जयंत के BJP के साथ जाने से टूट रहा जाट-मुस्लिम समीकरण? शाहिद सिद्दीकी के इस्तीफे के मायने
लोकसभा चुनाव के तारीखों का एलान होते ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मची हुई है. इस चुनावी मौसम में राजनेता कपड़ों की तरफ पार्टियां बदल रहे हैं.
ADVERTISEMENT
Uttar Pradesh News : लोकसभा चुनाव के तारीखों का एलान होते ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मची हुई है. इस चुनावी मौसम में राजनेता कपड़ों की तरफ पार्टियां बदल रहे हैं. कोई पुराने साथी का साथ छोड़ रहा है तो कोई नये साथी का दामन थाम रहा है. वहीं सोमवार को जयंत चौधरी के करीबी माने जाने वाले नेता शाहिद सिद्दीकी ने रालोद का साथ छोड़ दिया है. शाहिद सिद्दीकी ने आरएलडी से इस्तीफा दिया है.
शाहिद सिद्दीकी ने आरएलडी से इस्तीफा देते हुए कहा कि, 'मैंने अपना त्यागपत्र राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी को भेज दिया है. मैं ख़ामोशी से देश के लोकतांत्रिक ढांचे को समाप्त होते नहीं देख सकता. मैं, जयंत सिंह और आरएलडी में अपने साथियों का आभारी हूं.'
उठ रहे हैं ये सवाल
वहीं अब सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री मोदी की मेरठ रैली के तुरंत बाद शाहिद सिद्दीकी ने जयंत चौधरी को अपना इस्तीफा क्यों भेजा? क्या शाहिद सिद्दीकी बीजेपी के साथ जयंत के गठबंधन से नाराज थे या फिर अब उन्हें आरएलडी में अपना भविष्य नहीं दिखाई दे रहा था? क्या बीजेपी से असहज होने की वजह से शाहिद सिद्दकी ने आरएलडी को अलविदा कह दिया या बीजेपी के साथ जाने के बाद जो तवज्जो आरएलडी को मिलनी चाहिए थी वह मिलती दिख नहीं रही थी.
यह भी पढ़ें...
ADVERTISEMENT
पीएम के रैली के बाद इस्तीफा
वहीं शाहिद सिद्दीकी के शब्दों को गौर से देखें तो उन्होंने लोकतंत्र की ढांचे का विध्वंस देख पार्टी से इस्तीफा देने का फैसला किया है. लेकिन शाहिद सिद्दीकी का प्रधानमंत्री मोदी से संबंध काफी मधुर बताए जाते रहे हैं. कुछ महीने पहले वह मुस्लिम प्रबुद्ध वर्ग को लेकर प्रधानमंत्री से मिले थे. यहां तक कि जब चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित किया गया तो उन्होंने इसकी प्रशंसा भी की थी. लेकिन रविवार को मेरठ की रैली में वह मंच पर नहीं दिखे और रैली के अगले दिन ही शाहिद सिद्दीकी ने पार्टी छोड़ दी.
अजीत सिंह के रहे हैं करीबी
बता दें कि मुस्लिम बुद्धिजीवियों में शाहिद सिद्दीकी का नाम बड़ा माना जाता है. वह नई दुनिया और उसके उर्दू संस्करण नई जमीन के संपादक रह चुके हैं. चौधरी अजीत सिंह के बेहद करीबी रहे लेकिन उन्होंने अब जयंत का साथ छोड़ दिया है. माना जा रहा है कि पार्टी में उन्हें वो तवज्जो नहीं मिल रही थी, जिसकी उन्हें उम्मीद थी. यहां तक कि मेरठ में पीएम के मंच पर भी उन्हें जगह नहीं मिली और राज्यसभा की उम्मीदें भी धूमिल होती जा रही थी.
ADVERTISEMENT
किस करवट बैठेगा ऊंट
बताया जा रहा है कि हाल के दिनों मे जयंत के साथ कोई दूसरा मुस्लिम चेहरा लगातार नजदीक बना हुआ है. यही नहीं बीजेपी के साथ गठबंधन के वक्त भी शाहिद सिद्दीकी समझौता करने वालों में शामिल नहीं थे. इसके अलावा माना जा रहा है की आरएलडी को राज्यसभा में कोई सीट गठबंधन में आने के बाद नहीं मिली. इससे उन्हें अपना भविष्य इस गठबंधन में नहीं दिखाई दे रहा था. दूसरी ओर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुसलमान इस गठबंधन को लेकर सहज नहीं थे. उन्हें लग रहा था कि 2013 के दंगों का जख्म जो की सपा और आरएलडी के गठबंधन के बाद से जाटों और मुसलमान के बीच भरने लगा था, वह फिर हरा हो सकता है. शाहिद की अब किस पार्टी का रूख करेंगे यह कहना मुश्किल है, लेकिन कांग्रेस से भी उनके रिश्ते अच्छे रहे हैं.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT