ज्ञानवापी विवाद: कच्छ की रानी और औरंगजेब वाली कहानी, कितनी है सच्चाई? यहां जानिए

सत्यम मिश्रा

ADVERTISEMENT

UPTAK
social share
google news

वाराणसी स्थित ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी-सर्वे की प्रक्रिया के बाद से इस परिसर की ऐतिहासिक कहानी पर कई सवाल खड़े हुए हैं. मुगल बादशाह औरंगजेब ने काशी में विश्वेश्वर मंदिर को क्यों तुड़वाया था, इसको लेकर कई कहानियां इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं. इन्हीं कहानियों में से एक पट्टाभि सीतारमैय्या की कहानी है. उन्होंने अपनी किताब Feathers And Stones में एक मौलाना की पांडुलिपि का जिक्र करते हुए बताया है कि आखिर औरंगजेब ने मंदिर क्यों तुड़वाया. पट्टाभि सीतारमैय्या की कहानी को लेकर यूपी तक लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और मशहूर इतिहासकार रवि भट्ट से खास बातचीत की है.

मशहूर इतिहासकार ने कहा,

“जहां तक फेदर एंड स्टोन्स किताब की बात है और उसके राइटर (पट्टाभि सीतारमैय्या) की बात है, तो मैं बता दूं कि उनके राइटर पहले चिकित्सक थे और उसके बाद वह पॉलीटिकल एक्टिविस्ट हुए. उनका पूरा जीवन राजनीतिक प्रक्रिया में गुजरा और फिर वह मध्य प्रदेश के गवर्नर बने, लेकिन वह इतिहासकार नहीं थे.”

रवि भट्ट

यह भी पढ़ें...

ADVERTISEMENT

उन्होंने आगे कहा, “फेदर एंड स्टोन्स किताब में उन्होंने किसी सोर्स का जिक्र नहीं किया है. जो एक इतिहासकार होता है, वह हमेशा अपने सोर्स का जिक्र करता है. इस किताब में सीतारामय्या ने जो सोर्स दिया है वह भी बहुत हास्यपद है. एक मौलाना के मौखिक बयान को आखिर कैसे हिस्ट्री का फैक्ट माना जा सकता है और उन मौलाना ने कहा था कि वह उन्हें मैनुस्क्रिप्ट देंगे, लेकिन कभी दी नहीं और उनकी डेथ हो गई. कोई भी इतिहासकार किताब में मौलाना का जिक्र के तथ्य को प्रमाणिक मानने को तैयार नहीं होगा, क्योंकि सीतारमैय्या ने जो अपनी किताब में जो सोर्स लिखा है, वह उनकी बात को सिद्ध करने का पर्याप्त साक्ष्य नहीं है.”

रवि भट्ट ने सुनाई इतिहासकार जदुनाथ सरकार की कहानी

रवि भट्ट ने कहा, “एक हिस्टोरियन हुए हैं जिन्होंने औरंगजेब पर सबसे ज्यादा लिखा है, उनका नाम है जदुनाथ सरकार. जदुनाथ सरकार से ज्यादा औरंगजेब पर किसी ने काम नहीं किया है वह एक रिस्पेक्टेड हिस्टोरियन हैं. उन्होंने एक फारसी किताब को ट्रांसलेट करके इंग्लिश में लिखा है, जिसका नाम है मआसिर-ए-आलमगिरी.”

ADVERTISEMENT

उन्होंने कहा, मआसिर-ए-आलमगिरी को लिखने वाले इतिहासकार का नाम है शाकी मुस्ताईद खान है. मुस्ताईद खान में खास बात यह है कि वह कोई दरबारी इतिहासकार नहीं था क्योंकि भारत में ज्यादातर इतिहासकार दरबारी थे जो सिर्फ शासकों की जन्म तिथि और मृत्यु कि तिथि लिखते थे और उनकी प्रशंसा में भी लिखते थे. लेकिन यह इतिहासकार दरबारी नहीं था यह एक स्वतंत्र इतिहासकार था.”

रवि भट्ट ने ने आगे कहा, बड़ी बात यह है कि, मुस्ताईद खानऔरंगजेब के समय के ही इतिहासकार हैं. औरंगजेब का जन्म 1658 से 1707 का था और मुस्ताईद खान की किताब औरंगजेब की मृत्यु के 3 साल बाद 1710 में पूरी हुई, लेकिन इस तरीके के वाक्या का कोई जिक्र उस किताब में नहीं है. अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने का आदेश दिया था और सितंबर में इसे तोड़ने की सूचना औरंगजेब को दे दी गई थी.”

रवि भट्ट ने कहा, “जिस किताब का जिक्र लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने किया उसकी क्रेडिबिलिटी क्या है? देखिए लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के ऊपर जो एफआईआर दर्ज हुई है मैं उस पॉलिटिकल चर्चा का हिस्सा नहीं होना चाहता हूं. लेकिन इतना कहूंगा कि अगर उन्होंने कुछ कहा है तो जिम्मेदारों को आगे आकर उसपर रिसर्च करना चाहिए, लेकिन किताब के तथ्यों को मैं गंभीरता से नहीं लेता हूं.”

ADVERTISEMENT

क्या कहती है पट्टाभि सीतारमैय्या किताब Feathers And Stones?

पट्टाभि सीतारमैय्या ने अपनी किताब Feathers And Stones में अपने एक मौलाना की पांडुलिपि का जिक्र करते हुए बड़ा दावा किया था. उन्होंने किताब में लिखा था,

“एक बार औरंगजेब बनारस के पास से गुजर रहा था. सभी हिंदू दरबारी अपने परिवार के साथ गंगा स्नान और भोलेनाथ के दर्शन के लिए काशी आए. मंदिर में दर्शन कर जब लोगों का समूह लौटा तो पता चला कि कच्छ की रानी गायब हैं. सघन तलाशी की गई तो वहां एक तहखाने का पता चला. वहां बिना आभूषण के रानी दिखाई दीं. पता चला कि यहां महंत अमीर और आभूषण पहने श्रद्धालुओं को मंदिर दिखाने के नाम तहखाने में लेकर आते और उनसे आभूषण लूट लेते थे.”

Feathers And Stones

किताब में आगे लिखा गया है, “औरंगजेब को जब पुजारियों की यह करतूत पता चली, तो वह बहुत गुस्सा हुआ. उसने घोषणा की कि जहां इस प्रकार की डकैती हो, वह ईश्वर का घर नहीं हो सकता और मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया. मगर जिस रानी को बचाया गया उन्होंने मलबे पर मस्जिद बनाने की बात कही और उन्हें खुश करने के लिए एक मस्जिद बना दी गई. इस तरह काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में मस्जिद अस्तित्व में आया.”

मौलाना ने इसके बारे में सीतारमैय्या के किसी दोस्त को बताया था और कहा था कि जरूरत पड़ने पर पांडुलिपि दिखा देंगे. बाद में मौलाना मर गए और सीतारमैय्या का भी निधन हो गया, लेकिन वह कभी अपने उस दोस्त और लखनऊ के मौलाना का नाम नहीं बता पाए.

ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में हिंदू पक्ष, रामचरितमानस से जुड़ी चीजें? एक्सक्लूसिव तस्वीर

follow whatsapp

ADVERTISEMENT