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मनीष केस की पड़ताल: 10 × 10 के कमरे में 9 लोग, डबल बेड और टेबल, फिर कैसे मची भगदड़?

कानपुर के व्यापारी मनीष गुप्ता की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत गोरखपुर पुलिस ही नहीं उत्तर प्रदेश पुलिस की साख का भी सवाल बन गई है. इस बीच कई तरह के सवाल भी खड़े हो रहे हैं. आखिर कैसे गई मनीष गुप्ता की जान? क्या हुआ था सोमवार-मंगलवार की दरम्यानी रात को, जब कथित तौर पर पुलिस वालों की पिटाई से मनीष गुप्ता की मौत हो गई? ऐसे ही तमाम सवालों की पड़ताल करने यूपी तक की टीम गोरखपुर पहुंची.

यह पड़ताल हमने गोरखपुर के उसी रामगढ़ ताल थाने से सटे कृष्णा पैलेस से शुरू की, जहां मनीष गुप्ता अपने दो दोस्तों हरवीर सिंह और प्रदीप चौहान के साथ रुके थे. हरवीर और प्रदीप के गोरखपुर में रहने वाले दोस्त चंदन सैनी के बुलावे पर हरवीर सिंह और प्रदीप चौहान कानपुर के मनीष गुप्ता को लेकर गोरखपुर आए थे.

चंदन सैनी भोजपुरी फिल्मों के प्रोड्यूसर हैं, हरवीर सिंह इवेंट मैनेजमेंट का काम करते हैं और प्रदीप चौहान रियल स्टेट कंपनी में काम करते हैं. दिनभर गोरखपुर की तमाम जगहों पर घूमने के बाद सभी दोस्तों ने एक ढाबे पर खाना खाया. रात करीब 11:30 बजे प्रदीप, मनीष और हरवीर को होटल छोड़कर चंदन वापस अपने घर चले गए.

रास्ते में चंदन के पास चौकी इंचार्ज फल मंडी अक्षय मिश्रा का फोन आया तो पीछे से प्रदीप और हरवीर की आवाज आ रही थी. कुछ अनहोनी की आशंका को देखते हुए चंदन ने गाड़ी मोड़ ली और होटल पहुंच गए. जब वह होटल पहुंचे तो पता चला कि मनीष गुप्ता को चोट लगी है और पुलिस उनको अपने साथ मानसी हॉस्पिटल ले गई है, जहां से पता चला की मनीष को बीआरडी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया है.

हमने होटल के अंदर बुकिंग, पुलिस के पहुंचने और मारपीट की घटना को समझने के लिए होटल के मालिक सुभाष शुक्ला से बात की तो पता चला कि होटल के रिसेप्शन पर मौजूद कर्मचारी ने मनीष गुप्ता, हरवीर और प्रदीप चौहान तीनों ही युवकों की आईडी जमा करवाई थी. किस मकसद से गोरखपुर आए हैं, कब आए हैं, कब जाएंगे, ऐसी तमाम जानकारियों का जीआरसी फॉर्म भी भरवाया गया था.

यूपी तक से बातचीत में सुभाष शुक्ला ने पुलिस की चेकिंग के नाम पर होने वाली प्रताड़ना के बारे में भी बताया. अक्सर रामगढ़ ताल की पुलिस उनके होटल में रात में 12:00 बजे के बाद ही चेकिंग करने आती है. उन्होंने बताया कि पुलिस के पहुंचने पर होटल में ठहरे अपने सभी यात्रियों की आईडी भी दिखाते हैं, उसके बावजूद कई बार होटल में ठहरे लोगों को बाहर निकाल कर आधी रात में तलाशी ली जाती है. इतना ही नहीं सुभाष शुक्ला के मुताबिक, बीते 2 सालों में पुलिस की लगातार आधी रात के बाद होने वाली इस चेकिंग से कृष्णा पैलेस होटल का धंधा मंदा हो गया है और होटल की किस्त निकलना मुश्किल हो गई है.

अब बात होटल की तीसरी मंजिल के कमरा नंबर 512 की, जहां पर यह पूरी घटना हुई. मनीष गुप्ता के मौत के मामले में पुलिस ने 512 नंबर का कमरा सील कर रखा है, लेकिन कमरे में कैसे हालात थे, कितने पुलिस वाले थे और उस कमरे में कैसे कुछ हुआ, इसको समझने के लिए हम 512 से पास उसी साइज और डिजाइन के कमरे 514 में पहुंचे.

करीब 10 × 10 के साइज वाले कमरे में 2 लोगों को लेटने के लिए बेड पड़ा था. घटना वाली रात मनीष गुप्ता 512 नंबर के ऐसे ही कमरे के बेड पर सो रहे थे. पुलिस के खटखटाने पर हरवीर ने गेट खोला था. कमरे के अंदर छह पुलिसकर्मी और मनीष गुप्ता समेत नौ लोग मौजूद थे.

एसएसपी गोरखपुर का बयान आया था कि कमरे में भगदड़ मचने से मनीष गुप्ता की गिरकर मौत हुई, जबकि इस साइज के कमरे में 9 लोगों की मौजूदगी और डबल बेड टेबल के रखने के बाद इतनी जगह ही नहीं बचती कि कोई दौड़भाग कर ले.

इस मामले में एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या मनीष गुप्ता को समय पर बीआरडी मेडिकल कॉलेज पहुंचा दिया जाता तो उनकी जान बच सकती थी? यह सवाल क्यों उठ रहा है, इसे समझने के लिए आप ऊपर दिया गया यूपी तक का वीडियो देख सकते हैं.

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