बिछड़े सभी बारी-बारी लेकिन अखिलेश ने याद दिलाई ‘यारी’, इन 3 बयानों में दिखी 2024 की तैयारी
बुधवार को लखनऊ में समाजवादी पार्टी के दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद अखिलेश यादव ने अपने संबोधन में आखिरकार 2024 की संभावित…
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बुधवार को लखनऊ में समाजवादी पार्टी के दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद अखिलेश यादव ने अपने संबोधन में आखिरकार 2024 की संभावित सियासत का एक खाका खींच ही दिया. पहले दिन यानी आज 28 सितंबर को जब सपा के प्रांतीय सम्मेलन में एक बार फिर नरेश उत्तम पटेल को प्रदेश अध्यक्ष चुना गया तो यह बात भी साफ हो गई कि भले सियासी जीत न मिली हो, लेकिन अखिलेश अपनी पिछली चुनावी रणनीतियों पर ही टिके हैं. इस दौरान अखिलेश ने तीन ऐसे बयान दिए हैं, जो 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर सपा प्रमुख की आकार लेती रणनीति की एक झलक दिखा रहे हैं.
हम अखिलेश यादव के बयानों से साफ हुई सियासी तस्वीर के बारे में भी आपको बताएंगे. उससे पहले यहां नीचे उन तीन बयानों को पढ़िए जो यह बताते हैं कि आखिर 2024 की लड़ाई के लिए अखिलेश के मन में क्या चल रहा है.
बयान नंबर 1
“मैं अपने प्रतिनिधियों के सामने कहना चाहता हूं. ये लड़ाई बड़ी है. हमारा कोई ऐसा सपना नहीं हैं कि हम उस स्थान पर पहुंचें. लेकिन हम समाजवादियों का ये सपना जरूर है कि जो समाज में बांटने वाली ताकतें हैं उनको सत्ता से बाहर निकालने का काम हम लोग मिलकर करें.”
अखिलेश यादव
अखिलेश के इस बयान को समझने में सहूलियत हो इसलिए यहां यह जानना जरूरी है कि उन्होंने यह बयान सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री रविदास मेहरोत्रा के स्वागग भाषण के जवाब में दिया. कार्यक्रम के स्वागत भाषण के दौरान रविदास मेहरोत्रा ने कहा था कि यहां आए लोगों को संकल्प लेना चाहिए कि 2024 में गैर भाजपा सरकार बने और सपा सबसे बड़ी पार्टी. उन्होंने कहा था कि ऐसा हुआ तो अखिलेश यादव देश के पीएम बनेंगे. अखिलेश ने बाद में इसी का जवाब दिया.
बयान नंबर 2
“अगर हम पीछे मुड़कर देखें, जिस समय 2019 का लोकसभा चुनाव था. उस समय भी समाजवादियों ने कोशिश की थी, ऐतिहासिक फैसला लिया था. देश के करोड़ों लोग सपना देख रहे थे कि बहुजन की ताकतें एक साथ एक मंच पर खड़ी हो जाएं, जो कभी डॉक्टर राम मनोहर लोहिया और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने देखा था. वर्ष 2019 में समाजवादियों ने त्याग करके उस सपने को साकार करने की कोशिश की थी. समाजवादी लोग जो चाहते थे कि बड़ी जीत हासिल हो लेकिन जिस तरह के लोग सत्ता में हैं उन्होंने हर चीज का दुरुपयोग किया. हम कामयाब नहीं हुए.”
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बयान नंबर 3
“उसके बाद दोबारा समाजवादियों ने मिलकर वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ा. जो दल उस समय भाजपा को हटाने के लिए संघर्ष कर रहे थे उन सबको साथ लेकर हम लोगों ने एक मंच पर एक गठबंधन तैयार किया. हम जीत नहीं पाए, लेकिन मैं यह कह सकता हूं 2019 और 2022 के प्रयोग ने और जिस तरह से हमारे नेता और कार्यकर्ताओं ने काम किया, भले ही हमें अपेक्षित सफलता न मिली हो लेकिन हम समाजवादी लोग जान गए हैं कि भाजपा का मुकाबला अगर कोई कर सकता है और कोई उसे हरा सकता है तो वह समाजवादी पार्टी है.”
अखिलेश यादव
अब सिलसिलेवार समझिए अखिलेश के इन तीनों बयानों का मतलब
विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद अखिलेश यादव लगातार इस बात को लेकर निशाने पर लिए जाते रहे हैं कि उनसे गठबंधन का कुनबा नहीं संभला. राजभर चुनाव के कुछ ही महीने बाद उनसे छिटक गए. इसी तरह 2019 के नतीजों के बाद मायावती भी अलग हो गईं. और तो और पिछले दिनों जब बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता में जेडीयू की तरफ से नीतीश कुमार के यूपी की फूलपुर सीट से चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट शुरू हुई, तो सपा की तरफ से ठंडी प्रतिक्रिया ही आई. यहां तक संदेश देने की कोशिश हुई कि नीतीश और जेडीयू को जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए क्योंकि अखिलेश यादव राष्ट्रीय स्तर पर खुद भी एक दावेदार हैं.
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इन सब बातों से इस बात की चर्चाएं शुरू हो गईं कि अखिलेश के नेतृत्व में सपा विपक्षी एकता के लिए गंभीर है भी या नहीं.
अब अखिलेश के ऊपर के बयानों की बात करते हैं. अखिलेश ने सपा के मंच से एक तरह से यह साफ करने की कोशिश की है कि विपक्षी एकता में उनकी तरफ से पीएम पद की कोई दावेदारी नहीं है. अखिलेश ने सपा के अधिवेशन में न सिर्फ 2019 में बसपा और 2022 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी समेत अन्य छोटे दलों के साथ हुए गठबंधन का जिक्र किया बल्कि यह भी बताना चाहा कि कैसे सपा ने इन गठबंधनों के लिए उदार रुख अपनाया था. अखिलेश ने स्पष्ट रूप से माना है कि बीजेपी के खिलाफ चल रही यह सियासी लड़ाई उन्हें किसी पद तक पहुंचाने से इतर कुछ अलग ही महत्व रखती है.
अपने तीसरे बयान में अखिलेश जब यह दावा कर रहे हैं कि बीजेपी को सिर्फ सपा हरा सकती है, तो यह भी संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं भले ही विपक्षी एकता के लिए सपा तैयार दिख रही है, लेकिन वह यूपी में बिग ब्रदर की भूमिका के लिए भी इच्छुक है.
हमने इस संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक और पिछड़ों-बहुजन की राजनीति की बदलती दशा-दिशा पर नजर रखने वाले डॉक्टर लक्ष्मण यादव से बात की. डॉक्टर लक्ष्मण ने कहा कि अखिलेश यादव ने बड़े स्पष्ट लहजे में खुद को 2024 की रेस से अलग कर लिया है. उनका पिछले गठबंधनों का जिक्र करना और हार के बावजूद उन गठबंधनों से मिली सकारात्मकता पर बात करना इस ओर इशारा कर रहा है कि उन्होंने 2024 के लिए भी अपने ऑप्शन खुले रखे हैं.
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डॉक्टर लक्ष्मण कहते हैं कि विपक्ष के कई क्षेत्रीय दलों को यह एहसास हो गया है कि बीजेपी की राजनीति उन्हें खत्म र देगी. ऐसे में अखिलेश यादव ने जिस साफगोई से अपनी बातें रखी हैं उसके बाद यूपी में अब जिम्मेदारी कांग्रेस, बसपा सरीखे दलों पर है कि वे विपक्षी एकता को लेकर क्या इनिशिएटिव या फिर कैसा स्टैंड लेती हैं.
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