UP चुनाव: कैराना के बाद मथुरा, अमित शाह के दौरे के क्या हैं सियासी मायने, यहां समझिए
यूपी चुनाव में अब जब वोटिंग के लिए कुछ दिन ही शेष हैं, ऐसे में गृहमंत्री अमित शाह के यूपी दौरे के काफी चर्चे हैं.…
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यूपी चुनाव में अब जब वोटिंग के लिए कुछ दिन ही शेष हैं, ऐसे में गृहमंत्री अमित शाह के यूपी दौरे के काफी चर्चे हैं. जाटों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के एक दिन बाद अमित शाह का मथुरा दौरा सियासी तौर पर बेहद अहम रहा है. अब मथुरा के बाद अमित शाह मुजफ्फरनगर जा रहे हैं. चर्चा है कि 29 जनवरी को अमित शाह मुजफ्फरनगर में होंगे.
अपने मथुरा दौरे के एक दिन पहले अमित शाह ने दिल्ली में 253 जाट नेताओं और खाप पंचायतों के प्रमुखों से मुलाकात की. उन्होंने जाटों की सभी मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया. साथ ही साथ बीजेपी की तरफ से जयंत चौधरी को न्योता भी दिया गया. वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं कि अमित शाह ने जयंत चौधरी को जो न्योता दिया, दरअसल वह सपा और रालोद के गठबंधन में फूट डालने की कवायद है. उनके मुताबिक एक कन्फ़्यूज़न आरएलडी के समर्थकों में पैदा हो इसलिए खुले तौर पर अमित शाह ने यह बातें कह दी.
शरत प्रधान कहते हैं कि अमित शाह के इस न्योते का बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, ना ही जाट-मुस्लिम एकता टूटेगी, लेकिन बीजेपी ने और अमित शाह ने अपनी तरफ से इसके लिए एक बड़ी कोशिश जरूर की है. वही मेरठ यूनिवर्सिटी राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर पवन कुमार शर्मा कहते हैंअमित शाह के जयंत पर दिये बयान का असर सकारात्मक होगा और जाट समाज बीजेपी की तरफ ज्यादा झुकेगा, क्योंकि बीजेपी ने जाटों के नेता जयंत चौधरी के चौधराहट को स्वीकार किया है.
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मथुरा में शाह के दौरे के क्या हैं मायने?
अपनी मीटिंग के एक दिन बाद जब अमित शाह मथुरा और वृंदावन आए, तो उन्होंने अपनी यात्रा की शुरुआत बांके बिहारी के दर्शन से की. ब्रज वो इलाका है, जहां पर जाट बिरादरी की तादाद भी काफी है. आगरा, मथुरा ऐसे जिले हैं जहां जाटों की संख्या और उनका सियासी असर हमेशा रहा है. जयंत चौधरी खुद मथुरा के माठ सीट से चुनाव लड़कर जीत चुके हैं. ऐसे में अमित शाह ने एक साथ मथुरा से हिंदुत्व के प्रति प्रतिबद्धता और जाटों को सियासी संदेश देने की कोशिश की है.
मतदाता संवाद के दौरान उन्होंने राष्ट्रवाद की बात की और कहा कि विधायक मंत्री या मुख्यमंत्री को न देखें बल्कि यह राष्ट्र का चुनाव है इसलिए सिर्फ बीजेपी को देख कर वोट करें. जाटों के जयंत सबसे बड़े नेता हैं, इसे स्वीकार कर बीजेपी ने दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया है. पवन कुमार शर्मा कहते हैं कि बेशक इस चुनाव में जयंत अखिलेश के साथ रहें, लेकिन जाटों के बीच विमर्श तो शुरू हो ही जाएगा.
दरअसल ब्रज के इलाके में आरएलडी का पहले से ही जनाधार रहा है. आगरा और मथुरा की कई सीटों पर जाट प्रभावी हैं और बीजेपी का समीकरण बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं. ऐसे में अमित शाह का ये दौरा जाटों को संदेश देने के लिहाज से भी अहम है. जाट नेताओं के साथ मुलाकात में अमित शाह ने कहा था साढ़े छः सौ सालों से जाटों ने मुगलों से लड़ाई लड़ी है और बीजेपी आज भी वो लड़ाई लड़ रही है. ऐसे में यह हिंदुत्व की राजनीति को खुलकर अपनाने के साथ ही मथुरा से जाटों को संदेश देने की कवायद ही है. अमित शाह की अगली यात्रा भी मुजफ्फरनगर की है, जिसे जाट लैंड कहा जाता है.
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यानि अमित शाह इन दिनों जाटों को साधने की अपनी मुहिम पर हैं, समाजवादी पार्टी और आरएलडी, दोनों ने ही अमित शाह की सियासी चाल को भांपकर शुक्रवार को एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस मुजफ्फरनगर में आयोजित की है. अमित शाह ने अपनी मुजफ्फरनगर यात्रा एक दिन के लिए टाल दी है, ताकि अखिलेश और जयंत के इस कार्यक्रम के बाद अपनी बात कहें और अखिलेश को निशाने पर ले सकें.
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