इटावा के अरविंद सिंह प्राकृतिक तरीके से कर रहे हैं काले चावल की खेती, ये हैं इसकी खूबियां?

अमित तिवारी

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आप लोगों ने वैसे तो बहुत से चावल खाए होंगे और देखें भी होंगे जिनका रंग सफेद है और बीमारी की हालत में डॉक्टर के द्वारा चावल खाने से परहेज बताया जाता है. मगर एक ऐसा चावल जो क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है, जो कि जनपद इटावा के जसवंतनगर तहसील के अंतर्गत ग्राम सिरहौल के अरविंद प्रताप सिंह परिहार ने काले चावल का उत्पादन करके क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गए हैं.

यह काला चावल औषधि गुणों से भरपूर है. इसमें भारी मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट, मल्टीविटामिन, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक जैसे कई तत्व पाए जाते हैं. यह काला दिखने वाला चावल कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों में भी फायदेमंद साबित हो रहा है. अरविंद प्रताप इसको विशेष तौर पर बिना खाद और बिना पेस्ट्री साइड के देशी गाय के गोबर और गोमूत्र से इसका उत्पादन करते हैं.

ऑनलाइन मिली जानकारी

अरविंद प्रताप को सांस की बीमारी हो गई थी तब डॉक्टर ने इनको चावल जैसी चीज खाने को मना किया था. इन्होंने ऑनलाइन यूट्यूब सोशल मीडिया के माध्यम से खाने- पीने की चीज देख रहे थे तभी काले चावल के फायदे के बारे में पता चला जिसको गंभीर बीमारी में भी खाया जा सकता है तभी से इन्होंने ठान लिया और ऑनलाइन काले चावल बीज को मंगाकर अपने यहां देसी गाय के गोबर और गोमूत्र से इसका उत्पादन किया. इसको सबसे पहले आधा बीघा में उत्पादन करके इसका प्रयोग किया अपने दोस्तों रिश्तेदारों को यह निशुल्क वितरित भी किया. जिसके बाद अचूक फायदे प्राप्त हुए तत्पश्चात इस बार इन्होंने इसी काले चावल को ढाई एकड़ की भूमि में उत्पादन कर लिया है.

काली चावल के उत्पादन के साथ-साथ अरविंद प्रताप ने अपने यहां एक बीघा में काला गेहूं भी उत्पादित किया था जिसको उन्होंने अपने खाने के प्रयोग में लिया और अपने दोस्तों में भी बांट दिया. काले चावल और कई गेहूं के उत्पादन के बाद से क्षेत्र में चर्चाओं को दौर शुरू है.

प्राकृतिक तरीके से करते हैं खेती

आपको बता दें कि अरविंद प्रताप सिंह संपूर्ण खेती अपने यहां प्राकृतिक तरीके से करते हैं जिसमें खास तौर पर देशी गाय का गोबर और गोमूत्र का ही प्रयोग किया जाता है. परंपरागत तरीके से खेती करने पर अरविंद प्रताप आर्थिक परेशानियों से जूझते थे लेकिन जब से प्राकृतिक खेती और आधुनिक तरीके से उत्पादन शुरू किया है तो कम जगह में भी अच्छा उत्पादन कर पा रहे हैं और आर्थिक स्थिति में मजबूत सुधार हुआ है.

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अरविंद प्रताप सिंह प्रगतिशील किसान हैं. यह कृषि विभाग अनुसंधान केंद्रों से ट्रेनिंग लेने के बाद से इनके अंदर जागरूकता पैदा हुई तभी से उन्होंने प्राकृतिक तरीके से गाय की गोमूत्र और गोबर से फसलों का उत्पादन करना सीखा. उन्होंने अपने गांव में “गौ आधारित मॉडल तैयार करके नेचुरल कृषि फार्म” तैयार किया है. नेचुरल मिशन ओ नेचुरल फार्मिंग ट्रेनिंग सेंटर खोला है.

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यह अपने यहां प्राकृतिक तरीके से गोमूत्र और गोबर से खाद बनाकर फसल तैयार करना सिखाते हैं और यह किसानों को निशुल्क ट्रेनिंग देते हैं. अब तक लगभग 1500 किसानों को यह प्राकृतिक खेती करना सीखा चुके हैं और खास तौर पर काले चावल और काले गेहूं के उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं. अब इस बार फिर से 2000 किसानों को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं.

महंगा बिकता है काला चावल

बात करें काले चावल की तो यह मणिपुर और असम में सर्वाधिक पैदा किया जाता है. इस काले चावल की प्रजाति को चाखाऊ और कलावती के नाम से जाना जाता है. सामान्य तौर पर अन्य चावल की अपेक्षाकृत यह सर्वाधिक महंगा है और इसकी बिक्री की कीमत 250 रुपए प्रति किलोग्राम के साथ-साथ 400 रुपए प्रति किलोग्राम तक होती है. आसपास के क्षेत्र में इसकी डिमांड सामान्य तौर पर मंदिरों में नहीं है लेकिन ऑनलाइन बिक्री में सर्वाधिक महंगा बिकने वाला चावल है. प्रगतिशील किसान अरविंद भी इस चावल को ऑनलाइन बिक्री का प्रारूप तैयार कर चुके हैं. ट्रेनिंग में किसानों को अब यह उत्पादन के साथ-साथ ऑनलाइन बिक्री को भी बढ़ावा दे रहे हैं और उसके तौर तरीकों को भी शामिल किया है.

क्या हैं काले चावल की खूबियां?

कृषि विभाग के उपनिदेशक आर. एन. सिंह के अनुसार, इस काले चावल का चीन में अभिजात वर्ग के लोग इसका उत्पादन करते थे. इस चावल में अच्छा फाइबर्स हैं, एंटीऑक्सीडेंट के अच्छे गुण हैं, शरीर के अंदर विषैले तत्वों को बाहर करता है. चीन से ही यह मणिपुर, मेघालय, असम की तरफ आया है. इसकी गुणवत्ता बहुत अच्छी है. पूर्वांचल के कुछ जिलों से यह एक्सपोर्ट भी किया जाता है और वन नेशन वन प्रोडक्ट में भी यह काला चावल शामिल है. इटावा में भी इस काले चावल का उत्पादन यहां के लोग कर रहे हैं.

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उन्होंने बताया,

“प्राकृतिक खेती करने के बाद ही उत्पादन से यह गुणवत्ता युक्त रहता है और शरीर को अच्छा लाभ देता है. प्राकृतिक खेती में खाद तैयार करने के लिए गाय का गोबर, गोमूत्र, बेसन, गुड और पेड़ के नीचे की मिट्टी को मिलाकर तैयार किया जाता है. एंटी ऑक्सीडेंट अच्छा होने की वजह से यह काला चावल कैंसर रोधी में सहायक है.”

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