‘नारी शक्ति’ से जाति-धर्म को बैलेंस करने की कोशिश! ममता की तरह प्रियंका होंगी कामयाब?

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आपका सवाल होगा कि ये कौन हैं? ये सभी वे हैं, जिनका जिक्र मंगलवार, 19 अक्टूबर को करते हुए प्रियंका गांधी ने ऐलान किया कि यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देगी. प्रियंका गांधी के इस ऐलान को कांग्रेस मास्टर स्ट्रोक कह रही है, तो मायावती और बीजेपी ने इसपर जबर्दस्त तरीके से हमला भी बोला है.

प्रियंका जब यूपी में कांग्रेस की नई रणनीति का ऐलान कर रही थीं, तो पीछे एक पोस्टर लगा था जिसपर पंच लाइन लिखी थी, ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’. अब सवाल यह है कि यह पंच लाइन यूपी में कांग्रेस के लिए कितनी लड़ाई लड़ पाएगी? क्या प्रियंका गांधी इस फॉर्म्युले से ममता बनर्जी जैसा जादू रच पाएंगी? आइए इसे ही समझने की कोशिश करते हैं.

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कांग्रेस की मजबूरी से निकला मजबूती की कोशिश का ये रास्ता?

1989 के बाद से उत्तर प्रदेश की सियासत में वापसी के लिए कोशिश कर रही कांग्रेस के अबतक सारे दांव यूपी में फेल ही नजर आए हैं. 2017 में कांग्रेस ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से गठबंधन करके भी देख लिया, लेकिन कोई फायदा नजर नहीं आया. चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि यूपी में कांग्रेस का कोई एक वोटर आधार (जातिगत या धार्मिक) है ही नहीं. अगर इसकी व्याख्या करें, तो जैसे माना जाता है कि एसपी के साथ मुस्लिम-यादव हैं, बीएसपी के साथ दलित हैं और बीजेपी के साथ हिंदुत्व की छतरी है, वैसा कांग्रेस के साथ कुछ सॉलिड नजर नहीं आता.

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ऐसे में जाति और धर्म की पिच पर खड़ी यूपी की सियासत में मजबूर नजर आ रही कांग्रेस के लिए क्या प्रियंका का कदम मास्टरस्ट्रोक साबित होगा? यूपी कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष और वाराणसी से पूर्व सांसद राजेश मिश्रा कहते हैं कि आजादी के बाद आजतक किसी पार्टी ने महिलाओं के लिए इतनी बड़ी घोषणा करने का साहस नहीं दिखाया था. उनका कहना है कि प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस यूपी और देश में आधी आबादी को उनका हक दिला रही है और यह कदम अभूतपूर्व सफलता लेकर आएगा.

यूपी में लगातार बढ़ रही है महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी

प्रियंका गांधी के इस ऐलान को चुनावी कसौटी पर कसने से पहले यह जानना जरूरी है कि यूपी में वोटिंग के दौरान महिला वोटर्स की भागीदारी कैसी है. आइए 2007, 2012 और 2017 यानी पिछले 3 विधानसभा चुनावों के हिसाब से इस बात को समझने की कोशिश करते हैं.

2007 का विधानसभा चुनाव: चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2007 के विधानसभा चुनावों में कुल वैलिड वोटर्स की संख्या 11 करोड़ 35 लाख 49 हजार 350 थी. इसमें पुरुष मतदाता 6 करोड़ 15 लाख 81 हजार 185 और महिला मतदाता 5 करोड़ 19 लाख 68 हजार 165 थीं. वोटिंग के दौरान इनमें से पुरुषों के 49.35 फीसदी वोट (30392935 वोट) और महिलाओं के 41.91 फीसदी वोट (21784164 वोट) पड़े.

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2012 का विधानसभा चुनाव: चुनाव आयोग के मुताबिक इस विधानसभा चुनाव में कुल वैलिड वोटर्स की संख्या 12 करोड़ 74 लाख 92 हजार 836 थी. इसमें पुरुष मतदाता 7 करोड़ 2 लाख 56 हजार 859 थे, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 5 करोड़ 72 लाख 32 हजार 2 थी. चुनाव में इनमें से पुरुषों के 58.68 फीसदी वोट (41225412 वोट) और महिलाओं के 60.28 फीसदी वोट (34500316 वोट) पड़े. यानी महिलाओं ने की भागीदारी का प्रतिशत पुरुषों से आगे निकल गया.

2017 का विधानसभा चुनाव: चुनाव आयोग के मुताबिक इस चुनाव में कुल वैलिड वोटर्स की संख्या 14 करोड़ 16 लाख 63 हजार 646 थी. इसमें पुरुष मतदाता 7 करोड़ 70 लाख 42 हजार 607 थे, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 6 करोड़ 46 लाख 13 हजार 747 थी. जब वोटिंग की बारी आई तो पुरुषों के 59.14 फीसदी वोट (45570067 वोट) पड़े और महिलाओं के 63.30 फीसदी वोट (40906123 वोट) पड़े.

तीन चुनावों में एक स्पष्ट पैटर्न देखने को मिल रहा है. वह पैटर्न है यूपी की चुनावी प्रक्रिया में महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी का. शायद यही वजह है कि प्रियंका गांधी ने इस वोटर समूह की ताकत को भांपते हुए टिकट बंटवारे में 40 फीसदी महिला आरक्षण का वादा कर दिया है.

प्रियंका के ऐलान से बीजेपी को होगा नुकसान?

बीजेपी ने पिछले चुनावों में महिला केंद्रित योजनाओं की अच्छी फसल काटी और यह आंकड़ों में भी दिखा. खासकर उज्ज्वला योजना, ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून, स्वच्छ भारत अभियान, जनधन योजना, प्रधान मंत्री आवास योजना और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं ने महिलाओं का रुख बीजेपी की तरफ मोड़ने में सफलता पाई. द हिंदू की एक रिपोर्ट में सीएसडीएस की स्टडी के हवाले से बताया गया है कि 2019 के आम चुनावों तक उज्ज्वला योजना का फायदा 34 फीसदी महिलाओं तक पहुंचा. योजना का फायदा उठाने वाली महिलाओं ने इसका फायदा नहीं पाने वाली महिलाओं की तुलना में बीजेपी को ज्यादा वोट किया (क्रमशः 41 और 33 फीसदी). इसी तरह जनधन योजना का फायदा पाने वाली 42 फीसदी महिलाओं ने बीजेपी को वोट किया, जबकि जिन्हें फायदा नहीं मिला, उनमें 34 फीसदी महिलाएं बीजेपी के साथ दिखीं.

साफ है कि महिला केंद्रित योजनाओं ने बीजेपी के लिए महिलाओं के वोट पाने का रास्ता साफ किया. अब प्रियंका गांधी ने महिलाओं के लिए 40 फीसदी टिकट देने का ऐलान किया है, तो जाहिर तौर पर बीजेपी के लिए यह चिंता का सबब है. यही वजह है कि बीजेपी प्रियंका गांधी पर सबसे अधिक हमलावर नजर आ रही है. असल में प्रियंका गांधी ने सोमवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी कहा था, ”आपकी सुरक्षा कोई नहीं करने वाला, सब बातें करते हैं, सुरक्षा करने का जब समय आता है, तो सुरक्षा उनकी होती है, जो आपको कुचलते हैं.”

बीजेपी उत्तर प्रदेश की तरफ से सोशल मीडिया पर शेयर किए गए वीडियो में प्रियंका का यह बयान दिखाकर कहा गया है, ”कांग्रेस की असलियत : कांग्रेस की कार्यशैली के बारे में आपने बिल्कुल ठीक कहा प्रियंका जी, वर्ष 2020 में कुछ ऐसा ही हुआ था देवरिया में, जहां कांग्रेस की महिला नेत्री तारा यादव ने एक दुष्कर्म के आरोपी को उपचुनाव का टिकट देने का विरोध किया था और बदले में उन्हें आपके कई नेताओं और कार्यकर्ताओं ने बेरहमी से पीटा था.”

प्रियंका की ‘वुमन पॉलिटिक्स’ पर BJP का वार, कहा- ‘लड़की तो लड़ लेगी, लेकिन…’

कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुईं और बाद में सांसद बनीं रीता बहुगुणा जोशी ने भी कांग्रेस को निशाने पर लिया है. उन्होंने कहा कि, ‘जिन महिलाओं ने बहुत योगदान दिया इस पार्टी के लिए उन्हें तो ये रोक नहीं सके, आप देखिए कि मेरे साथ कैसा व्यवहार हुआ, जबकि मैंने अपनी जिंदगी के करीब 18 साल कांग्रेस पार्टी को निस्वार्थ दिए. आपने अगर पद पर मुझे रखा तो मैंने कितनी मेहनत की उसके लिए, मुझे भी अपमानित किया. सुष्मिता देव ने क्यों छोड़ दिया, प्रियंका चतुर्वेदी ने क्यों छोड़ दिया?’

हालांकि बीजेपी के इन आरोपों का जवाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजेश मिश्रा ने भी दिया. उन्होंने कहा कि ‘रीता बहुगुणा जोशी एसपी से कांग्रेस में आई थीं. इसके बावजूद एक महिला के नाते कांग्रेस ने उनका सम्मान किया और प्रदेश अध्यक्ष तक उन्हें बनाया. आज वह कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन इस ऐतहासिक सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सकता कि इस देश की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी कांग्रेस के शासनकाल में ही मजबूत हुई. चाहे वह राष्ट्रीय राजनीति हो या पंचायत की राजनीति, कांग्रेस ने महिलाओं के हाथ को हमेशा मजबूत किया.’

क्या ममता बनर्जी वाला करिश्मा दोहरा पाएंगी प्रियंका?

प्रियंका गांधी के इस कथित मास्टरस्ट्रोक को पश्चिम बंगाल के सियासी नजरिए से भी समझने की कोशिश की जा सकती है. इस साल पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में सफलता पाई. 292 सीटों में ममता की तृणमूल कांग्रेस को 213 सीटों पर जीत मिली थी. ममता बनर्जी को दो तिहाई बहुमत मिला, जबकि चुनाव पूर्व सर्वे में बीजेपी को भी टीएमसी के साथ क्लोज फाइट में दिखाया जा रहा था. सीएसडीएस-लोकनीति की पोस्ट इलेक्शन स्टडी में पता चला कि साइलेंट वोटर्स के तौर पर ममता बनर्जी को 50 महिलाओं ने वोट किया था. बंगाल में बीजेपी के लिए यह आंकड़ा 37 फीसदी के करीब था.

पश्चिम बंगाल में प्रशांत किशोर के आईपैक ने ममत बनर्जी के कैंपेन का जिम्मा संभाला था. उन्होंने ‘दीदेके बोलो’, ‘बांग्ला निजेर मिये (बंगाल की अपनी बेटी)’ जैसे कैंपेन लॉन्च किए, जो महिला केंद्रित रहे. तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल के 300 से अधिक ब्लॉक में लगातार ‘सहेली सभाएं’ की. इनके संग महिला केंद्रित योजनाओं ने ममता बनर्जी के पॉप्युलर फीमेल फैन बेस को न सिर्फ बनाए रखा बल्कि और मजबूत भी किया. नतीजन चुनावी परिणामों ने सबको चकित भी किया.

हालांकि पश्चिम बंगाल में जैसी राजनीतिक शक्ति तृणमूल के पास है, उसके नजदीक भी यूपी में कांग्रेस नहीं है. लेकिन क्या महिलाओं के सेंटिमेंट कांग्रेस की इस मौजूदा स्थिति को बदल सकते हैं? इसे समझने के लिए हमने राजनीतिक और चुनावी विश्लेषक सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स (CSSP) के फेलो और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संजय कुमार संग बात की.

प्रियंका का कदम स्वागत योग्य, निश्चित तौर पर पहुंचाएगा फायदा: एक्सपर्ट

डॉ. संजय कुमार प्रियंका गांधी के इस ऐलान को एक स्वागत योग्य कदम मानते हैं. उनका कहना है कि ‘चुनावी नतीजों से इतर इस फैसले के ज्यादा बड़े निहितार्थ हैं. अगर प्रियंका गांधी सिर्फ चुनावी राजनीति भी कर रही हैं, तो भी इस कदम का स्वागत होना चाहिए.’ डॉ. संजय आगे कहते हैं कि बीजेपी को खुद महिला केंद्रित राजनीति के चुनावी फायदे मिल चुके हैं और इसका सबसे बड़ा उदाहरण ट्रिपल तलाक कानून के बाद पार्टी को मिले मुस्लिमों के वोट हैं. इसी तरह बीजेपी की फ्लैगशिप उन योजनाओं का भी फायदा मिला जो महिला केंद्रित थीं. चाहे वह उज्ज्वला हो या फिर शौचालय बनवाना, जिसे इज्जत घर के रूप में भी बीजेपी नेताओं ने परिभाषितम किया. ऐसे में प्रियंका गांधी यह फैसला प्रशंसनीय है और इसका फायदा भी कांग्रेस को जरूर मिलेगा.’

हालांकि चुनावी राजनीति में फैसलों के मायने चुनावी नतीजों के अक्स में ही देखे जाते हैं. ऐसे में अब यह देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस कैसे अपने इस स्ट्रोक को यूपी के घर-घर तक पहुंचाती है? कैसे टिकट का बंटवारा होता है? और यह भी कि क्या यूपी की महिलाएं और बेटियां प्रियंका का साथ देती हैं या नहीं.

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