कल्याण सिंह कैसे बने थे ‘हिंदू ह्रदय सम्राट’, देखिए उनका सियासी सफरनामा

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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का शनिवार शाम 89 साल की उम्र में निधन हो गया. सिंह लंबे समय से बीमार थे और…

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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का शनिवार शाम 89 साल की उम्र में निधन हो गया. सिंह लंबे समय से बीमार थे और उनके अंगों ने धीरे-धीरे काम करना बंद कर दिया. सिंह को पिछली चार जुलाई को संक्रमण और हल्की बेहोशी की वजह से लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के आईसीयू में भर्ती कराया गया था.

दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे. कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के मढ़ौली गांव में तेजपाल सिंह लोधी और सीता देवी के घर हुआ था. कल्याण कभी एक शिक्षक हुआ करते थे, लेकिन सियासी ककहरा भी उन्होंने ऐसा पढ़ा और पढ़ाया कि वह पॉलिटिकल गुरु बन गए.

कल्याण पहली बार 1967 में जनसंघ के टिकट पर अतरौली सीट से विधानसभा सदस्य चुने गए थे.

90 के दशक की शुरुआत में, जब पिछड़े वर्ग की ताकत सियासत में काफी अहम हो गई, तब बीजेपी ने यूपी में कल्याण पर दांव चल दिया. कहा जाता है कि उस दौर में यह फैसला पार्टी की ‘सवर्ण’ छवि से बाहर निकलने के लिए लिया गया था. उस वक्त पार्टी मंडल कमंडल वाली सियासत के बीच अयोध्या में राम जन्मभूमि निर्माण के मुद्दे को भी जोर-शोर से उठा रही थी.

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1991 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी जब यूपी की सत्ता में आई तो कल्याण सिंह इस राज्य में उसके पहले मुख्यमंत्री बने. उनके इस कार्यकाल में अयोध्या का राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद काफी तेज हो गया.

रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब इंडिया आफ्टर गांधी में लिखा है कि कल्याण सिंह ने 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से कहा था कि ‘अयोध्या विवाद का एक ही सर्वमान्य हल है और वो हल ये है कि विवादित ढांचे की जमीन हिंदुओं को सौंप दी जाए.’

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6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद कल्याण सिंह की सरकार चली गई, लेकिन तब तक वह ‘हिंदू ह्रदय सम्राट’ के तौर पर उभर चुके थे.

कल्याण सिंह को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई और आने वाली पीढ़ियां इसके लिए उनकी आभारी रहेंगी.

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