UP चुनाव: रायबरेली में साख बचाने की कोशिश में कांग्रेस, जानिए क्या हैं मौजूदा सियासी हालात

भाषा

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अमेठी में कांग्रेस को पछाड़ने के बाद, भारतीय जनता पार्टी अब उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के एकमात्र गढ़ रायबरेली को ध्वस्त करने के लिए पूरे जोर-शोर से जुटी हुई है. अगले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए पार्टी का लक्ष्य आगामी यूपी विधानसभा चुनाव में जिले की सभी सीटों पर जीत हासिल करना है.

रायबरेली 2019 में कांग्रेस के हिस्से में आई यूपी की एकमात्र लोकसभा सीट थी, यहां तक कि पार्टी की महत्वपूर्ण अमेठी सीट भी बीजेपी के हिस्से में आ गई थी. अमेठी से स्मृति ईरानी ने तत्कालीन सांसद राहुल गांधी को हराया था.

विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस को रायबरेली की महज दो विधानसभा सीटों- रायबरेली (सदर) और हरचंदपुर- पर जीत मिली थी. कांग्रेस की अदिति सिंह और राकेश सिंह को इन सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि, बाद में दोनों बीजेपी में शामिल हो गए और इस बार बीजेपी ने इन्हें मैदान में उतारा है. कभी कांग्रेस के सिपाही रहे, दोनों विधायक अब उसके खिलाफ ही ताल ठोकेंगे।

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रायबरेली जिले में छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं- बछरावां (आरक्षित), सरैनी, ऊंचाहार, सलोन (आरक्षित), सदर और हरचंदपुर.

पिछले चुनाव में बछरावां, सरैनी और सलोन में क्रमश: बीजेपी के राम नरेश रावत, धीरेंद्र बहादुर सिंह और दल बहादुर ने जीत हासिल की थी, वहीं ऊंचाहार सीट से एसपी के मनोज कुमार पांडे निर्वाचित हुए थे. 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस और एसपी ने सहयोगी के रूप में लड़ा था.

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कांग्रेस का दावा है कि इस निर्वाचन क्षेत्र में जो भी विकास हुआ है, वह यूपीए सरकार के दौरान हुआ है, हालांकि बीजेपी इसका कड़ा विरोध करती है.

कांग्रेस प्रवक्ता विनय द्विवेदी ने कहा, ‘‘2004-2014 के दौरान, तत्कालीन यूपीए सरकार ने उस समय रायबरेली को एक महिला अस्पताल, एम्स, पांच राष्ट्रीय राजमार्ग, रेल कोच फैक्टरी, रेलवे डबल ट्रैक सहित 12500 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाएं दी थीं. पिछले सात वर्षों में, बीजेपी यहां या अमेठी में भी कोई नई परियोजना नहीं लगा सकी है.’’

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हरचंदपुर से इस बार बीजेपी प्रत्याशी के रूप में वोट मांग रहे राकेश सिंह ने कहा, ‘‘यहां के मतदाताओं का गांधी परिवार से जो भावनात्मक जुड़ाव था, वह समय बीतने के साथ कम हो गया है और स्थानीय लोगों से उनका जुड़ाव बढ़ रहा है.’’

उन्होंने दावा किया, ‘‘प्रियंका (गांधी) का रायबरेली में कोई असर नहीं है. उनकी उपस्थिति कहीं और हो सकती है लेकिन लोगों ने उन्हें चुनाव के समय के अलावा यहां नहीं देखा है. गांधी परिवार क्षेत्र को विकास देने या भावनात्मक बंधन को बनाए रखने में विफल रहा है.”

कांग्रेस के विकास के दावों को खारिज करते हुए सिंह ने कहा, ‘‘इंदिरा गांधी के समय में स्थापित अधिकांश उद्योग समय बीतने के साथ बंद हो गए. इसके अलावा, निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के कार्यों से स्थानीय लोगों को लाभ नहीं हुआ.’’ उन्होंने दावा किया कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी से किसी भी स्थानीय युवा को लाभ नहीं हुआ है.

उन्होंने कहा, ‘यहां सभी सीटों पर सीधा मुकाबला बीजेपी-समाजवादी पार्टी के बीच होगा. कांग्रेस का समय समाप्त हो गया है और उसे सभी सीटों पर केवल 10000 से 12000 वोट ही मिलेंगे, उनमें से कुछ पर उसकी जमानत भी जब्त हो सकती है.”

बीजेपी की जिला इकाई के अध्यक्ष रामदेव पाल ने कहा, ”बीजेपी रायबरेली में जबरदस्त मेहनत कर रही है, इस बार पार्टी यहां सभी छह सीटें जीतेगी. इसमें कोई संदेह नहीं है. अभी हम 2022 के विधानसभा चुनाव पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और उसके बाद यह हमारे लिए मिशन 2024 होगा.’’

उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी जीतकर यहां दोबारा कभी नहीं आई हैं, लोग चाहते हैं कि उनका प्रतिनिधि उनके बीच रहे.

सोनिया गांधी ने दिनेश प्रताप सिंह पर 1.6 लाख वोटों के कम अंतर के साथ अपनी सीट बरकरार रखी, जो अंतर 15 वर्षों में सबसे कम है. 2014 में, उन्होंने 3.5 लाख वोटों के अंतर से, 2009 में 3.7 लाख वोटों से और 2004 में 2.4 लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी.

दिनेश प्रताप सिंह के भाई राकेश सिंह ने कहा, ‘‘सोनिया गांधी का यहां विरोध इसलिए है क्योंकि वह एक बाहरी व्यक्ति हैं और लोग एक स्थानीय नेता चाहते हैं जो उनके लिए दिनेश प्रताप सिंह हैं, अगर वह फिर से लड़ते हैं, तो यहां से जीतेंगे.’’

कांग्रेस ने राकेश सिंह के खिलाफ हरचंदपुर से समाजवादी पार्टी से कांग्रेस में आए सुरेंद्र विक्रम सिंह को मैदान में उतारा है.सदर सीट पर अदिति सिंह के खिलाफ सबसे पुरानी पार्टी ने अभी तक उम्मीदवार का चायन नहीं किया है.

रायबरेली संसदीय क्षेत्र की छह विधानसभा सीटों में से पांच पर चौथे चरण में 23 फरवरी को मतदान होगा, जबकि सलोनी विधानसभा क्षेत्र में 27 फरवरी को पांचवें चरण में मतदान होना है.

इन सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी मैदान में है.

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