बुर्का-हिजाब पहने छात्राओं ने रैंप पर किया कैटवॉक, जमीयत-ए-उलेमा ने जताई ये बड़ी आपत्ति

संदीप सैनी

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उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में स्थित एक प्रतिष्ठित कॉलेज का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इसमें बुर्का और हिजाब पहने कुछ छात्राएं फैशन शो के दौरान कैटवॉक करते हुई नजर आ रही हैं. अब इस वीडियो के वायरल होने पर जमीयत-ए-उलेमा की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई है.

जमीयत-ए-उलेमा के जिला कन्वीनर मौलाना मुकर्रम कासमी ने कहा है कि बुर्का फैशन शो का हिस्सा नहीं है, जिन बच्चों से यह प्रोग्राम कराया गया है. यह एक मजहब को टारगेट करने वाली बात है. ऐसा करके कहीं ना कहीं मुसलमान समाज और उनकी धार्मिक भावनाओं को भड़काया गया है.

उन्होंने कहा कि जमीयत-ए-उलेमा इसकी मज़म्मत करती है और कॉलेज प्रशासन और जिला प्रशासन से अपील करती है कि वह आगे से ऐसे कार्यक्रमों से दूर रहे. अगर फिर कोई ऐसा प्रोग्राम करेगा तो जमीयत ए उलेमा उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए लड़ेगा. चाहे इसके लिए उन्हें हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ही क्यों न जाना पड़े. किसी भी मजहब के ऊपर टिप्पणी करना किसी का मौलिक अधिकार नहीं है. इसमे हमारे बुर्के को टारगेट बनाया गया है.

क्या है पूरा मामला?

मुजफ्फरनगर जिले में प्रतिष्ठित स्कूल श्री राम कॉलेज में पिछले तीन दिनों से फैशन शो का एक कार्यक्रम चल रहा था, जिसमें मंदाकिनी सहित कहीं बड़ी फिल्मी हस्तियों ने हिस्सा लिया था. बताया जा रहा है कि इसी कार्यक्रम के समापन पर रविवार देर शाम फैशन शो के दौरान कुछ छात्राओं ने बुर्का और हिजाब पहनकर रैंप पर कैटवॉक किया था, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

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टीचर ने क्या कहा?

इस बारे में इन छात्राओं के टीचर डॉक्टर मनोज का कहना है कि मुस्लिम परिवारों में कहीं ना कहीं यह रहता है कि महिलाओं को आगे नहीं आना है, जबकि हिजाब इनका बहुत बड़ा बलिदान है, जो उनके कॉन्फिडेंस को बहुत आगे लेकर जाता है. हम भी कुछ कर सकते हैं और काफी मेहनती लड़कियां हैं और मेरे यहां पर काफी दूरदराज से लड़की आ रही है. उन्होंने सोचा कि हमें भी कुछ करना चाहिए. साथ ही एक मैसेज लोगों को देना है और यह नहीं की मुस्लिम को फैशन से ना जोड़ा जाए तो मुस्लिम को हिज़ाब के माध्यम से जोड़ा है, जो कि इनका पर्दा भी है.

उन्होंने आगे कहा कि अगर आप सऊदी अरब, इराक या कुवैत जाए तो हिजाब को लेकर बहुत सारी संभावनाएं हैं. बहुत सारी अपॉर्चुनिटी भी है और हिजाब के स्पेशलिस्ट डिजाइनर होते हैं. हम एजुकेशन को लेकर हम तर्क या वितर्क को नहीं देख सकते और चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम हो या ईसाई एजुकेशन सब बराबर है. विशेष तर्क को लेकर आपको इंडिकेट नहीं कर सकते कि हिजाब जरूरी है और मैं ये बिलकुल नहीं कहता हूं कि हिजाब पहनकर आइए और ओपन रहिए.

मौलाना मुकर्रम कासमी ने जताया विरोध

वहीं,जमीयत ए उलेमा के मुज़फ्फरनगर के जिला कन्वीनर मौलाना मुकर्रम कासमी ने बताया कि बुर्के को फैशन शो में इस्तेमाल किया गया है, जबकि हमारा मानना यह है कि बुर्का जो है वह फैशन शो का हिस्सा नहीं है. जिन बच्चों से यह प्रोग्राम कराया गया है तो यह एक मजहब को टारगेट करने वाली बात है. कहीं ना कहीं मुसलमान मजहब को और उनकी धार्मिक भावनाओं को भड़काया गया है, इसलिए फैशन शो का हिस्सा बुर्का नहीं है, तो इसको फैशन शो में इस्तेमाल क्यों किया गया है?

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उन्होंने आगे कहा कि बुर्का किसको कहते हैं, बुर्का जो होता है वह एक कपड़ा होता है और जब महिला घर से बाहर निकलती है तो वह उसे पहन कर बाहर निकलती है, ताकि उसकी आज़ा, उसका चेहरा, उसका बदन कोई और आदमी ना देख सके तो बुर्के को पर्दे के लिहाज से उसको इस्तेमाल किया जाता है. आप उसी बुर्के को लाल-पीले कपड़ों में सिल्वा कर फैशन शो में इस्तेमाल करें, यह सरासर गलत है.

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