सहारा के अर्श से फर्श तक पहुंचने की पूरी कहनी! निवेशकों के पैसों का क्या होगा? जानें ‘हिसाब-किताब’
‘सहारा श्री’ सुब्रत राय का निधन हो गया है. जीते जी उनका जलवा दुनिया ने देखा है. उनके बेटों की शादी पर लखनऊ में अमिताभ बच्चन ही नहीं पूरा बॉलीवुड नाचा था. सारे बड़े नेता पहुंचे थे. उन दिनों में सहारा का जलवा चरम पर था…
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Subrat Roy News: ‘सहारा श्री’ सुब्रत राय का निधन हो गया है. जीते जी उनका जलवा दुनिया ने देखा है. उनके बेटों की शादी पर लखनऊ में अमिताभ बच्चन ही नहीं पूरा बॉलीवुड नाचा था. सारे बड़े नेता पहुंचे थे. उन दिनों में सहारा का जलवा चरम पर था. फाइनेंशियल कारोबार के अलावा मीडिया चैनल, भारतीय क्रिकेट टीम की स्पॉन्सर, एयरलाइंस, एंबी वैली जैसा छोटा शहर बसा लिया था. अब ये सब डूब गया है या बंद होने के कगार पर है. अंतिम संस्कार में विदेश में बसे उनके बेटे भी नहीं आए. बॉलीवुड या क्रिकेट के ज्यादातर सितारों ने श्रद्धांजलि की औपचारिकता भी नहीं निभाई.
क्या था सहारा मूल काम?
सहारा का मूल काम था लोगों के पैसे जमा करना और उसे ब्याज समेत लौटा देना.उसके पास RNBC यानी रेसिडुल नॉन बैंकिंग कंपनी के लाइसेंस था. ये काम ठीक ही चल रहा था क्योंकि कभी बड़े पैमाने पर लोग वापस पैसे मांगने सड़क पर नहीं आए. सहारा की मुश्किल तब बढ़ी, जब उसने बाकी बिजनेस खोले. नए बिजनेस के लिए पैसों का एक सोर्स लोगों के डिपॉजिट थे. सहारा को डिपॉजिट के हर 100 में से 80 रुपये सरकारी बॉन्ड में लगाने थे बाकी 20 रुपये कंपनी जहां चाहें वहां लगा सकती थी. ये नए बिजनेस पैसे नहीं बना पाए चाहे एयरलाइंस हो या होटल या फिर मीडिया का कारोबार. इससे सहारा का नाम तो बड़ा होता चला गया लेकिन पैसा डूबता रहा.
सहारा के रिस्क भरे बिजनेस में राजनीति का भी तड़का था. सुब्रत राय ने दस साल पहले दावा किया था कि 2004 में सोनिया गांधी से प्रधानमंत्री नहीं बनने की अपील सारी मुश्किल की जड़ है. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार अप्रत्याशित रूप से लोकसभा चुनाव हार गई थी. कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनने वाली थी. उस समय सुब्रत राय ने सोनिया गांधी से सार्वजनिक अपील की थी कि वो इटली में पैदा हुई है, इसलिए देश की प्रधानमंत्री ना बनें. सोनिया ने खैर बाद में खुद ही प्रधानमंत्री पद ठुकरा दिया था.
फंड उगाही के लिए सहारा ने किया था ये काम
अब इसे संयोग कहें या प्रयोग, अगले दस साल में सहारा का पतन हो गया. रिजर्व बैंक ने सहारा की जांच शुरू कर दी. सहारा से कहा गया कि डिपॉजिट के पूरे 100 रुपये सरकारी बॉन्ड में लगाने होंगे. 2008 में आकर रिजर्व बैंक ने सहारा पर नए डिपॉजिट लेने पर रोक लगा दी और 2015 तक सारा कारोबार बंद करने के लिए कह दिया. सहारा ये आदेश मान कर भी जैसे तैसे बच सकता था. फंड उगाही के लिए एक और चोर रास्ता खोज निकाला.
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शेयर बाजार में पैसे उगाहने के लिए किसी भी कंपनी को SEBI से अनुमति लेनी होती है. सहारा ने उसे दरकिनार कर बाजार से 25 हजार करोड़ रुपये उगाह लिए. SEBI सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. कोर्ट ने सहारा से कहा कि पैसे निवेशकों को वापस लौटाए. सहारा श्री को अवमानना के मामले में जेल भेज दिया. सहारा ने 15 हजार करोड़ रुपये सेबी के फंड में जमा करा दिए. इसके बाद सहारा उठ नहीं पाया. अब सहारा श्री चले गए हैं.
सहारा के डिपॉजिटर्स का क्या होगा?
अब बहुत सारी खबरें छप रही हैं कि सहारा के डिपॉजिटर्स का क्या होगा? इसका जवाब एक लाइन में है कि पैसे लगाने वाले ही लापता हैं. सेबी के कहने पर सुप्रीम कोर्ट ने सहारा से 15 हजार करोड़ रुपये जमा करवा लिए हैं. ब्याज जोड़कर ये अब 25 हजार करोड़ रुपये हो गए हैं. कोर्ट ने इन निवेशकों को पैसे लौटाने के लिए कमेटी बना रखी है.
बता दें कि अब तक सिर्फ 138 करोड़ रुपये लौटाए गए हैं, क्योंकि कोई पैसे लेने ही नहीं आ रहा है. यह देखकर केंद्र सरकार के सहकारिता मंत्रालय ने 25 हजार करोड़ रुपये में से 5 हजार करोड़ रुपये सुप्रीम कोर्ट से पूछ कर निकाल लिए हैं. सहारा ने सहकारिता समितियों के जरिए भी पैसे उगाहे थे. सरकार ने इनमें से प्रति डिपॉजिटर 10 हजार रुपये देने की स्कीम चलाईं है. इसमें भी अब तक 33 लाख लोग पैसे मांगने आए हैं.
केंद्र सरकार ने संसद को बताया था कि 13 करोड़ लोगों के 1 लाख करोड़ रुपए सहारा में लगे हैं. सबसे बड़ा सवाल यही है कि ये 13 करोड़ लोग कौन हैं जिन्हें अपने पैसे वापस नहीं चाहिए या ये लोग अस्तित्व में है भी या नहीं? अब ‘सहारा श्री’ के निधन के बाद इस सवाल का जवाब शायद कभी नहीं मिलेगा कि सहारा में किसका पैसा लगा है?
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