यूपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने HC के आदेश पर लगाई रोक

भाषा

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सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें उत्तर प्रदेश को अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण के बिना शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने का निर्देश दिया गया था.

कोर्ट ने कहा कि यूपी द्वारा नियुक्त पैनल को तीन महीने में राज्य के स्थानीय निकाय चुनावों के लिए ओबीसी आरक्षण से संबंधित मुद्दों पर फैसला करना होगा.

कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्थानीय निकायों का प्रशासन बाधित न हो, यूपी सरकार कार्यकाल समाप्त होने के बाद अधिकारों को प्रत्यायोजित करने के लिए स्वतंत्र होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यूपी स्थानीय निकायों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद जिन प्रशासकों को उनकी शक्तियां सौंपी जाएंगी, वे बड़े नीतिगत फैसले नहीं लेंगे .

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बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 27 दिसंबर को उत्तर प्रदेश सरकार की नगर निकाय चुनाव संबंधी मसौदा अधिसूचना को रद्द करते हुए राज्य में नगर निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के कराने का आदेश दिया था.

29 दिसंबर को यूपी सरकार ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. अपनी अपील यूपी सरकार ने कहा था कि उच्च न्यायालय पांच दिसंबर की मसौदा अधिसूचना को रद्द नहीं कर सकता है, जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के अलावा ओबीसी के लिए शहरी निकाय चुनावों में सीटों का आरक्षण प्रदान किया गया था.

गौरतलब है कि प्रदेश सरकार ने हाल ही में शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को आरक्षण प्रदान करने से संबंधित सभी मुद्दों पर विचार करने के लिए पांच सदस्यीय आयोग गठित किया है.

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समिति की अध्यक्षता न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राम अवतार सिंह करेंगे. चार अन्य सदस्य भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी चौब सिंह वर्मा, महेंद्र कुमार, और राज्य के पूर्व कानूनी सलाहकार संतोष कुमार विश्वकर्मा व ब्रजेश कुमार सोनी हैं.

सुप्रीम कोर्ट की ओर से निर्धारित “ट्रिपल टेस्ट” फॉर्मूले का पालन किए बिना ओबीसी आरक्षण का मसौदा तैयार किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया था.

‘ट्रिपल टेस्ट’ फॉर्मूले के अनुसार स्थानीय निकायों के संदर्भ में ‘पिछड़ेपन’ की प्रकृति का गहनता से अध्ययन करने के लिए एक आयोग का गठन किया जाना चाहिए.आयोग की सिफारिशों के आधार पर आरक्षण का अनुपात तय होना चाहिए। और आरक्षण की कुल सीमा 50 प्रतिशत से अधिक न हो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

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