यूपी में विपक्षी एकता बनी तो मुश्किल में फंसेगी BJP? एक्सपर्ट से जानिए तब आएंगी कितनी सीट

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आगामी लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार के यूपी से फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चाओं के बीच खुद नीतीश कुमार ने इसका खंडन कर दिया कि उनकी ऐसा कोई योजना नहीं है. हालांकि राजनैतिक गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि ये बात अनायास नहीं कही गई. इसे नीतीश कुमार की थर्मामीटर स्टइल के रूप में देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ये जानना चाहते थे कि इस चर्चा का फीडबैक क्या होगा. ऐसे में यूपी तक ने मुद्दे की बात में इस मुद्दे पर सीएसडीएस और लोकनीति के को-डायरेक्टर प्रोफेसर संजय कुमार से चर्चा की.

चर्चा के दौरान सवालों के जवाब देते हुए संजय कुमार ने कहा कि नीतीश कुमार को बड़ा नेता बनना है. इस बात की हनक देनी है, पहचान दिलाना है, उसके लिए ये जरूरी था ये कहना कि बिहार से नहीं यूपी से चुनाव लड़ूंगा. अगर आपको साबित करना है कि राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं और आपकी मजबूत पकड़ है तो देश में कहीं से भी चुनाव लड़ना होता है.

सवाल ये उठता है कि फूलपुर ही क्यों?

संजय कुमार ने कहा- यदि फूलपुर में पिछले 5-6 चुनवों पर गौर करें तो एक बार अतीक अहमद को छोड़ दें तो ज्यादातर ओबीसी समुदाय के लीडर चुनाव लड़ते और जीतते रहे हैं. ज्यादातर पटेल जीते हैं, जिससे नीतीश खुद आते हैं. ये कुर्मी जाति से हैं. नंबर वन, टू और थ्री पर आने वाले कैंडिडेट को देखें तो उनकी जाति ज्यादातर कुर्मी ही है.

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नीतीश कुमार ने जब फूलपुर के बारे में आहट दी या पार्टी ने इसके बारे में ऐलान किया तो हो सकता है यदि वे चुनाव लड़े भी तो ऐसा निर्वाचन क्षेत्र हो जहां सोशल इक्वेशन उनको फेवर करती हो. ये ऐसा निर्वाचन क्षेत्र है जहां ओबीसी समुदाय के वोटर हैं. दलित हैं और मुस्लिम समुदाय के वोटरों की तादात है. कुल मिलाकर उनको लगता है गणित उनको फेवर करता है.

नीतीश कुमार को पता है कि 2024 में अब ज्यादा वक्त नहीं है. अब वे फ्रंटफुट पर खेलना चाहते हैं. लोकसभा के चुनाव में विधानसभा के चुनाव की तुलना में खेल बदला हुआ लगता है. लोकसभा के चुनाव हुए तो कुर्मी मतदाताओं के तरफ इनका वोट शिफ्ट हुआ.

लोकसभा के चुनाव हुए, गैर यादव ओबीसी वोट काफी हद तक अखिलेश ने अपने पक्ष में किया. अब 2024 में क्या फिर ये गोलबंद होंगे? नीतीश कुमार उनके साथ आ भी जाएं, गठबंधन हो भी जाए तो भी शायद यूपी के मतदाताओं पर नीतीश कुमार उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाएंगे. जितना शायद अखिलेश यादव या नीतीश कुमार खुद सोच रहे हैं.

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किसी चेहरे पर विपक्षी नेताओं पर सहमति होगी ऐसी संभावना कम है. लोकसभा का जब चुनाव होगा तो मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा जाता है. ऐसे में दूसरे एक्सिस पर गोलबंदी शुरू हो जाती है. वहीं मतदाता जो विधानसभा चुनाव में किसी दूसरी पार्टी को वोट देते हैं उनका बड़ा हिस्सा टूटकर बीजेपी की तरफ चला जाता है.

मोदी अभी भी ब्रांड हैं

मोदी का ब्रांड अभी भी बरकरार है. कोई डिप नहीं दिखाई देता. विपक्षी नेताओं की बात करें तो अगर हम पिछले 8-10 साल में देखें तो मोदी की लोकप्रियता बढ़ी है. वहीं राहुल गांधी की घटी है. नीतीश कुमार की लोकप्रियता 2013-15 के बीच में जो थी उससे तुलना करें तो उनकी लोकप्रियता अब आधी हो गई है. 2014-15 के आसपास बिहार के 65-70 फीसदी मतदाता उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते थे. 2020 के चुनाव में वो संख्या घटकर 37-38 फीसदी पर चली आई. उतनी ताजाद में लोग तेजस्वी को अपने लीडर के रूप में देखना चाहते थे.

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नीतीश कुमार की लोकप्रियता आधी हो गई है. अरविंद केजरीवाल एक लोकप्रिय नेता के रूप में उभर रहे हैं.अगर इन चेहरों को पीएम मोदी के सामने खड़ा करने की कोशिश करें तो इनका कद बौना दिखाई पड़ता है. पीएम मोदी बहुत लोकप्रिय हैं. पापुलरीटी ग्राफ के इंडिटेकर से.

लोकसभाक के चुनाव होंगे तो इसका असर पड़ता है मतदाताओं के ऊपर. मतदाता ये सोचता है कि अगर विपक्षी पार्टियों में हमने वोट किया और जीत गए तो पीएम कौन होगा. क्या वो पीएम मोदी की तरह मजबूत होगा. 2024 का इलेक्शन भी पीएम मोदी के नाम पर लड़ा जाएगा. यही बीजेपी का ट्रंप कार्ड होगा.

अगर त्रिकोणीय मुकाबला हुआ तो स्पष्ट रूप से बीजेपी को बढ़त मिलेगी. अगर विपक्षी पार्टियों से दो-तीन उम्मीदवार खड़े हो गए या दो तीन धड़े बन गए तो बीजेपी को सीधा-सीधा फायदा दिखाई पड़ेगा.

पूरी चर्चा सुनने के लिए यहां क्लिक करिए…

नीतीश कुमार अगर UP के फूलपुर से चुनाव लड़ेंगे तो क्या उन्हें वोट मिलेगा? जानिए जनता की राय

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