कृषि कानून: पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक या आगामी यूपी चुनावों में वोट का खौफ?

नीरज गुप्ता

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यूपी विधानसभा चुनाव से पहले विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा मास्टर स्ट्रोक है या वोट का खौफ? इसे लेकर सड़क से सोशल…

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यूपी विधानसभा चुनाव से पहले विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा मास्टर स्ट्रोक है या वोट का खौफ? इसे लेकर सड़क से सोशल मीडिया तक बहस छिड़ गई है. 19 नवंबर की सुबह 9 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की और देखते-देखते #MasterStorke ट्विटर पर ट्रेंड हुआ. मास्टर स्ट्रोक इसलिए क्योंकि तर्क दिए गए कि पीएम मोदी ने यूपी और पंजाब के चुनाव से पहले कृषि कानून वापस लेने का ऐलान कर किसानों को साध लिया और विपक्ष का एक मजबूत हथियार खत्म कर दिया.

अब बीजेपी के नेता और समर्थक भले ही इसे पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हों लेकिन क्या ये वाकई मास्टर स्ट्रोक है? आंदोलनकारी किसान संगठन और विपक्षी नेता तो इसे सरकार के अड़ियल रवैये की हार और किसानों की जीत बता रहे हैं. सबसे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 14 जनवरी को अपना एक बयान ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने कहा, “मेरे शब्दों को लिखकर रख लो. सरकार को ये कानून वापस लेने पड़ेंगे. याद रखना.” किसान नेता राकेश टिकैत ने भी दो टूक ऐलान कर दिया कि पीएम की घोषणा मात्र से कानून वापस नहीं होंगे.

बात सिर्फ विरोधियों की नहीं है. मेघालय के गवर्नर सत्यपाल मलिक भी कृषि कानूनों के मुद्दे पर मोदी सरकार को खरी-खोटी सुनाते रहे हैं. हाल में उन्होंने एक टीवी चैनल से बात करते हुए कहा कि किसान नाराज रहे तो यूपी विधानसभा और अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को नुकसान होगा.

हालांकि, अपने फैसलों पर विरोध को अहमियत देना नरेंद्र मोदी सरकार की आदत नहीं रही है. ये सरकार ‘फैसला ले लिया तो ले लिया’ वाली छवि रखती है. यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ तो और ज्यादा ‘my way or the highway’ के अंदाज के लिए जाने जाते हैं. अब योगी भी कृषि कानूनों की वापसी के फैसले को एतिहासिक काम बता रहे हैं.

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कृषि कानूनों से पहले एनआरसी, नागरिकता कानून जैसे कुछ मुद्दों पर सरकार ने नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने दी. यानी हर विरोध को साइड-लाइन कर दिया. लेकिन यूपी चुनाव से ठीक पहले कृषि कानूनों की वापसी विपक्ष और कई सामाजिक संगठनों के लिए मुगली घुट्टी का काम करेगी. दूसरे तमाम मुद्दों पर पर भी केंद्र सरकार का विरोध बढ़े, तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए.

किसान आंदोलन साल भर चला. चिलचिलाती गरमी और कंपकपाती ठंड के बावजूद किसान और उनके परिवार दिल्ली की सरहदों से नहीं हिले. इस दौरान 700 किसानों की मौत का दावा किया जाता है. किसान संगठन उनके परिवारों के लिए मुआवजे की मांग करेंगे. न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर कानून बनाने की मांग तेज होगी. यानी कानून वापसी के साथ सरकार पर दबाव कुछ कम होगा तो कुछ बढ़ेगा भी.

सरकार ने कानून वापसी के लिए भले ही प्रकाश पर्व यानी गुरु नानक देव जी की जयंती का दिन चुना हो लेकिन फोकस यूपी चुनाव ही है. कई जानकारों का मानना है कि पूर्वी यूपी में एसपी प्रमुख अखिलेश यादव का बढ़ता असर बीजेपी के माथे में बल डाल रहा था. ऐसे में किसान आंदोलन वाले पश्चिमी यूपी को साधना मजबूरी बन गया. मोदी सरकार की मजबूत छवि के दावों के मद्देनजर कृषि कानूनों की वापसी भारतीय राजनीति में एक बड़ा कदम है, जिसका असर आने वाले दिनों मे दिखाई देगा.

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