UP निकाय चुनाव में महाराष्ट्र का क्यों आ रहा है नाम? जानिए कोर्ट ने किस आधार पर लिया फैसला

संतोष शर्मा

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UP Nikay Chunav: उत्तर प्रदेश में होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर हाई कोर्ट ने मंगलवार को अहम फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को रद्द करते हुए फौरन चुनाव कराने का आदेश दिया है. उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव पर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए जल्द चुनाव कराने का आदेश तो दिया है लेकिन साथ ही ओबीसी को आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट को भी जरूरी बता दिया है. सवाल उठता है कि आखिर निकाय चुनाव को लेकर यह स्थिति कैसे पैदा हुयी? सरकार के सामने इस समय क्या संकट है और क्यों कटघरे में है बीजेपी?

उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव साल 2024 के आम लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है. अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए ही हर पार्टी अपने कोर वोटर के साथ-साथ अन्य जातियों के वोट बैंक पर भी नजर गड़ाए है. इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश में बीजेपी के निशाने पर प्रदेश का ओबीसी वोट बैंक है.

बीते 5 दिसंबर को उत्तर प्रदेश सरकार ने निकाय चुनाव की कार्रवाई शुरू करते हुए प्रदेश भर में स्थानीय निकाय के अध्यक्ष के लिए आरक्षण सूची भी जारी कर दी. जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग को दिए गए आरक्षण को भी जारी किया गया. हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने पर ही याचिका डाली गई. जिसमें कहा गया उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जिस ट्रिपल टेस्ट को आवश्यक बताया गया, उसका पालन नहीं हुआ है. हाई कोर्ट की डबल बेंच में जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सौरभ लवानिया की बेंच ने निकाय चुनाव में आरक्षण से जुड़ी कुल 93 याचिका एक साथ सुनवाई शुरू की.

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सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से कहा गया उत्तर प्रदेश में पिछड़ा वर्ग को लेकर 1993 में आयोग गठित किया जा चुका है और उसी के आधार पर आरक्षण व्यवस्था लागू की गई है जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 50 फ़ीसदी से अधिक भी नहीं है. याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि 93 में जिस पिछड़ा वर्ग आयोग को बनाया गया है. वह शैक्षणिक स्थिति को लेकर बनाया गया था. आर्थिक व राजनीतिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जो ट्रिपल टेस्ट का फार्मूला अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए जरूरी बताया है उसका पालन नहीं किया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के विकास गवली केस में ट्रिपल टेस्ट को जरूरी बताया है. ट्रिपल टेस्ट में हर राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग की अलग-अलग स्थितियां है. लिहाजा अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए प्रत्येक राज्य एक डेडीकेटेड कमीशन बनाए और वहां अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल की गई जातियों के शैक्षणिक व आर्थिक आधार के साथ-साथ राजनीतिक आधार को भी देखा जाए.

ट्रिपल टेस्ट के आधार पर ही अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया जाना चाहिए. हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने फैसला सुनाते हुए बिना ट्रिपल टेस्ट किए ओबीसी का आरक्षण रद्द कर दिया है और कहा है कि सरकार दोबारा एक डेडीकेटेड कमीशन बनाकर ट्रिपल टेस्ट का फार्मूला अपनाकर अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दे. बिना ट्रिपल टेस्ट कराई चुनाव हो तो उन सभी सीटों को अनारक्षित मानकर चुनाव कराया जाए.

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दरअसल, बीजेपी निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक को साधने के लिए बड़े पैमाने पर ओबीसी वोटरों को लुभाने में जुटी है. खुद को ओबीसी का हितेषी बताते हुए निकाय चुनाव में जीत दर्ज करते हुए लोकसभा चुनाव में भी जीत का परचम लहराना चाह रही है. लेकिन हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच के फैसले ने यूपी बीजेपी के लिए संकट खड़ा कर दिया है. यही वजह है कि प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है. बीजेपी निकाय चुनाव कराने की जल्दबाजी में ओबीसी वोटरों को नाराज नहीं करना चाहती है.

क्योंकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी भी ओबीसी वोटरों की ही राजनीति करती है और उसका कोर वोट बैंक भी ओबीसी ही माना जाता है. ऐसे में समाजवादी पार्टी अपने ओबीसी वोटरों में इजाफा कर निकाय चुनाव और आम लोकसभा चुनाव में बढ़त हासिल करने का सियासी ताना-बाना बुन रही है. ऐसे में अगर बीजेपी निकाय चुनाव कराने में जल्दबाजी करती है तो जाहिर है इसका खामियाजा बीजेपी को ही निकाय चुनाव के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ेगा.

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