अत्यधिक डर और चिंता: बचपन के कठिन अनुभवों के कारण व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर भी डर और चिंता महसूस करता है. उसे लगता है कि हर स्थिति में कुछ गलत हो सकता है.
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आत्म-संदेह: बचपन में प्यार और समर्थन की कमी के कारण, वह अपने आप पर विश्वास नहीं कर पाता और खुद को दूसरों से हमेशा कम समझता है.
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भावनाओं को दबाना: अगर बचपन में किसी को अपनी भावनाएं व्यक्त करने का मौका नहीं मिला हो, तो वह बड़ा होने पर भी अपनी भावनाओं को छुपाने लगता है. वह अपनी परेशानियों को किसी से शेयर नहीं करता.
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खुद को नुकसान पहुंचने की कोशिश : बचपन के आघात के कारण कुछ लोग खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं या नशे की लत में पड़ जाते हैं, ताकि वे अपनी मानसिक पीड़ा से बच सकें.
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सामाजिक संबंधों में कठिनाई: बचपन में रिश्तों में प्यार और सुरक्षा की कमी के कारण व्यक्ति दूसरों से गहरे और विश्वासपूर्ण रिश्ते बनाने में मुश्किल महसूस करता है. उसे यह डर रहता है कि लोग उसे समझ नहीं पाएंगे.
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ज्यादा गुस्सा और आक्रामकता: बचपन के बुरे अनुभवों का असर वयस्क जीवन में गुस्सा और आक्रामकता के रूप में नजर आता है. व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर गुस्से में आ जाता है और आक्रामक तरीके से प्रतिक्रिया करता है.
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नकारात्मक सोच: बचपन के आघात के चलते व्यक्ति जीवन के प्रति नकारात्मक नजरिया अपनाता है. वह हमेशा बुरी चीजों के बारे में सोचता है और उसे लगता है कि कुछ अच्छा नहीं हो सकता.
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