SP-BJP के वादों से MSP का मुद्दा सुलझ पाएगा? जानिए किसानों को कितनी राहत मिलेगी

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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और समाजवादी पार्टी (एसपी) ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के लिए जारी अपने-अपने मेनिफेस्टो में एमएसपी पर भी वादे किए हैं. यह किसानों से जुड़ा एक बड़ा मुद्दा है. ऐसे में एसपी या बीजेपी के वादों से किसानों को कितनी राहत मिल सकती है, इस बात को समझने के लिए एमएसपी के तमाम अहम पहलुओं पर नजर दौड़ाना जरूरी हो जाता है.

बता दें कि एसपी ने अपने मेनिफेस्टो में वादा किया है कि सभी फसलों के लिए एमएसपी प्रदान की जाएगी. वहीं, बीजेपी ने कहा है, ”हम अगले 5 सालों में सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं और धान की खरीद को और मजबूत करेंगे.” इसके साथ ही बीजेपी ने वादा किया है कि 1000 रुपये करोड़ रुपये का भामाशाह भाव स्थिरता कोष बनाकर किसानों को आलू, टमाटर और प्याज जैसी सभी फसलों का न्यूनतम मूल्य सुनिश्चित कराया जाएगा.

क्या होता है एमएसपी का मतलब?

एमएसपी सरकार की तरफ से घोषित कृषि उत्पादों का मूल्य होता है. जैसे अगर किसी कृषि उत्पाद का एमएसपी 1000 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया गया है तो माना जाता है कि किसान को उस कृषि उत्पाद के लिए इतना मूल्य तो मिलना ही चाहिए.

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मगर भारत में एमएसपी को लागू करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है. सिर्फ गन्ने के लिए एक कानूनी पहलू नजर आता है. दरअसल गन्ने का मूल्य शुगरकैन (कंट्रोल) ऑर्डर 1996 के हिसाब से तय होता है, जिसे आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत जारी किया गया था. यह ऑर्डर गन्ने के लिए हर साल एक फेयर एंड रिम्युनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) तय करने की व्यवस्था देता है. एफआरपी के हिसाब से पेमेंट की जिम्मेदारी चीनी मिलों की होती है.

लंबे वक्त से कई प्रमुख किसान संगठनों की मांग रही है कि एमएसपी को लागू करने की कोई कानूनी बाध्यता होनी चाहिए क्योंकि ऐसा न होने की वजह से देश में किसानों का बड़ा हिस्सा एमएसपी से कम दाम पर अपनी फसलें बेचने को मजबूर हो जाता है.

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कैसे तय होता है एमएसपी?

एमएसपी को तय करने की प्रक्रिया पर भी सवाल उठते रहे हैं. ऐसे में यह भी जान लेते हैं कि एमएसपी आखिर तय कैसे होता है? दरअसल केंद्र सरकार प्रमुख कृषि उत्पादों का एमएसपी कमिशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट्स एंड प्राइसेज (सीएसीपी) की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए तय करती है. सीएसीपी भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का अटैच्ड ऑफिस है. यह जनवरी 1965 में अस्तित्व में आया था.

मौजूदा वक्त में सीएसीपी इन 23 कमोडिटीज के एमएसपी की सिफारिश करता है:

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  • अनाज: धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ और रागी

  • दाल: चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर

  • तिलहन: मूंगफली, सरसों, सोयाबीन, तिल, सूरजमुखी, कुसुम, रामतिल

  • कमर्शियल फसलें: कोपरा, गन्ना, कपास और कच्चा जूट

सीएसीपी हर साल, कमोडिटीज के 5 अलग-अलग ग्रुप के लिए प्राइस पॉलिसी रिपोर्ट्स के तौर पर सरकार को अपनी सिफारिशें देता है. ये ग्रुप खरीफ की फसलों, रबी की फसलों, गन्ना, कच्चे जूट और खोपरा से जुड़े होते हैं.

प्राइस पॉलिसी रिपोर्ट तैयार करने से पहले सीएसीपी व्यापक प्रश्नावली तैयार करता है और इसे सभी राज्य सरकारों, संबंधित राष्ट्रीय संगठनों और मंत्रालयों को उनकी राय लेने के लिए भेजता है. सीएसीपी के अनुसार, वो उत्पादन लागत, मांग और आपूर्ति, बाजार में प्राइस ट्रेंड जैसे पहलुओं को भी ध्यान में रखता है.

कई प्रक्रियाओं से गुजरते हुए सीएसीपी सभी इनपुट्स के आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार करता है, और फिर रिपोर्ट को केंद्र के पास भेजा जाता है. इसके बाद केंद्र सरकार राज्य सरकारों और अपने संबंधित मंत्रालयों के फीडबैक लेती है. फिर केंद्र की कैबिनेट कमेटी ऑन इकनॉमिक अफेयर्स एमएसपी को लेकर अंतिम फैसला करती है.

आखिर में एक अहम बात यह भी जान लेते हैं कि एमएसपी तय करने के लिए फसलों की लागत की गणना कैसे होती है? आम तौर पर फसलों की लागत की गणना के लिए तीन कैटिगरी का जिक्र होता है- A2, A2+FL, C2.

A2 में फसल उत्पादन के लिए किए गए नकद खर्च जैसे- बीज, खाद, सिंचाई आदि शामिल होते हैं. A2+FL में नकद खर्च के साथ फैमिली लेबर यानी किसान परिवार का अनुमानित मेहनताना भी जोड़ा जाता है. वहीं C2 में नकद खर्च, फैमिली लेबर के अलावा खेत की जमीन का किराया और कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, मौजूदा वक्त में किसानों को A2+FL लागत का 1.5 गुना एमएसपी मिल पाता है.

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