UP: वापसी के लिए बेकरार रही कांग्रेस पर 2022 में बचा-खुचा वोट भी ‘हाथ से सरका’, आगे क्या?
साल 2022 अब बस गुजरने वाला ही है. यह साल उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए काफी वाइब्रेंट रहा. नए-नए सियासी रिकॉर्ड बने. बीजेपी ने…
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साल 2022 अब बस गुजरने वाला ही है. यह साल उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए काफी वाइब्रेंट रहा. नए-नए सियासी रिकॉर्ड बने. बीजेपी ने 37 सालों बाद यूपी में सरकार रिपीट करने रिकॉर्ड बनाया. यह साल अखिलेश यादव के लिए भी मुफीद रहा और उन्होंने सफलतापूर्वक खुद को विपक्ष का सर्वमान्य नेता बना लिया. पर यह साल खासकर कांग्रेस के लिए सियासी तौर पर काफी भारी रहा. 1989 के बाद से ही यूपी का राजनीति में अप्रासंगिक हुई कांग्रेस ने इस बार महासचिव प्रियंका गांधी के नेतृत्व में विधानसभा चुनावों के दौरान काफी मेहनत की. लड़की हूं, लड़ सकती हूं जैसे पॉलिटिकल कैंपेन के साथ यूपी की आधी आबादी को प्रभावित करने की कोशिश की गई. पर नतीजा सिफर रहा.
जब नतीजे आए तो यूपी में बचा-खुचा वोट भी कांग्रेस के हाथ से सरकता नजर आया. अब यूपी से 2024 की लड़ाई तय होने जा रही है. नए साल में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा भी यूपी में प्रवेश करने वाली है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या नए साल में यूपी में कांग्रेस के लिए सियासी तस्वीर बदलेगी? या मामला फिर वही ढाक के तीन पात वाला रही रहेगा. जाते हुए साल 2022 में यूपी तक आपके लिए उत्तर प्रदेश के पॉलिटिकल ईयर एंडर की एक झलक लेकर आया है. इस पॉलिटिकल एयर एंडर की पहली, दूसरी और तीसरी किस्त में आप साल 2022 में बीजेपी के रिकॉर्ड प्रदर्शन, अखिलेश यादव की वापसी और मायावती के खिसकते आधार की कहानी पढ़ चुके हैं. इस चौथी किस्त में हम आपको बताएंगे कि आखिर जाता हुआ साल कांग्रेस के लिए कितने सबक देकर गया…
सिर्फ दो विधायक जीते, लेकिन वोट शेयर अबतक का न्यूनतम
बात शुरू करते हैं यूपी में हुए विधानसभा चुनावों से. कांग्रेस ने प्रियंका गांधी के नेतृत्व में जोरशोर से यह चुनाव लड़ा. कांग्रेस ने इस बार बिना गठबंधन खुद को आजमाने की कोशिश की. प्रियंका गांधी ने एक तरह से यूपी को ही अपना दूसरा घर बना लिया. तमाम मुद्दों पर वह जमीन पर लड़ती नजर आईं. यहां तक कि उन्होंने पुलिस हिरासत में भी अपना वक्त बिताया. पर जब बात चुनावी नतीजों की आई, तो पूरी कांग्रेस लीडरशिप ठगी खड़ी रह गई.
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कांग्रेस को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली. रामपुर खास से अराधना मिश्रा मोना और महराजगंज के फरेंदा से विक्रम चौधरी को जीत मिली. सुहेलदेव पार्टी और निषाद पार्टी जैसे छोटे दलों ने भी सीट जीतने के आधार पर कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया. कांग्रेस के जुझारू नेता और प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू तक अपनी तुमकहीराज सीट गंवा बैठे.
आंकड़े दिखाते हैं कि कांग्रेस के लिए यूपी में भयावह रही स्थिति
कांग्रेस को 2022 के चुनावों में महज 2.33 फीसदी वोट मिले. यह 2017 के प्रदर्शन से भी नीचे आना रहा जब सपा के साथ गठबंधन में कांग्रेस को 6.25 फीसदी वोट मिले थे. सभी जातियों में कांग्रेस का आधार तो दरका ही, मुस्लिमों ने भी पार्टी से किनारा कर सिर्फ अखिलेश पर भरोसा किया. 2017 के चुनावों में जहां 19 फीसदी मुस्लिम कांग्रेस के साथ दिखे थे, तो 2022 में यह आंकड़ा घटकर 3 फीसदी रह गया.
आगे की राह और कठिन
बात सिर्फ विधानसभा चुनावों तक सीमित रहती, तो कांग्रेस एक बार यह सोच सकती है कि लोकसभा चुनावों में पार्टी को पोजिशनिंग बेहतर होगी. हालांकि जाता हुआ साल इस बात के कोई संकेत देता नजर नहीं आ रहा है. इसके उलट, इस् बात की पूरी जमीन तैयार हो रही है कि कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में भी स्ट्रगल करना पड़ सकता है.
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इस बात का सबसे तगड़ा संकेत अखिलेश यादव ने दिया है. अखिलेश यादव से पिछले दिनों जब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के निमंत्रण के बारे में सवाल पूछा गया, तो वह बिफर पड़े. उन्होंने तल्ख अंदाज में कहा कि निमंत्रण नहीं मिला और मैं मानता हूं कि बीजेपी और कांग्रेस, दोनों एक हैं.
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस अगर यूपी में 2024 के रण के लिए गठबंधन की कोशिश करती है, तो उसे हार्ड बार्गेनिंग का शिकार होना पड़ेगा. कांग्रेस के लिए असल चिंता यही है. वह यूपी में अमेठी का अपना किला गंवा चुकी है. सोनिया गांधी सक्रिय नहीं हैं और इस बार रायबरेली के किले को भी बचाना कांग्रेस के लिए मुश्किल का सौदा नजर आ रहा है. यह देखना रोचक होगा कि कांग्रेस की लीडरशिप यूपी में 2024 की सियासी जमीन पर खुद को मजबूत करने के लिए क्या दांव पेच खेलती है.
क्या राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का अल्टरनेटिव होना कांग्रेस को देगा फायदा?
कांग्रेस के लिए महज यह एक बात ही संबल है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर अभी भी बीजेपी का अल्टरनेटिव है. 2024 का चुनाव जब लड़ा जा रहा होगा, तो यह इलेक्शन बीजेपी को सत्ता में वापस लाने और सत्ता से बाहर करने वालों के बीच में होगा. पिछले चुनावों में साफ देखा जा चुका है कि यूपी के वोटर्स सिर्फ दो ध्रुवों में बंटे हुए हैं. यहां का परंपरागत जातिगत और धार्मिक आधार बदल चुका है. ऐसे में वोटिंग पैटर्न को देखते हुए कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती यही है कि वह यूपी में भी खासकर लोकसभा चुनावों के लिए खुद को बीजेपी का अल्टरनेटिव साबित करे. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने अबतक दक्षिण से लेकर उत्तर तक कांग्रेस कार्य़कर्ताओं को एक्टिव करने का काम किया है. राहुल लगातार बीजेपी पर हमलावर हैं और महंगाई-बेरोजगारी जैसे कोर इश्यू पर मोदी सरकार को घेर रहे हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यूपी में भी राहुल या कांग्रेस ऐसा मैसेज दे पाते हैं या नहीं कि बीजेपी के सामने राष्ट्रीय स्तर पर ग्रैंड ओल्ड पार्टी ही एकमात्र विकल्प है.
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अंतिम किस्त में पढ़िए यूपी के दो लड़कों, जयंत चौधरी और चंद्रशेखर आजाद के लिए कैसा सियासी उभार का साल रहा 2022.
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