीलम ने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह उसी स्थान पर वापस आएंगी, जहां वह वर्षों से खाना बना रही हैं.
इसी तरह, 50 वर्षीय चंपा देवी जिन्होंने एक साल पहले अपने पति को खो दिया था और अब अपने बच्चों को अपने दम पर खिलाती हैं. उन्होंने कहा कि कभी किसी योजना का लाभ नहीं मिला और उज्ज्वला के तहत उन्हें जो एकमात्र सिलेंडर मिला, वह उनकी हैसीयत से बाहर है. उन्होंने सरकार से गैस की कीमतों में सब्सिडी बढ़ाने की मांग की है.
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बता दें कि चंदौली जिले के कुढ़ कला गांव के रहने वाले शमशेर लाल के परिवार को 2018 में उज्ज्वला योजना के तहत गैस का कनेक्शन मिला था. शुरुआती दिनों में तो इन्होंने कुछ दिनों तक गैस रिफिल करवाई. मगर अब गैस महंगी होने के कारण वे रिफिल नहीं करा रहे हैं. कनेक्शन शमशेर की पत्नी कुलवंती देवी के नाम पर मिला था.
जब यूपी तक शमशेर लाल के घर पहुंचे, तो हमने देखा कि उज्ज्वला योजना के तहत मिला सिलेंडर और गैस का चूल्हा एक कमरे में रखा हुआ है और इनकी बहू उपले के चूल्हे पर खाना पका रही थी. जब हमने शमशेर से गैस सिलेंडर रिफिल ना करवाने का कारण जानना चाहा, तो उन्होंने बताया कि गैस सिलेंडर काफी महंगा हो गया है, जिसकी वजह से वह गैस सिलेंडर रिफिल करवाने में अक्षम साबित हो रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में भी हमने जमीनी स्तर पर उतरकर यह जानना चाहा की आखिर उज्जवला योजना की सच्चाई है क्या, क्या वाकई में लाभार्थी इस योजना का आज भी फायदा उठा रहे है या नहीं? हमने मुजफ्फरनगर के पीनना गांव में उज्ज्वला योजना की लाभार्थी दो महिला के घर जाकर देखा तो उज्ज्वला योजना का गैस सलेंडर एक कोने में रखा धूल खा रहा था और ये लाभार्थी महिलाएं आज भी चूल्हों पर खाना बना रही हैं.
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ऐसा ही हाल इटावा की उज्जवला गैस योजना के लाभार्थी रश्मि का है. उनका कहना है की उनका कनेक्शन साल 2017 में शुरू हुआ था जिसमें एक सिलेंडर चूल्हा मिला था. वो अभी भी लकड़ी जलाकर खाना बनाती हैं. उन्होंने बताया कि उनके 7 बच्चे हैं, जिन्हें पालना एक बड़ी चुनौती है. इस महंगाई के दौर में वह लकड़ी खरीद कर चूल्हा जलाती हैं. इस समय लगभग 1000 रुपये का सिलेंडर है जो उनकी क्षमता से बाहर है. चूल्हे पर बहुत दिक्कत होती है, गर्मी बहुत लगती है, धुंआ बहुत होता है मजबूरी है. चार सौ रुपये प्रतिदिन ही उनके पति कमा पाते हैं, जिसमें गैस भरवाना संभव नहीं है.
वहीं, दूसरी तरफ उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के सिलेंडर खाली होने पर यूपी सरकार के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि सरकार गरीब के साथ है. सरकार इस योजना में होली-दिवाली पर निशुल्क कनेक्शन और फ्री सिलेंडर देती है. गांव में एक सिलेंडर दो-तीन महीने चलता है और सरकार ग्रामीण महिलाओं के साथ पूरी तरह है. उनकी हर समस्या के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा.
जहां एक तरफ सरकार उज्जवला योजना के लाभार्थियों के साथ खड़े होने का दावा करती है, तो वहीं दूसरी तरफ गैस की कीमतों ने इन लाभार्थियों के हाथ से इस सुविधा को दूर कर दिया है. आंकड़े भले ही इस योजना की सफलता के दावों को बताते हों, लेकिन हकीकत है कि हजारों गरीब परिवार की महिलाएं इस वक्त गैस की कीमतों के चलते फिर से चूल्हे पर वापस आ गई हैं.
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