अजय सिंह बिष्ट कैसे बन गए योगी आदित्यनाथ? पहली बार CM बनने का दिलचस्प किस्सा भी जानिए

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10 मार्च 2017. बीजेपी नेता योगी आदित्यनाथ को तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का फोन आता है. इस फोन कॉल के दौरान योगी को पता चलता है कि पीएमओ ने उनके पोर्ट ऑफ स्पेन दौरे को मंजूरी नहीं दी है. यह बात सुनकर योगी को निराशा होती है. इसके अगले ही दिन यानी 11 मार्च को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आते हैं. बीजेपी को 403 सदस्यीय विधानसभा में 312 सीटों पर जीत मिलती है. फिर योगी के साथ कुछ ऐसा होता है, जो उनकी सियासी राह को एक झटके में बड़ी मंजिल की तरफ मोड़ देता है.

रविवार, 5 जून को सीएम योगी आदित्यनाथ के 50वें जन्मदिन के अवसर पर हम आपको उनके पहली बार मुख्यमंत्री बनने से जुड़ा दिलचस्प किस्सा बताने जा रहे हैं. इसके साथ ही इस स्टोरी में आपको योगी आदित्यनाथ के जीवन से जुड़े और भी तमाम रोचक पहलू पढ़ने को मिलेंगे.

योगी आदित्यनाथ ने ‘आज तक’ को दिए एक इंटरव्यू के दौरान खुद के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के किस्से के बारे में बताया था. दरअसल, उनसे पूछा गया था, ”क्या आपको उम्मीद थी कि अगर पार्टी (बीजेपी) जीत जाती है तो आप मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार होंगे?”

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इस सवाल के जवाब में तब योगी ने कहा था, ”मैंने इसके विषय में कभी सोचा नहीं था और मेरी इस तरह की कोई इच्छा भी नहीं थी… विधानसभा चुनावों के दौरान हमने उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों के अनेक क्षेत्रों में भी काम किया. पिछले तीन महीने काफी व्यस्त रहे और इसलिए मैं एक हफ्ते का आराम चाहता था और सौभाग्य से सही समय पर मुझे एक अवसर भी मिला. मुझे 4 या 5 मार्च को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जी का फोन आया. उन्होंने मुझे बताया कि पोर्ट ऑफ स्पेन में एक कार्यक्रम है और पूछा कि मैं जा सकता हूं या नहीं. मुझे लगा कि चुनाव प्रचार 6 मार्च को खत्म हो जाएगा और उसके बाद मैं जा सकूंगा. मैंने अपने वीजा के लिए आवेदन किया. मेरा पासपोर्ट जमा कराया गया, लेकिन पीएमओ ने मेरा पासपोर्ट लौटा दिया.”

इसके आगे उन्होंने बताया,

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  • ”10 मार्च को विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने मुझे बताया कि उस कार्यक्रम के लिए किसी और सांसद को भेजा जाएगा. मुझे थोड़ी निराशा हुई. मुझे लगा कि इस तरह के प्रतिनिधिमंडल के साथ पहले भी मुझे तीन मौके मिले थे, जिनमें से दो में मैं स्वयं ही नहीं गया. उसी दिन गोरखपुर लौटने के दौरान मुझे विदेश मंत्री जी का फोन आया, जिन्होंने बताया कि पीएमओ ने मुझे यात्रा पर जाने से मना कर दिया है, क्योंकि प्रधानमंत्री जी को लगता है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा के नतीजे जब कल आएंगे तो मेरी जरूरत होगी. मैं होली उत्सव के लिए गोरखपुर लौट आया और फिर पार्टी की बैठक के लिए दिल्ली गया.”

  • ”जब नतीजे आए, तब मैंने पार्टी के किसी भी सदस्य से मुलाकात नहीं की. सुबह करीब सवा दस बजे अमित शाह जी के आग्रह पर मैं उनसे मिलने पहुंचा और हमारे बीच चुनाव के नतीजों पर एक सामान्य चर्चा हुई, जिसके बाद मैं गोरखपुर लौट गया. शाम को अमित जी ने मुझे फिर फोन किया और जब उन्हें पता चला कि मैं गोरखपुर में हूं तो उन्होंने अगली सुबह मेरे लिए एक चार्टर प्लेन का इंतजाम किया, जिससे मैं दिल्ली आया और उनसे मिला. उन्होंने मुझसे कहा कि आपको लखनऊ जाना है और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी है.”

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    इस तरह योगी आदित्यनाथ ऐसे समय में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, जब इस पद के लिए राजनाथ सिंह, उमा भारती, मनोज सिन्हा, स्वतंत्र देव सिंह, दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य जैसे कई बीजेपी नेताओं को लेकर भी लगातार अटकलें सामने आ रही थीं.

    सियासी सफर की तरह योगी आदित्यनाथ का निजी जीवन भी इसी तरह के दिलचस्प मोड़ों से होकर गुजरा है. इन मोड़ों से गुरजते हुए उनका नाम तक बदल गया.

    अजय सिंह बिष्ट से योगी बनने का सफर

    योगी आदित्यनाथ का नाम पहले अजय सिंह बिष्ट था. अजय का जन्म 5 जून 1972 को उत्तरकाशी जिले के मशालगांव में हुआ था, जब उनके पिता आनंद सिंह बिष्ट वहां तैनात थे. अजय के पिता आनंद सिंह बिष्ट एक फॉरेस्ट रेंजर थे और मां सावित्री देवी गृहणी. इस दंपती की तीन बेटियां हैं— पुष्पा बिष्ट, कौशल्या बिष्ट और शशि बिष्ट, चार लड़के हैं- मनेंद्र सिंह बिष्ट, अजय सिंह बिष्ट, शैलेंद्र सिंह बिष्ट और महेंद्र सिंह बिष्ट.

    अजय अपने पैतृक गांव पंचूर में पले-बढ़े, जो पौड़ी गढ़वाल में है. सावित्री देवी के मुताबिक, बचपन से ही अजय को गायों से लगाव था. स्कूल के बाद घर की गायों को चराने ले जाना अजय के दैनिक काम का हिस्सा था.

    अजय ने अपनी प्राथमिक स्कूली शिक्षा थांगड़ सरकारी प्राथमिक स्कूल से हासिल की. थांगड़ का सरकारी स्कूल 8वीं कक्षा तक ही था, ऐसे में अजय 9वीं कक्षा के लिए चमकोट और 10वीं कक्षा के लिए टिहरी के गाजा स्थित एक सरकारी स्कूल में गए.

    11वीं और 12वीं की पढ़ाई के लिए अजय ऋषिकेश गए, जहां उन्होंने श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज में दाखिला लिया और पीसीएम (फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स) के साथ अंग्रेजी और हिंदी को चुना. ऋषिकेश में अजय अपने बड़े भाई मनेंद्र के साथ रहते थे, जो उस समय वहीं के एक कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रहे थे. इसके बाद साल 1989 में अजय अपने ग्रेजुएशन के लिए कोटद्वार के पीजी गवर्नमेंट कॉलेज चले गए.

    अजय कॉलेज के दिनों में छात्र राजनीति से जुड़ गए. वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में शामिल होकर इस क्षेत्र में काफी सक्रिय हो गए.

    कोटद्वार से ग्रेजुएशन करने के बाद अजय ने 1992 में पंडित ललित मोहन शर्मा गवर्नमेंट पीजी कॉलेज, ऋषिकेश में एमएससी के लिए एडमिशन लिया. इसके बाद 1993 की शुरुआत में एक बार अजय जब गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मठ के महंत अवैद्यनाथ से मिले, तो अवैद्यनाथ ने उनसे कहा कि वह एक जन्मजात योगी हैं और एक दिन उसका वहां आना निश्चित है. महंत अवैद्यनाथ के साथ अजय की यह पहली बातचीत नहीं थी. वह कुछ समय के लिए 1990 में भी उनसे मिले थे, जब महंत ‘राम जन्मभूमि मुक्ति’ आंदोलन के लिए भारत भ्रमण पर निकले थे.

    अजय अवैद्यनाथ से काफी प्रभावित हुए थे. इसी का नतीजा था कि नवंबर 1993 में अजय ने अपने गांव, अपने माता-पिता और दोस्तों के साथ ही अपनी पढ़ाई भी छोड़ दी और वह गोरखपुर चले गए. उन्होंने अवैद्यनाथ को गुरु मान लिया. 15 फरवरी 1994 को अवैद्यनाथ ने नाथ पंथ योगी के रूप में अजय का अभिषेक कर दिया.

    जब अजय सबकुछ छोड़कर गोरखपुर चले गए, उसके दो महीने बाद उनके माता-पिता को अखबार से उनके संन्यास लेने की जानकारी मिली.

    इससे पहले तक उनके माता-पिता यही सोच रहे थे कि वह किसी रोजगार की तलाश में गोरखपुर गए हैं. नई जानकारी मिलने के बाद अजय के माता-पिता अगली ही ट्रेन से गोरखपुर पहुंचे और मठ में अजय को संन्यासी की वेशभूषा में देखकर हैरान रह गए. उस समय महंत अवैद्यनाथ शहर से बाहर गए हुए थे और अजय को ही अपने माता-पिता को शांत करना पड़ा, उन्होंने अपने गुरु से फोन पर उनकी बात कराई. महंत अवैद्यनाथ ने अजय के पिता को बताया कि उनका बेटा अजय अब योगी आदित्यनाथ बन चुका है. उन्होंने अजय के माता-पिता से उनके आगे के सफर के लिए अनुमति भी मांगी. शुरुआती विरोध के बाद आखिरकार उनके माता-पिता मान ही गए.

    योगी के बारे में एक दिलचस्प बात यह भी है कि चुनावी फॉर्म में वह अपने पिता के नाम के कॉलम में महंत अवेद्यनाथ का नाम लिखते हैं.

    जब अपना पहला चुनाव हार गए थे अजय

    साल 1992 में अजय अपने कॉलेज में छात्र निकाय के चुनावों में सचिव पद के लिए चुनाव लड़ना चाहते थे. वह एबीवीपी से सचिव पद के लिए अपनी उम्मीदवारी पर मुहर लगवा सकते थे, अगर इस संगठन के एक और छात्र पद्मेश बुदलाकोटी ने भी उसी पद के लिए टिकट न मांगा होता. हालांकि, आंतरिक विवाद को सुलझाने के लिए एबीवीपी ने तीसरे व्यक्ति दीप प्रकाश भट्ट को टिकट दे दिया. जब एबीवीपी का टिकट नहीं मिला, तो अजय निर्दलीय के रूप में उस चुनाव में खड़े हो गए. अजय चुनाव हार गए. यह उनका पहला चुनाव था.

    ऐसे आगे बढ़ा योगी का राजनीतिक सफर

    1996 में योगी आदित्यनाथ को महंत अवैद्यनाथ के लिए चुनाव प्रचार के प्रबंधन का प्रभारी बनाया गया.

    1998 में जब अवैद्यनाथ ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लिया, तो योगी ने उनकी सीट गोरखपुर से अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और उसमें जीत भी हासिल की. इसके बाद योगी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और वह 5 बार इस सीट से सांसद चुने गए.

    2017 में जब योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने विधानमंडल का सदस्य बनने की अनिवार्यता के तहत विधान परिषद का सदस्य बनने का रास्ता चुना. मगर 2022 के विधानसभा चुनाव में वह विधायक बने हैं.

    अब एक ब्रैंड के रूप में नजर आने लगे हैं योगी!

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाने वाले योगी आदित्यनाथ अब एक ब्रैंड के रूप में नजर आने लगे हैं. उन्हें ‘बाबा बुल्डोजर’ का नया नाम मिल चुका है. एक मंझे हुए नेता की तरह योगी अब खुद को विनम्र दिखाने की कोशिश भी कर रहे हैं, खासकर पार्टी के अंदर. वह पार्टी के टॉप-2 नेताओं की बार-बार तारीफ करते नजर आ रहे हैं. साथ ही यह भी संदेश दे रहे हैं कि जीत के बाद जोश के साथ-साथ होश को बरकरार रखना भी जरूरी है. ऐसे में योगी आदित्यनाथ को निसंदेह बीजेपी में भविष्य के बड़े नेता के रूप में देखा जा रहा है. मगर ऐसा होने के लिए योगी को एक बार फिर जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरना होगा. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में ऐसा करना आसान नहीं होगा.

    (शांतनु गुप्ता की किताब ‘योगीगाथा’ के इनपुट्स के साथ)

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