लखीमपुर हिंसा | SC ने कहा- ‘हम नहीं चाहते कि UP सरकार की ओर से गठित आयोग जांच जारी रखे’

भाषा

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 8 नवंबर को कहा कि वह नहीं चाहता कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से गठित एक सदस्यीय न्यायिक आयोग लखीमपुर खीरी हिंसा मामले की जांच जारी रखे. बता दें कि लखीमपुर खीरी के तिकुनिया इलाके में तीन अक्टूबर को हुई घटना में चार किसानों सहित आठ लोगों की मौत हो गई थी.

उत्तर प्रदेश सरकार ने लखीमपुर खीरी जिले में हुई हिंसा की जांच के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव को नामित किया था.

चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए हुई सुनवाई में राज्य सरकार को सुझाव दिया कि इस जांच की निगरानी किसी ‘अन्य हाई कोर्ट’ के पूर्व न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिए ताकि ‘स्वतंत्रता और निष्पक्षता’ को बढ़ावा दिया जा सके.

बेंच ने कहा, ‘हम किसी भी तरह से आश्वस्त नहीं हैं”

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बेंच ने मामले की दो प्राथमिकी का जिक्र किया. इनमें से एक किसानों को कुचलने से संबंधित है जबकि दूसरी प्राथमिकी भीड़ द्वारा बाद में बीजेपी कार्यकर्ताओं की पीट-पीटकर हत्या करने से संबंधित है. बेंच ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि पहले मामले में आरोपियों के बचाव के लिए सबूत प्राप्त किए जा रहे थे.

बेंच ने कहा, ‘‘ एक और बात, हमारे मन में यह सुनिश्चित करना है कि प्राथमिकी संख्या 219 (किसानों को कुचले जाने के मामले) में साक्ष्य स्वतंत्र रूप से दर्ज किए जाएं और प्राथमिकी संख्या 220 (पीट-पीटकर हत्या मामले) में भी साक्ष्य स्वतंत्र रूप से दर्ज किए जाएं और दोनों मामलों के सबूतों में घालमेल नहीं हो.’’

कोर्ट ने कहा, ‘हम दैनिक आधार पर जांच की निगरानी के लिए एक अलग हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त करने के पक्ष में हैं और फिर देखते हैं कि अलग-अलग आरोप पत्र कैसे तैयार किए जाते हैं.’

सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के दो पूर्व न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति रंजीत सिंह और न्यायमूर्ति राकेश कुमार जैन के नामों का सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि दोनों आपराधिक कानून के क्षेत्र में अनुभवी हैं और मामलों में आरोपपत्र दाखिल होने तक एसआईटी की जांच की निगरानी करेंगे.

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अब राज्य सरकार को इस संबंध में 12 नवंबर तक जवाब देना है.

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