फोटो: मदन शर्मा
वैसे तो सभी जगह रंगों का त्योहार होली बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन बृज में होली मनाने का अपना अलग ही अंदाज है.
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यहां कहीं फूल होली, है तो कहीं गुलाल होली है. मगर बरसाने की लट्ठ मार होली तो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है.
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होलिका दहन से 5 दिन पहले लट्ठमार होली मनाई जाती है. इसमें महिलाएं, जिन्हें हुरियारिन कहते हैं, अपने लट्ठ से हुरियारों को पीटती है.
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इस दौरान ढाल रख कर लोग, हुरियारिनों के लट्ठ से खुद का बचाव करते हैं. इस परंपरा का प्रारंभ 5 हजार साल पहले माना जाता है.
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धर्मग्रंथों में लिखा है जब श्रीकृष्ण बृज से द्वारिका चले गए और उसके बाद जब उनका बरसाना आना हुआ तो उस समय बृज में होली थी.
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इस दौरान श्री कृष्ण के जाने से दुखी राधा और उनकी सखियों ने उनके वापस आने पर अपने गुस्से का इजहार किया था.
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श्रीकृष्ण ने उन्हें मनाने की कोशिश की तो राधा-उनकी सखियों ने प्यार-गुस्से का इजहार करते हुए उनके साथ लट्ठ मार कर होली खेली.
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बता दें कि बरसाना राधारानी का गांव है तो वहीं नंदगांव में नंदबाबा का घर है. इसलिए इसे श्रीकृष्ण के गांव के तौर में जाना जाता है.
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