UP चुनाव 2022: BJP ने कैसे रच दिया इतिहास? जानिए 10 बड़ी वजह
उत्तर प्रदेश में सियासी अटकलों का दौर खत्म हो चुका है और चुनाव परिणाम सभी के सामने हैं. बीजेपी ने 37 साल बाद एक इतिहास…
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उत्तर प्रदेश में सियासी अटकलों का दौर खत्म हो चुका है और चुनाव परिणाम सभी के सामने हैं. बीजेपी ने 37 साल बाद एक इतिहास रचा है, जब पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद कोई पार्टी लगातार दोबारा सत्ता में वापसी कर रही है.
इन चुनाव परिणामों ने नोएडा को लेकर एक मिथक को भी खत्म कर दिया कि जो मुख्यमंत्री नोएडा आता है, वो प्रदेश में दोबारा सत्ता में नहीं आता. इन चुनाव परिणामों ने मोदी-शाह के बाद बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति में ब्रांड योगी युग की भी शुरुआत कर दी है और प्रधानमंत्री मोदी की वो घोषणा सही साबित की है, जब प्रचार के दौरान, उन्होंने योगी को प्रदेश के लिए ‘उपयोगी’ के तौर पर प्रोजेक्ट किया था.
चलिए बीजेपी की इस जीत की 10 बड़ी वजहों पर एक नजर दौड़ाते हैं:
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1. मोदी-योगी ब्रांड का मैजिक कायम
जब बीजेपी 2017 के चुनाव में मैदान में उतरी थी, तब प्रदेश के किसी नेता का चेहरा बतौर मुख्यमंत्री लोगों के सामने नहीं था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इकलौते नेता थे, जिनके चेहरे को सामने रखकर पार्टी ने चुनाव लड़ने का फैसला किया था.
अमित शाह तब पार्टी के अध्यक्ष थे, लिहाजा रणनीति बनाने और जमीन पर उसे उतारने की कमान उन्होंने स्वयं संभाल रखी थी. अब पांच साल के बाद बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं एक ब्रांड के रूप में उभर कर सामने आ चुके हैं.
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इस योगी ब्रांड या ‘बुल्डोजर बाबा’ का असर चुनावी रैलियों में साफ तौर पर महसूस किया जा रहा था. योगी ने बार-बार अपनी रैलियों के जरिए अपनी ‘बुल्डोजर बाबा’ वाली छवि को भुनाना नहीं छोड़ा और खुले तौर पर कहा कि फिलहाल बुल्डोजर रिपेयर होने गए हैं और 10 मार्च के बाद से वे फिर से सड़कों पर दिखने शुरू हो जाएंगे.
इंडिया-टुडे-एक्सिस माइ इंडिया के सर्वे में भी यह दिखा कि प्रदेश के 45 फीसदी लोग योगी के दोबारा मुख्यमंत्री बनाए जाने के पक्ष में थे, जो एक बड़ा आंकड़ा था.
2. शाह की रणनीति असरदार
2017 में जब विधानसभा चुनाव हो रहे थे, तब अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष थे. रणनीति की पूरी कमान अमित शाह के पास थी और 2017 में जो परिणाम आए, उसके बाद से अमित शाह को भारतीय राजनीति का चाणक्य भी कहा गया. हालांकि, बाद में कई राज्यों के परिणाम पार्टी के अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे.
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इस बार पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा हैं, लेकिन कमांड-कंट्रोल अमित शाह के ही हाथ में दिखा. किसान आंदोलन को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों की नाराजगी का जब मसला सामने आया, तब शाह ही सामने आए और जाट नेताओं की बड़ी बैठक अपने दिल्ली आवास पर बुलाकर नाराजगी खत्म करने की कोशिश की और जो उनके मुद्दे थे, उन्हें चुनाव बाद सुलझाने का आश्वासन भी दिया, ताकि उनका गुस्सा शांत किया जा सके.
इतना ही नहीं, एनडीए से जुड़ी पार्टियों – अपना दल (एस) और निषाद पार्टी – के साथ सीटों का बंटवारा और तालमेल संबंधित तमाम बैठकें भी शाह के घर पर ही हुईं, ताकि गठबंधन बेहतर तालमेल के साथ मैदान में उतरे.
3. बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग कामयाब
इंडिया-टुडे-एक्सिस माइ इंडिया सर्वे के डेटा से पता चलता है कि कैसे बीजेपी अपनी सोशल इंजीनियरिंग में कामयाब रही है. मुस्लिम-यादव समीकरण का लाभ समाजवार्दी पार्टी को मिलना लगभग तय था और खासकर ऐसी स्थिति में जबकि बीएसपी पूरी ताकत से चुनाव मैदान में कभी दिखी ही नहीं.
ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण था कि सत्ता के करीब पहुंचने में समाजवादी पार्टी ओबीसी वर्ग में गैर-यादव समूहों में और दलित वोट बैंक में कितनी सेंधमारी कर पाती है. एग्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक, दलितों में जाटव वोट का 62 फीसदी बीएसपी को तो मिलता दिखा है, लेकिन बीजेपी को 21 फीसदी जाटवों का और गैर-जाटव दलितों का 51 फीसदी वोट मिलता दिखा है.
उधर, समाजवादी पार्टी को 14 फीसदी जाटव वोट और 27 फीसदी गैर-जाटव दलित वोट मिलता दिखा है. बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच का अंतर बड़ा है. इसकी एक बड़ी वजह, कोरोना काल में महीने में 15 करोड़ लोगों को मिलने वाली मुफ्त राशन योजना का लाभ, 43 लाख लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के मिले आवास, सौभाग्य योजना के तहत डेढ़ करोड़ लोगों को मुफ्त बिजली, या इसी तरह मुफ्त शौचालय, उज्ज्वला योजना से मिले लाभ को माना जा रहा ह. लिहाजा बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग कामयाब रही और इसके लिए पार्टी ने पिछले साल भर से काफी मशक्कत भी की थी.
4. यादव-मुस्लिम एसपी के साथ गोलबंद, पर अन्य OBC वर्ग में बीजेपी की पकड़ कायम
शुरू से यह दिख रहा था कि यादव और मुस्लिम वोट पर समाजवादी की पकड़ मजबूत रहने वाली है. इंडिया-टुडे-एक्सिस माइ इंडिया एक्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक, 83 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं का वोट एसपी को मिलता दिखा है, वहीं ओबीसी कैटेगरी में 86 फीसदी यादवों का वोट सपा को मिलने की संभावना जताई गई.
ओवैसी ने भी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल इलाके में काफी ताकत लगाई, अंधाधुंध रैलियां कीं, पर पार्टी को एक फीसदी से भी कम मत मिले. जबकि एग्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक, बीएसपी को भी तीन-चार फीसदी मुसलमानों को वोट मिला. मतलब यह कि मुस्लिम मतदाता पूरी तरह से एसपी गठबंधन के साथ लामबंद थे. इसके उलट, बीजेपी को मिले मतों का आकलन देखें तो इस पार्टी का 10 फीसदी यादव और 8 फीसदी मुस्लिम वोट मिलता दिखा है.
पर साथ ही, 47 फीसदी जाट वोट, 58 फीसदी कुर्मी वोट और 65 फीसदी अन्य ओबीसी मतदाताओं का वोट बीजेपी को मिलता दिखा है. अन्य ओबीसी समुदाय में कुर्मी, मौर्य, सैनी, राजभर, लोधी समाज के वोट से भी बीजेपी को काफी फायदा मिला.
5. ‘सवर्ण’ मतदाताओं में बीजेपी का दबदबा बरकरार
‘सवर्ण’ तबके को परंपरागत रूप से बीजेपी के वोट बैंक के रूप में देखा जाता रहा है. एक सोच यह भी रही है कि बीजेपी मूलतः शहरी तबके की पार्टी है, लिहाजा ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी को उतनी सफलता नहीं मिलती.
इस बार ये सोच भी फैल रही थी कि ब्राह्मण तबका शायद बीजेपी से नाराज है, लेकिन एग्जिट पोल के आंकड़ें कुछ और ही कहानी बताते हैं. आंकड़ों के मुताबिक, शहरी के साथ-साथ ग्रामीण मतदाताओं का रुझान भी बीजेपी की तरफ दिखा, साथ ही, ब्राह्मण समेत तमाम ‘सवर्ण’ तबके पर बीजेपी की पकड़ बनी हुई है.
इंडिया-टुडे-एक्सिस माइ इंडिया एग्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक, शहरी क्षेत्र में बीजेपी को जहां 45 फीसदी वोट मिलता दिखा है, वहीं ग्रामीण इलाकों में पार्टी को 49 फीसदी वोट मिलने की संभावना सामने आई.
कुछ लोगों की इन आंकड़ों से हैरानी हो सकती है लेकिन यहां भी उन्हीं सामाजिक योजनाओं का लाभ पार्टी को मिलता दिखा है. दूसरी तरफ, एसपी को शहरी क्षेत्र में 36 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में 35 फीसदी मत मिलने की संभावना सामने आई.
अगर, ‘सवर्ण’ मतदाताओं की बात करें तो 70 फीसदी ब्राह्मणों, 71 फीसदी राजपूतों और 71 फीसदी अन्य ‘सवर्णों’ का मत बीजेपी को मिलता दिखा है, जबकि एसपी को 17 फीसदी ब्राह्मण, 15 फीसदी राजपूत और 10 फीसदी अन्य ‘सवर्णों’ का वोट मिलता दिखा है.
6. महिलाओं के रुख से बीजेपी को लाभ
इंडिया-टुडे-एक्सिस माइ इंडिया के एग्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक, 44 फीसदी पुरुषों ने जहां बीजेपी को वोट दिया है, वहीं 48 फीसदी महिलाओं का वोट बीजेपी को मिलता दिखा है. दूसरी तरफ, समाजवादी पार्टी को जहां पुरुषों का 40 फीसदी वोट मिलता दिखा है, वहीं मात्र 32 फीसदी महिलाओं का वोट एसपी को मिलता दिखा है.
मतलब महिलाओं द्वारा दिए गए वोट में बीजेपी और एसपी के बीच का अंतर लगभग 16 फीसदी का है, जो मतगणना में निर्णायक साबित हुआ. यहां भी, प्रधानमंत्री आवास योजना, कोरोना काल में मिले मुफ्त राशन, मुफ्त बिजली, मुफ्त सिलेंडर और मुफ्त में मिले शौचालय का लाभ बीजेपी को मिलता दिखा है.
7. नए वोटर वर्ग में कड़ा मुकाबला, लेकिन अन्य वर्ग में बीजेपी को बढ़त
उत्तर प्रदेश के कुल मतदाताओं में 52 लाख नए वोटर शामिल हुए हैं, इनमें 23.92 लाख पुरुष मतदाता हैं, जबकि 28.86 लाख महिला वोटर हैं.
इंडिया-टुडे-एक्सिस माइ इंडिया एग्जिट पोल के आंकड़ों में यह दिखा कि किस तरह 18 से 25 वर्ष आयु वर्ग में टक्कर थी. इस आयु वर्ग में जहां बीजेपी को 41 फीसदी वोट मिलता दिखा है, वहीं समाजवादी पार्टी को 40 फीसदी. मगर अन्य आयु वर्ग में बीजेपी का दबदबा साफ दिखा है. 26 से 35 वर्ष आयु वर्ग में बीजेपी को 44 फीसदी मत, जबकि एसपी को 38 फीसदी वोट मिलता दिखा है.
वहीं, 36 से 50 साल आयु वर्ग में दोनों पार्टियों के बीच लगभग 13 फीसदी, 51 से 60 साल आयु वर्ग में 18 फीसदी का अंतर और 61 साल के ऊपर के आयु वर्ग में दोनों पार्टियों के बीच लगभग 24 फीसदी का अंतर दिख रहा है.
स्पष्ट है कि बीजेपी का फ्री लैपटॉप और दो करोड़ स्मार्टफोन देने का संकल्प युवाओं को लुभाने में सफल रहा है, हालांकि फ्री लैपटॉप, रुकी पड़ी भर्तियों को शुरू करने का वादा एसपी ने भी कर रखा था.
8. सुशासन का नारा सफल
बीजेपी ने इस चुनाव में कानून-व्यवस्था, माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई, अपराधियों के खिलाफ एनकाउंटर और महिला सुरक्षा को सबसे प्रमुख मुद्दों के तौर पर पेश किया था. साथ ही, पार्टी ने विकास के नाम पर एक्सप्रेसवे, डिफेंस कॉरिडोर, राज्य का बढ़ता बजट और प्रदेश में बढ़ रहे निवेश का खाका लोगों को सामने खींचा और ये भी बताने की कोशिश की इन निवेश की वजह से रोजगार के अवसर बढ़ने वाले हैं.
साथ ही, रैलियों में बीजेपी ने यह जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि किस तरह पूर्ववर्ती एसपी सरकार में कानून-व्यवस्था ताक पर थी, माफियाओं का राज चलता था और घोटालों को बोलबाला था.
एग्जिट पोल के आंकड़ें देंखे तो स्पष्ट दिखता है कि किस तरह लगभग 27 फीसदी लोगों ने विकास के नाम पर बीजेपी को वोट देने की बात कही, बेहतर कानून-व्यवस्था के नाम पर 10 फीसदी और फ्री राशन व अन्य योजनाओं के नाम पर 11 फीसदी लोगों ने बीजेपी को वोट देना पसंद किया.
9. बीएसपी के कमजोर होने से बीजेपी को फायदा!
कहने को मायावती ने अपने प्रत्याशियों के पक्ष में कुल 20 रैलियां कीं, लेकिन अगर इसकी तुलना योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव से की जाए, तो यह स्पष्ट दिख रहा था कि पार्टी पूरी ताकत से मैदान में नहीं थी.
हालांकि, बसपा ने अपने पुराने समीकरण यानी दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण को उभारने की काफी कोशिश की. चुनावी घोषणाओं से पहले सतीश चंद मिश्रा ने कई ब्राह्मण सम्मेलन भी कराए, लेकिन पार्टी को इसका ज्यादा लाभ नहीं दिखा. मौजूदा चुनाव में बीएसपी का डबल डिजिट को पार न कर पाना, प्रदेश में पार्टी के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान खड़ा करता है. बीएसपी के कमजोर होने का फायदा भी बीजेपी को मिलता दिखा है.
10. प्रियंका का दांव विफल
कांग्रेस द्वारा महिलाओं को लुभाने के मकसद से काफी घोषणाएं हुईं, प्रियंका गांधी ने स्वयं 40 फीसदी सीट महिलाओं को देने की घोषणा की, “लड़की हूं, लड़ सकती हूं” का कैंपेन चलाया, लेकिन बीच में इस कैंपेन के कई चेहरों ने टिकट न मिलने के कारण बीजेपी का हाथ थाम लिया.
कुल मिलाकर यह कहना पर्याप्त होगा कि जातिगत समीकरण, मोदी-योगी ब्रांड इमेज, राशन और सुशासन के नाम पर बीजेपी उत्तर प्रदेश में इतिहास रचने में कामयाब रही.
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