लखीमपुर खीरी: सिख दंगों के पोस्टर प्रियंका को रोक पाएंगे? कांग्रेस को कितना फायदा, समझिए

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लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में 3 अक्टूबर को हुई हिंसा के बाद से ही यूपी की राजनीति बहुत हद तक इसके आसपास घूमती नजर आ रही है. यूपी में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले विपक्ष के हाथ ये एक बड़ा मुद्दा लगा है, जिसपर योगी और मोदी सरकार घिरी हुई नजर आ रही है. इस मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के आरोपी बेटे आशीष मिश्रा फिलहाल पुलिस की रिमांड में हैं. वहीं संयुक्त किसान मोर्चा और विपक्ष इस मामले में केंद्रीय मंत्री टेनी के इस्तीफे और उनकी भी गिरफ्तारी की मांग कर रहा है. लखीमपुर खीरी मुद्दे को कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने भी जोरशोर से उठा रखा है. हिंसा के तुरंत बाद लखीमपुर खीरी पहुंचने की कोशिश में प्रियंका को यूपी पुलिस ने गिरफ्तार क्या किया, यूपी के आगामी चुनावी रण में अपनी भूमिका पोजिशन मजबूत करने में जुटी कांग्रेस के हाथों संजीवनी लग गई.

प्रियंका ने लखीमपुर खीरी कांड के बाद से वाराणसी में किसान न्याय रैली की, लखनऊ में मौन व्रत धरना दिया और फिर अंतिम अरदास में भी शामिल हुईं. उधर बीजेपी ने भी कांग्रेस को इस मामले में निशाने पर ले रखा है. बीजेपी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस शासित राज्यों में दलितों, किसानों पर अत्याचार हो रहा है लेकिन प्रियंका को इसकी परवाह नहीं. इस बीच लखनऊ और लखीमपुर खीरी में प्रियंका के विरोध में सिख दंगों से जुड़ी पोस्टरबाजी भी सामने आई हैं. ये होर्डिंग अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य सरदार परविंदर सिंह, गुरु नानक वाटिका कमेटी के अध्यक्ष सरदार रविंद्र पाल सिंह जैसे नामों के साथ सामने आई हैं.

लखीमपुर खीरी: प्रियंका गांधी के रास्ते में लगे होर्डिंग- ‘नहीं चाहिए फर्जी सहानुभूति’

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ऐसे में अहम सवाल यह है कि लखीमपुर खीरी मामले को लेकर प्रदेश भर में आंदोलनरत कांग्रेस को क्या इसका कोई चुनावी फायदा मिलेगा? क्या इस मामले को लेकर सक्रिय हुईं प्रियंका गांधी यूपी में कांग्रेस को पुनर्जीवित कर पाएंगे? और यह भी कि क्या सिख दंगों की सियासत गांधी परिवार की राजनीतिक नुकसान पहुंचाने के लिए आज भी प्रासंगिक है?

पिछले चुनावी प्रदर्शन से कांग्रेस की हालत को समझिए

यूपी में कांग्रेस की राजनीतिक ताकत अब कितनी है, इसका अंदाजा लगाने के लिए एक बार पिछले चुनावी प्रदर्शनों पर नजर डालते हैं. 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अखिलेश के साथ गठबंधन किया था. इसके बावजूद कांग्रेस को महज 6.25 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस को मिली सीटों की संख्या 7 थी. हालांकि गठबंधन में समाजवादी पार्टी ने 311 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि कांग्रेस ने 114 सीटों पर कैंडिडेट उतार दिए थे. ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि अंतिम समय में दोनों पार्टियों में गफलत की स्थिति आ गई थी.

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क्या लखीमपुर खीरी मामले से चमत्कार हो जाएगा?

लखीमपुर खीरी मामले पर प्रियंका गांधी की सक्रियता क्या कांग्रेस के लिए चमत्कार का काम करेगी? एक्सपर्ट के मुताबिक राजनीति में ऐसा कोई जनरलाइज स्टेटमेंट नहीं दिया जा सकता है. यूपी तक ने इस मामले में राजनीतिक विश्लेषण का 4 दशकों से भी अधिक का अनुभव रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार जय शंकर गुप्ता से बात की.

उन्होंने हमें बताया, ‘लखीमपुर खीरी केस में प्रियंका गांधी की सक्रियता ने हताश और निराश कांग्रेसजनों में एक उम्मीद की किरण जगाने में कामयाबी हासिल की है. वाराणसी में प्रियंका की रैली के काफी चर्चे हैं. पीएम मोदी के लोकसभा क्षेत्र में इतनी मेगा रैली कराना एक बड़ी उपलब्धि है. यूपी में कांग्रेसी हैं, लेकिन वे मुख्यधारा की राजनीति से कटे हुए हैं. प्रियंका के एक्टिविज्म ने उनमें जीत का नहीं, तो कम से कम लड़ने का जज्बा को पैदा कर ही दिया है.’

हालांकि वह इस बात को भी जोर देकर कह रहे हैं कि मुश्किल यही है कि प्रियंका हों या राहुल गांधी, उनकी राजनीतिक सक्रियता में निरंतरता का अभाव दिखता है. उन्हें खुद को लेकर बनी इस धारणा को यूपी चुनाव के संदर्भ में बदलने की जरूरत होगी.

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वह आगे कहते हैं…

कांग्रेस की यह कवायद उसे वोट कितना दिलाएगा, इसपर दावे से कुछ नहीं कहा जा सकता. यूपी में कांग्रेस के पास संगठनात्मक ढांचा नहीं रह गया है. अगर आपके नेता हवा बनाते हैं, तो उसे वोट में कंवर्ट कर ईवीएम तक पहुंचाने के लिए संगठन चाहिए. अभी की लड़ाई तो एसपी और बीजेपी के बीच ही नजर आ रही है. हालांकि कांग्रेस को अगर विधानसभा चुनावों में फायदा नहीं हुआ और इस तरह की सक्रियता फिर भी जारी रही, तो निश्चित तौर पर 2024 के चुनावों तक कांग्रेस यूपी में एक ताकत बन जाएगी.

वरिष्ठ पत्रकार जय शंकर गुप्ता

1948 सिख दंगा: ‘इतनी बार भुनाया गया मुद्दा कि अब इसमें दम नहीं’

क्या सिख दंगों से जुड़े पोस्टर प्रियंका के राजनीतिक हितों को प्रभावित करेंगे? वरिष्ठ पत्रकार जय शकंर गुप्ता की राय इससे अलग है. उनका कहना है, ‘1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर इतनी बार भुनाया जा चुका है कि उसमें दम नहीं. सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और राहुल गांधी ने भी माफी मांगी है, जो कि इन दंगों के जिम्मेदार भी नहीं थे. दंगों के दोषियों को लेकर कांग्रेस ने कोई नरमी नहीं दिखाई. सज्जन कुमार जेल में हैं और टाइटलर को सक्रिय राजनीति से बाहर कर दिया गया. लेकिन यही बात बीजेपी के लोग गुजरात के दंगों के बारे में नहीं कह सकते. 1984 सिख दंगों के बाद पंजाब में बेअंत सिंह नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी. कैप्टन अमरिंदर दो बार सीएम बने. मनमोहन सिंह पीएम बने. ऐसे में सिख दंगों का मामला कांग्रेस के लिए राजनीतिक रूप से कोई चुनौती नहीं रह गया है.’

किसान आंदोलन के असर को सिर्फ सिखों तक समझना रणनीतिक भूल: एक्सपर्ट

किसान आंदोलनों को लेकर कहीं न कहीं यह नैरेटिव भी पेश किया जा रहा है कि मूलतः यह आंदोलन सिखों का है. राजनीतिक मामलों के जानकार जय शंकर गुप्ता इससे भी इनकार करते हैं. वह सवाल करते हैं, ‘क्या राकेश टिकैत सिख हैं? लखीमपुर खीरी कांड के बाद यह तराई का आंदोलन भी बन गया है. फिर प्रियंका इस मुद्दे को लेकर बनारस पहुंच गईं, तो यह पूर्वांचल पर भी असर डालने वाला बन गया. महाराष्ट्र तक में लखीमपुर खीरी हिंसा के विरोध में में बंदी हो गई, तो फिलहाल यह सिर्फ यूपी नहीं बल्कि पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों पर असर छोड़ता दिख रहा है.’

वह आगे कहते हैं,

‘अबतक लखीमपुर खीरी हिंसा पर पीएम मोदी ने एक शब्द नहीं बोला है, लेकिन यूपी के चुनाव में जवाब तो देना पड़ेगा. अजय मिश्रा टेनी मंत्री पद पर बने हैं, जबकि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष कह रहे हैं कि राजनीति का मतलब फॉर्म्चुनर से कुचलना नहीं होता है. यानी बीजेपी में भी आतंरिक रूप से अलग-अलग चर्चाएं हैं. ऐसे में आप मान कर चलिए कि इस घटना का राजनीतिक असर पड़ेगा.’

वरिष्ठ पत्रकार जय शंकर गुप्ता

लखीमपुर खीरी मामले से कांग्रेस को चुनावी फायदा कितना?

कांग्रेस भले ही लखीमपुर खीरी केस में लीड करने का दावा करे और आगामी चुनावों को लेकर अपनी मजबूती की बात कहे, लेकिन चुनावी विश्लेषक इससे सहमत नजर नहीं आते. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स (CSSP) के फेलो और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि यूपी में कांग्रेस ही नहीं बल्कि किसी भी पार्टी को सीटें थोड़ी भी अच्छी चाहिए तो उन्हें 18 फीसदी वोट तो लाने ही होंगे.

वह कहते हैं,

अब आप कांग्रेस का प्रदर्शन देख लीजिए. 2017 में कांग्रेस को यूपी में 6.25 फीसदी वोट मिले, 2012 में 11.65 फीसदी, 2007 में 8.5, 2002 में 8.9, 1996 में 15 फीसदी, 1993 में 15 फीसदी और 1991 में 17.4 फीसदी वोट मिले. पिछले 30 सालों से यूपी में कांग्रेस की यही स्थिति है.’ उनका कहना है कि ऐसे में यूपी में कांग्रेस की कोई स्वर्णिम संभावनाएं नजर नहीं आतीं.

CSSP) के फेलो और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संजय कुमार

उनका कहना है कि अब सवाल है कि कांग्रेस का वोट शेयर किन चीजों से बढ़ेगा. वह बताते हैं कि ‘कांग्रेस को लगता है कि दलित उसके साथ आ सकते हैं. इसी वजह से पंजाब में दलित सीएम बने तो इसे यूपी में भुनाने की कोशिश की गई. प्रियंका गांधी भी झाड़ू लगाती दिखीं. तो ये प्रतीक की राजनीति कांग्रेस कर रही है और मेरे हिसाब से कांग्रेस की यह सोच उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है. कांग्रेस को लगता है कि मायावती इस समय सबसे कमजोर ग्राउंड पर बैटिंग कर रही हैं. ऐसे में अगर उनके वोट बैंक का बड़ा हिस्सा कांग्रेस अपने साथ लाने में सफल रही, तो उसकी संभावनाएं बढ़ी भी सकती हैं.’

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