कभी थे जिगरी यार आज हैं जानी दुश्मन...बाहुबली धनंजय सिंह और अभय सिंह की अदावत की पूरी कहानी

संतोष शर्मा

29 Apr 2024 (अपडेटेड: 29 Apr 2024, 06:27 PM)

लोकसभा चुनाव में 90 के दशक में दोस्त से दुश्मन बने दो बाहुबली फिर आमने-सामने हैं. जौनपुर से बसपा के टिकट पर भले ही श्रीकला रेड्डी चुनाव लड़ रहीं हो लेकिन साख धनंजय सिंह की दांव पर है.

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Uttar Pradesh News : लोकसभा चुनाव में 90 के दशक में दोस्त से दुश्मन बने दो बाहुबली फिर आमने-सामने हैं. जौनपुर से बसपा के टिकट पर भले ही श्रीकला रेड्डी चुनाव लड़ रहीं हो लेकिन साख धनंजय सिंह की दांव पर है. वहीं, दूसरी तरफ धनंजय सिंह के चिर प्रतिद्वंद्वी और हाल ही में भाजपा के खेमे में आए विधायक अभय सिंह का भी जौनपुर की राजनीति से नाता है. अभय सिंह के नाना राजकेशर सिंह कभी जौनपुर से बीजेपी के सांसद थे, अब इस नाते अभय सिंह भी जौनपुर में भाजपा प्रत्याशी कृपा शंकर सिंह के लिए प्रचार कर रहे हैं. ऐसे में एक तरफ धनंजय सिंह तो दूसरी तरफ अभय सिंह आमने-सामने हैं.

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छात्र राजनीति से शुरुआत

लखनऊ विश्वविद्यालय में एक साथ छात्र राजनीति की शुरुआत करने वाले अभय सिंह और धनंजय सिंह कभी एक ही सिक्के के दो पहलू थे, लेकिन आज नदी के दो अलग-अलग किनारे. 90 के दशक के ये दो दोस्त आखिर क्यों दुश्मन बन गए? आज क्यों धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी कह रही हैं कि उनके पति  धनंजय सिंह की जान को खतरा है? दूसरी तरफ अभय सिंह कह रहे है धनंजय सिंह, लॉरेंस बिश्नोई का करीबी है, उससे बड़ा कोई गुंडा नहीं है. 

साल था 1991 जब लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति चरम पर थी. लखनऊ विश्वविद्यालय का दबदबा पूरे प्रदेश में फैला था. तभी एंट्री हुई जौनपुर से रिश्ता रखने वाले तीन लड़कों की, नाम था धनंजय सिंह, अभय सिंह और अरुण उपाध्याय. धनंजय, अभय और अरुण तीनों ऐसे तगड़े दोस्त थे कि उनकी तिकड़ी विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध हो गई. वर्चस्व को बढ़ाने के लिए तय हुआ कि अरुण उपाध्याय को विश्वविद्यालय के महामंत्री का चुनाव लड़ाया जाए. 1994 में अरुण को चुनाव लड़वाया गया वो लेकिन   चुनाव हार गए. 

इस तिकड़ी का था जलवा 

हालांकि, इन सबके बीच धनंजय सिंह और अभय सिंह के विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति के तमाम आपराधिक मामलों में नाम आने लगे और उनकी धमक बढ़ने लगी. धमक ऐसी बढ़ी कि रेलवे के ठेकों पर एक छत्रराज करने वाले उस समय के माफिया अजीत सिंह को भी धनंजय-अभय की जोड़ी ने चुनौती दे डाली. रेलवे के स्क्रैप के ठेकों में अजीत सिंह के साथ-साथ अभय सिंह और धनंजय सिंह का भी कट लगने लगा. 

धीरे-धीरे धनंजय और अभय की जोड़ी ने रेलवे के साथ-साथ बीएसएनल के ठेके लेने और उनको मैनेज करना शुरू कर दिया. इसी बीच लखनऊ के रहने वाले और अभय सिंह के करीबी ठेकेदार मनीष सिंह को लखनऊ के इंदिरा नगर का एक बड़ा ठेका मिल गया. कहा जाता है की धनंजय सिंह चाहता था कि मनीष के इस ठेके में उसका भी एक आदमी पार्टनर हो जाए, लेकिन अभय ने मना कर दिया और कह दिया मनीष अकेले काम करेगा कोई पार्टनर नहीं होगा.  

यहां से शुरु हुई अदावत

अभय सिंह से करीबी के चलते मनबढ़ हो चुके मनीष सिंह ने भी धनंजय सिंह के लोगों को बैरंग लौटा दिया. इसके बाद इंदिरा नगर में दिनदहाड़े साइट पर ही मनीष की गोली मारकर हत्या कर दी गई. कहा गया इस हत्या के पीछे धनंजय सिंह का हाथ था. मनीष की हत्या से दोनों ही माफियाओं के बीच वसूली की रकम को लेकर टकराव शुरू हो गया.  जनवरी 1996 में अभय सिंह एक पुराने मामले में जेल चला गया और उसके साथी धनंजय सिंह और केडी सिंह फरार हो गए. धनंजय पर 50,000 का इनाम हुआ और फिर धनंजय  के फेक एनकांउटर की कहानी सामने आई. 

अभय सिंह जेल में था लिहाजा उसके पास वही पैसा पहुंचता जो धनंजय सिंह चाहता. जबकि, अभय के लोग बताते कि धनंजय सिंह वसूली का एक बड़ा हिस्सा खुद रख रहा है और वह बेईमानी कर रहा है. लेकिन अभय सिंह और धनंजय सिंह की दोस्ती में आया मनमुटाव उस समय दुश्मनी में तब्दील हो गया, जब फैजाबाद के सरायराशि के रहने वाले और अभय सिंह के रिश्तेदार संतोष सिंह की हत्या कर दी गई. लंबे समय तक UP STF में माफियाओं पर नकेल कसने वाले रिटायर्ड आईपीएस राजेश पांडे बताते हैं कि सरायराशि के संतोष सिंह की हत्या में अतीक अहमद के करीबी और मौजूदा समय में 5 लाख के इनामी गुड्डू मुस्लिम की भी भूमिका थी. गुड्डू मुस्लिम ने इस बात को STF की पूछताछ में कुबूला था. 

जब दोस्त बन गए जानी दुश्मन

संतोष सिंह की हत्या के बाद से अभय सिंह और धनंजय सिंह के बीच मनमुटाव खुली दुश्मनी में बदल गया. 1996 से साल 2000 तक अभय सिंह जेल में रहा तो वहीं धनंजय सिंह ने इस दौरान फरारी काटी. फेक एनकाउंटर की कहानी के बाद साल 2002 में धनंजय सिंह रारी सीट से विधायक होकर माननीय हो गया. राजनीति में  किस्मत तो अभय सिंह ने भी आजमाई लेकिन अभय सिंह चुनाव हार गया. धनंजय सिंह विधायक बन गया तो राजनीतिक कद का फायदा उठाया और अपना वर्चस्व बढ़ता चला गया. दूसरी तरफ अभय सिंह खुलकर मुख्तार अंसारी के खेमे में शामिल हो गया.  


दोनों के बीच अदावत इतनी बढ़ी की हर बड़े हत्याकांड में धनंजय सिंह, अभय सिंह का और अभय सिंह, धनंजय सिंह का नाम लेने लगे. बसपा सरकार में हुए सीएमओ परिवार कल्याण विनोद आर्य हत्याकांड में भी अभय सिंह का नाम आया और अभय सिंह ने इसे धनंजय सिंह की साजिश बताया. हालांकि, बाद में सीबीआई ने अभय सिंह को क्लीन चिट दे दी. 

धनजंय सिंह पर हमला

दोनों के बीच दुश्मनी इतनी बढ़ी की दोनो एक दूसरे की जान लेने पर आमादा हो गए.  4 अक्टूबर 2002 को वाराणसी के टकसाल सिनेमा के पास धनंजय सिंह के काफिले पर उस वक्त हमला हुआ जब वह करीबी रामजी सिंह की पत्नी को नदेसर स्थित एक अस्पताल में देखने जा रहे थे.  रास्ते में सफारी और बोलेरो से हमलावरों ने ताबड़तोड़  ताबड़तोड़ फायरिंग की जिसमें धनंजय सिंह और उसका गनर घायल हुआ. इस मामले में धनंजय सिंह की तरफ से दर्ज कराई गई एफआईआर में अभय सिंह, संदीप सिंह, संजय रघुवंशी, सत्येंद्र सिंह बबलू समेत कुल 6 लोग नामजद किए गए.

तो वहीं दूसरी तरफ साल 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान दिल्ली स्पेशल सेल के द्वारा लॉरेंस बिश्नोई गैंग के शूटर दिव्यांश शुक्ला को पकड़ा गया. दिव्यांश शुक्ला को पकड़ा गया. दिव्यांश शुक्ला एनआईए के द्वारा गिरफ्तार विकास देवगढ़ का खास था और कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के दौरान लॉरेंस बिश्नोई गैंग के शूटर अभय सिंह की हत्या की फिराक में थे. 

दिलचस्प हुआ जौनपुर का चुनाव

यही वजह थी कि जौनपुर जेल से धनंजय सिंह को जब बरेली जेल शिफ्ट किया गया तो जौनपुर से बसपा प्रत्याशी और धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी ने पति की जान को खतरा बताया तो वहीं दूसरी तरफ अभय सिंह ने कहा कि धनंजय उत्तर भारत का सबसे बड़ा माफिया डॉन है. उसको लोगों से नहीं लोगों को उससे खतरा है. फिलहाल, एक बार फिर धनंजय सिंह और अभय सिंह आमने-सामने हैं. जौनपुर लोकसभा सीट पर एक तरफ धनंजय सिंह की पत्नी चुनाव लड़ रही है तो वहीं दूसरी तरफ एसपी विधायक होकर बीजेपी खेमे में आ गए अभय सिंह अपने ननिहाल पहुंचकर भाजपा प्रत्याशी कृपा शंकर सिंह के लिए लोगों से मुलाकात कर रहे हैं. 

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