पैसों की तंगी से लेकर पेटीएम बनाने तक, जानें अलीगढ़ के विजय शेखर शर्मा की कहानी

अकरम खान

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डिजिटल पेमेंट और फाइनेंशियल सर्विसेज उपलब्ध कराने वाली कंपनी पेटीएम के सीईओ विजय शेखर शर्मा हाल के दिनों में काफी चर्चा में रहे हैं. उनकी अब तक की सफर की कहानी आसान नहीं रही है. कभी पैसों की तंगी से जूझने वाले विजय शेखर शर्मा आज अरबों रुपये का कारोबार संभाले हुए हैं. इस बात पर उनके गांव से लेकर, उनके परिवार के सदस्य भी बहुत गौरवांवित महसूस करते हैं.

बता दें कि 4 भाई बहनों में विजय शेखर शर्मा तीसरे नंबर के हैं. विजय का जन्म अलीगढ़ के पास विजयगढ़ नामक एक कस्बे में हुआ था. विजयगढ़ को वैद्य नगरी के नाम से भी जाना जाता है. विजय के बाबा एक प्रतिष्ठित वैद्य और समाजसेवी रहे थे और उन्होंने एक इंटर कॉलेज की स्थापना की थी.

विजय की बड़ी बहन बताती हैं,

“विजय बचपन से ही शांत स्वभाव के रहे, प्रतिभाशाली छात्र रहे. विजय को बचपन से ही क्रिकेट का शौक था और हम लोग बचपन में पापा से छिपते-छिपाते बहुत क्रिकेट खेला करते थे. उनका (विजय) का क्रिकेट का शौक आज आपके सामने है ही.”

उमा पाठक

विजय की बहन ने आगे बताया, “पड़ोस की एक टीचर विजय को अपने साथ स्कूल ले जाया करती थीं और जब एग्जाम हुए तो विजय ने टॉप कर दिया, जिसके बाद स्कूल के सभी टीचर्स ने पिताजी से आग्रह किया कि वे विजय को सेकंड क्लास की बजाए तीसरी क्लास में प्रमोट करना चाहते हैं.”

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बता दें कि विजय ने अलीगढ़ जिले के हरदुआगंज स्थित अग्रसेन इंटर कॉलेज से 1991 में 10वीं और 1993 में 12वीं की परीक्षा पास की थी. विजय ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा में पूरे जिले और मंडल में टॉप किया था. इसके बाद विजय ने इंजीनियरिंग के लिए दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी (डीटीयू) में दाखिला लिया.

हरदुआगंज के स्थानीय निवासी कप्तान सिंह चौहान ने बताया, “हरदुआगंज जैसे देहात के एक कॉलेज से पढ़कर बच्चा ऐसे स्तर तक पहुंच जाए, तो हमारे लिए गर्व और गौरव की बात है. शेखर जी पढ़ाई में काफी लग्नशील थे और हमसे काफी छोटे थे.”

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कप्तान सिंह चौहान ने आगे बताया कि विजय शेखर शर्मा ने हरदुआगंज स्थित अग्रसेन इंटर कॉलेज के लिए काफी दान दिया है. उन्होंने बताया कि विजय ने कॉलेज में करीब एक करोड़ रुपये की लागत से एक सभागार बनवाया है. बकौल कप्तान सिंह, विजय दान करते रहते हैं और उन्होंने अपने गांव में एक स्कूल भी बनवाया है.

आपको बता दें कि इसी अग्रसेन इंटर कॉलेज में वर्ष 1969 में विजय के पिता बायोलॉजी के टीचर नियुक्त हुए थे और यहीं से वह प्रिंसिपल के पद से रिटायर हुए.

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