लक्ष्मीकांत वाजपेयी: नई जिम्मेदारी में अब रणनीतिक कुशलता की होगी परीक्षा

शिल्पी सेन

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उत्तर प्रदेश की सत्ता तक पहुंचने के लिए यूपी बीजेपी की ‘कम बैक’ टीम का अहम चेहरा और यूपी बीजेपी के कप्तान रहे लक्ष्मीकांत वाजपेयी एक बार फिर नई जिम्मेदारी के साथ लौटे हैं. प्रदेश अध्यक्ष पद का कार्यकाल पूरा करने के बाद पांच साल से कोई अहम जिम्मेदारी नहीं पाने वाले लक्ष्मीकांत वाजपेयी को जॉइनिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है.

कहा जा रहा है कि हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने अपने दौरे में इसका खाका खींच दिया था. हालांकि, ये फैसला उस समय हुआ है जब रविवार, 7 नवंबर को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होनी है. खास बात ये है कि लक्ष्मीकांत वाजपेयी खुद भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं.

शुक्रवार, 5 नवंबर को भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने ज्वॉइनिंग कमेटी का गठन करते हुए पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी को अध्यक्ष और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और डॉ. दिनेश शर्मा और पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह को सदस्य नियुक्त किया है.

वैसे तो बीजेपी में चुनाव के समय में अलग-अलग कमेटियां काम करती हैं पर इसमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष को दायित्व मिलने की चर्चा खास तौर पर है और इसके मायने भी खोजे जा रहे हैं. पिछले कुछ दिनों में ही बीजेपी ने दिल्ली से लखनऊ तक कई महत्वपूर्ण नेताओं की जॉइनिंग कराई है. इसमें सबसे प्रमुख नाम जितिन प्रसाद का है. दिल्ली में उनको पार्टी में शामिल करने के बाद से ही उनको अहम जिम्मेदारी मिलने की चर्चा थी. हाल ही में उनको विधान परिषद में मनोनीत करवाकर और योगी सरकार में मंत्री बनवाकर पार्टी ने उनको लेकर रणनीति साफ कर दी है.

कितनी अहम है जिम्मेदारी

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देखा जाए तो चुनावी साल में यूपी बीजेपी की जॉइनिंग कमेटी का इंचार्ज होना कामकाज के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है. पार्टी ‘चुनाव मोड’ में है और लगातार पार्टी दूसरे दलों के नेताओं को शामिल करवा रही है. रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाने के मामले में आरोपी जितेंद्र सिंह बबलू को हाल ही में पार्टी में शामिल कर बीजेपी को भारी किरकिरी का सामना करना पड़ा था. वहीं, तो सांसद रीता जोशी ने भी इसका विरोध किया. पार्टी के अंदर से भी बबलू के विरोध में आवाज उठी. आनन-फानन में पार्टी ने बबलू की सदस्यता निरस्त कर दी. खास बात ये है कि लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने भी उस समय इस बात को लेकर आवाज उठाई थी.

तब तक पार्टी की काफी किरकिरी इस बात को लेकर हो चुकी थी कि पार्टी के जिम्मेदारों ने आखिर बबलू को शामिल करने से पहले इस बात का ध्यान क्यों नहीं रखा. पार्टी की तरफ से हमेशा यही कहा जाता रहा कि किसी को भी पार्टी में शामिल तभी किया जाता है जब उसके बारे में जांच पड़ताल कर ली जाती है. यही नहीं कुलदीप सिंह सेंगर के रिश्तेदार अरुण सिंह का साथ देने पर भी बीजेपी निशाने पर रही.

अब लक्ष्मीकांत वाजपेयी को ही नेताओं को शामिल करने के लिए दायित्व दिया गया है यानी औपचारिक तौर पर पार्टी में आने की चाह रखने वाले नेताओं को लक्ष्मीकांत वाजपेयी और इस कमेटी की स्क्रीनिंग से गुजरना होगा.

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पार्टी का सबसे बड़ा अभियान सदस्यता अभियान के रूप में चल रहा है. इसमें 1.5 करोड़ नए सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा गया है. ऐसे में जॉइनिंग कमेटी का एक फैसला जहां पार्टी की जीत की राह को आसान बना सकता है वहीं एक गलत जॉइनिंग से पार्टी की किरकिरी भी हो सकती है.

वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल कहते हैं, “लक्ष्मीकांत वाजपेयी की खासियत उनकी आक्रामक शैली है, लेकिन ये आक्रामक शैली उस समय ज्यादा काम आती है जब पार्टी सत्ता में नहीं हो. पार्टी को 2014 में इसका लाभ भी मिला. हालांकि, अब राज्य और केंद्र में पार्टी की सरकार है तो अब इस आक्रामकता की दरकार नहीं है.”

पार्टी में पूरे पांच साल तक लक्ष्मीकांत वाजपेयी को अहमियत मिलने की चर्चा तो होती रही पर हर बार इस बात को भी कहा जाता रहा कि उनको कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है. पार्टी में उनके समर्थक कई बार उनकी उपेक्षा को लेकर दबी जुबान से चर्चा भी करते रहे. पर इस दौरान एक बात और लक्ष्मीकांत वाजपेयी के फेवर में गई. वो ये कि जब भी उनके नाम को लेकर चर्चा रही और किसी पद पर उनको जगह नहीं मिली तो लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने हमेशा ये कहा कि वो बीजेपी के कार्यकर्ता हैं और पार्टी के लिए अनुशासित रूप से कार्य करते रहेंगे.

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लक्ष्मीकांत वाजपेयी के प्रदेश अध्यक्ष रहते कई नेताओं ने बीजेपी जॉइन की थी. इस कार्य में भी उनका अनुभव काम आया. उनकी इस उपलब्धि को भी ध्यान में रखा गया है. इस समय बीजेपी के लिए दूसरे दलों के नेताओं को अपने पाले में लाना रणनीतिक दृष्टि से फायदेमंद हो सकता है.

एक और बात जो लक्ष्मीकांत वाजपेयी के पक्ष में जाती दिखती है वो ये कि विशेषकर पश्चिम में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर वाजपेयी को देखा जाता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई ब्राह्मण चेहरे महेंद्र नाथ पांडे, रमापति राम त्रिपाठी, शिव प्रताप शुक्ल जैसे नेता हैं पर पश्चिम के समीकरण को दुरुस्त करने के लिहाज से वाजपेयी की नियुक्ति से एक संदेश देने की कोशिश पार्टी ने की है. ये भी कहा जा रहा है कि यूपी बीजेपी अध्यक्ष ने भी वाजपेयी को लाने में अहम भूमिका निभाई.

जॉइनिंग कमेटी अध्यक्ष की चुनौतियां

बीजेपी का सीधा लक्ष्य इस समय यूपी विधानसभा चुनाव हैं जिसके लिए ज्यादा समय नहीं बचा है. चुनाव से पहले जिस तरह से नेताओं का एक दल से दूसरे दल जाने का सिलसिला चलता है उस हिसाब से पार्टी में नेताओं के शामिल होने का ये समय है. लक्ष्मीकांत वाजपेयी के करीबी एक नेता का कहना है, “यही वजह है कि वाजपेयी जी जैसे वरिष्ठ नेता को जिम्मेदारी सौंपी गई है. साथ ही आने वाले दिनों में पश्चिम में आप इसका प्रभाव देखेंगे.”

ये और बात है कि पार्टी चुनाव से पहले किसी दल के नेता को शामिल करने से मना नहीं करने वाली है. जॉइनिंग कमेटी की चुनौती इस बात को लेकर भी है कि किसी जॉइनिंग पर उंगली न उठे.

लक्ष्मीकांत वाजपेयी को अपने प्रोफाइल में बदलाव के साथ ही आक्रामकता की जगह रणनीति से काम लेना होगा. वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल के अनुसार, “चूंकि यूपी के मुख्यमंत्री और पूरे चुनाव को फ्रंट से लीड करने वाले योगी आदित्यनाथ बहुत ही आक्रामक शैली में आने वाले दिनों में चुनाव प्रचार करने वाले हैं, इसलिए किसी और नेता की आक्रामकता के लिए कोई स्थान नहीं होगा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी को बदली हुई शैली में और अलग रणनीति से काम करना होगा.”

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