क्या रामपुर उपचुनाव में BJP ने ध्वस्त कर दिया आजम खान का किला? कम वोटिंग के मायने समझिए

अमीश कुमार राय

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रामपुर (Rampur) और आजमगढ़ (Azamgarh) लोकसभा उपचुनाव के लिए वोटिंग हो चुकी है और अब सभी को चुनावी परिणाम का बेसब्री से इंतजार है. एक तरफ समाजवादी पार्टी है, जिसे अखिलेश यादव और आजम खान द्वारा खाली की गई लोकसभा सीटों पर जीत हासिल कर आगामी चुनावों के लिए अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाना है. दूसरी तरफ बीजेपी है, जो समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाली इन दोनों सीटों पर जीतकर खुद के और भी मजबूत होने का संदेश देना चाहती है. आजमगढ़ सीट पर तो बीएसपी ने भी गुड्डू जमाली को उतार कर दलित-मुस्लिम गठजोड़ को एक बार फिर से स्टैबलिश करने की कोशिश की है. इस बीच रामपुर उपचुनाव में हुई बेहद कम वोटिंग ने यहां के सियासी समीकरण को उलझा दिया है.

आजम खान (Azam Khan) और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम, दोनों ने ही प्रशासन पर मुस्लिम वोटर्स को डरा-धमका कर वोट नहीं डालने के आरोप लगाए हैं. ऐसे में इस बात की चर्चा छिड़ गई है कि क्या रामपुर में इस बार आजम खान अपनी सियासी ताकत को बचाने में कामयाब नहीं हुए हैं? आखिर रामपुर में कम वोटिंग के असल मायने क्या हैं?

आपको बता दें कि रामपुर में गुरुवार को हुए लोकसभा उपचुनाव में 41.01 फीसदी मतदान हुआ है. ऐसा माना जा रहा है कि आजादी के बाद पहली बार रामपुर में इतना कम मतदान देखने को मिला है. अगर रामपुर उपचुनाव में हुए मतदान को विधानसभावार देखें तो स्वार में 41.12 फीसदी, चमरौवा में 46.45 फीसदी, बिलासपुर में 46.80 फीसदी, रामपुर में 32.70 फीसदी और मिलक में 39.66 फीसदी वोट पड़ा है.

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स्वार से जहां अब्दुल्ला आजम विधायक हैं, तो वहीं रामपुर से खुद आजम खान विधानसभा चुनाव जीते हुए हैं. वोटिंग के बाद आजम खान और अब्दुल्ला आजम, दोनों लोगों का बयान आ चुका है कि जब प्रशासनिक मशीनरी का इस्तेमाल कर समाजवादी पार्टी के वोटर्स को बाहर निकलने ही नहीं देने था, तो चुनाव कराने का ही क्या मतलब. इन बयानों ने रामपुर में अलग-अलग तरह की चर्चाओं को जन्म दे दिया है.

अगर विधानसभा के हिसाब से वोटिंग पैटर्न को देखें तो स्थानीय जानकारों का मानना है कि चुनावी परिणाम चौंकाऊ हो सकते हैं. अब इसे विधानसभा क्षेत्रों में हुई वोटिंग के लिहाज से समझते हैं. रा्मपुर उपचुनाव में सर्वाधिक वोटिंग बिलासपुर विधानसभा में देखने को मिली है. यहां से बीजेपी के बलदेव सिंह औलख लगातार दो बार से विधायक का चुनाव जीतते चले आ रहे हैं. यहां उनका अच्छा प्रभाव समझा जाता है. ऐसे में यहां अधिक वोटिंग होने पर इसे बीजेपी के पक्ष में समझा जा रहा है.

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चमरौवा विधानसभा में लोधी और तुर्क (मुस्लिम) वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है. कम वोटिंग के बावजूद इस विधानसभा में दूसरे नंबर पर सर्वाधिक वोटिंग हुई है. बीजेपी ने रामपुर में इस बार घनश्याम लोधी को प्रत्याशी बनाया है. ऐसा माना जा रहा है कि इस वजह से लोध वोट बीजेपी की तरफ एकजुट हो सकता है. इस बात के संकेत भी मिल रहे हैं कि बीजेपी ने तुर्क वोटों में भी सेंध लगाने की कोशिश की है.

आजम खान के सर्वाधिक प्रभाव वाले क्षेत्र रामपुर में सबसे कम वोटिंग देखने को मिली है. इसके बावजूद माना जा रहा है कि यहां मुस्लिम वोटर्स ने अच्छी पोलिंग की है. ऐसे में यहां सपा को बढ़त देखने को मिल सकती है. इसी तरह स्वार विधानसभा में भी 50-50 के मुकाबले की बात कही जा रही है. मिलक विधानसभा से बीजेपी को 2022 के विधानसभा चुनावों में जीत मिली थी. यहां गंगवार वोटर्स का अच्छा प्रभाव है. ऐसा माना जाता है कि वोटर्स के इस समूह में भी बीजेपी की अच्छी पैठ है.

कुल मिलाकर देखें, तो इस बार रामपुर का चुनाव फंसा हुआ नजर आ रहा है. हालांकि सपा के उम्मीदवार और आजम के बेहद करीबी आसिम राजा ने दावा किया है कि उनकी जीत हो रही है. इसके उलट एक जमाने में आजम खान की ही करीबी रहे घनश्याम लोधी की मानें तो उनका कहना है कि अब मतगणना महज उनकी जीत की पुष्टि ही करेगी.

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