ज्ञानवापी केस में अब आगे क्या? जानिए वो 3 महत्वपूर्ण बिंदू जिसपर तय होगा केस का भविष्य

संजय शर्मा

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काशी के ज्ञानवापी प्रकरण में वाराणसी की जिला अदालत ने 40 मिनट सुनवाई के बाद दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और अपना फैसला रिजर्व कर लिया. मंगलवार यानी आज कोर्ट का फैसला आएगा. फैसला इस बारे में होगा कि कोर्ट ये तय करेगा कि इस मामले की सुनवाई की प्रक्रिया क्या होगी?

सुनवाई के लिए अब तक जो कमीशन और उसकी रिपोर्ट आई है क्या उसे भी 1991 के उपासना स्थन कानून और उसी की रौशनी में सीपीसी के ऑर्डर 7 नियम 11 के साथ सुना जाए या सिर्फ पहले उपासना स्थल कानून और सीपीसी के ऑर्डर 7 और नियम 11 को सुना जाए. अगर कोर्ट तीनों पहलुओं के साथ सुनवाई करता है तो उसके मायने अलग होंगे. वहीं सिर्फ 1991 के उपासना स्थन कानून और उसके साथ सीपीसी के ऑर्डर 7 और नियम 11 पर सुनवाई करता और बाद में एविडेंस वगैरह का नंबर आता है तो सुनवाई लंबी खिंच सकती है. कानूनविदों का मानना है कि से सभी मामले एक साथ चले तो बहुत सारे जवाब, कोर्ट की जिज्ञासा के जवाब हाथों हाथ मिल जाएंगे.

बता दें कि उपासना स्थल कानून 1991 की रोशनी में सिविल प्रक्रिया संहिता यानी CPC का आदेश 7 नियम 11 किसी भी धार्मिक स्थल पर दावे को सीधे अदालत में ले जाने पर पाबंदी लगाता है. निषेध करता है. यानी सरल शब्दों में कहें तो किसी धार्मिक स्थल की प्रकृति और स्थिति को बदलने की अर्जी सीधे अदालत में दी ही नहीं जा सकती. धार्मिक स्थल की प्रकृति को बदलने का दावा अदालत में नहीं ले जा सकते. उसकी प्रकृति को बदलने का वाद ही दायर नहीं कर सकते.

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इसके लिए स्केप रूट भी है. 1991 के उपासना स्थल कानून में अदालत ये तीन चीजों में छूट देता है. जो स्थल ऐतिहासिक, प्राग ऐतिहासिक ओर ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे के तहत आता हो. उसमें कोई भी वाद दायर नहीं कर सकता कि उसकी प्रकृति बदली जाए बल्कि इस बात का वाद दायर कर सकता है कि इस जगह की जांच कराई जाय कि यहां हमारे धर्मस्थल होने के चिन्ह मौजूद हैं.

यही इस बार भी कहा गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद में हिंदू मंदिरों के निशान हैं, प्रतीक हैं और सबूत हैं कि यहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाया गया है. अदालत ये तय करेगा कि क्या जो कमीशन बनाया गया और जो सर्वे हुआ उसके आलोक में उपासना स्थल कानून और उसके साथ सीपीसी के ऑर्डर 7 नियम 11 पर सुनावई की जाए या अलग-अलग सुना जाए. अब जिला न्यायाधीश ऐके विश्वेश भगवान विश्वेश्वर के वाद पर फैसला करेंगे.

यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि ऐसे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये कानून किसी धार्मिक स्थल की प्रकृति और स्थिति की पहचान के लिए कोई जांच, कमीशन का गठन या सर्वेक्षण कराने से नहीं रोकता.

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अगर किसी कमीशन की सर्वेक्षण रिपोर्ट से विवादित धार्मिक स्थल को लेकर दावेदार पक्ष के दावे की तस्दीक कर दी और अदालत ने उसे मान लिया तो अदालत उसे आगे भी सुनेगी.

विश्वनाथ मंदिर के महंत ने जिला अदालत में अर्जी देकर ज्ञानवापी में इन अधिकारों की मांग की

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