मोरबी ब्रिज हादसे का वो कारण जो बनी लोगों की मौत की वजह! IIT के एक्सपर्ट ने बताई ये बात

रोशन जायसवाल

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गुजरात के मोरबी में रविवार को हुए ब्रिज हादसे में मरने वालों की संख्या 134 हो गई है. ये केबल ब्रिज मच्छु नदी पर बना था. रविवार शाम करीब 6.30 बजे ब्रिज अचानक से टूट गया और सैकड़ों लोग नदी में समा गए. वही इस हादसे के बाद ब्रिज को लेकर कई सवाल भी खड़े हो गए. ब्रिज के गिरने के पीछे के कारणों के बारे में IIT-BHU सिविल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञों ने यूपी तक को खास जानकारी दी.

IIT-BHU सिविल इंजीनियरिंग विभाग के शिक्षक और ब्रिज एक्सपर्ट ने पुल पर ओवरलोडिंग और इंजीनियरिंग फेल्योर को एक बड़ी वजह माना है. सिविल इंजीनियरिंग के IIT-BHU के शिक्षक और उनके शोध छात्र सस्पेंशन ब्रिज के गिरने के कारणों को पता लगाने की कोशिश शुरूआती जानकारी और तस्वीरें के माध्यम से कर रहें हैं.

IIT-BHU के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो केके पाठक ने बताया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. इस पुल को झूला पुल कहते है, जिसे 143 साल पहले बनाया गया था और 7 माह बंद रखने के बाद इसे चार दिनों पहले ही खोला गया था. इंट्री होते ही केवल 100 लोगों की क्षमता वाले पुल पर ज्यादा लोगों की इंट्री करा दी गई. लगभग 500 लोगों की इंट्री पुल पर हई थी. उन्होंने बताया कि लोग पुल पर एक जगह खड़े होकर उसे हिला भी रहे थें, जिससे पुल पर इंपेक्ट लोड भी बढ़ गया. हरे रंग के संस्पेंडर केबल ये मेन केबल से सस्पेंशन ब्रिज से लटके रहते है. इन्हीं केबल पर लोडिंग ज्यादा होने की वजह से एक विक संस्पेंडर का लोड दूसरे संस्पेडर पर हो गया और इस साइकलिंक फेल्योर की वजह से एक तरफ के सारे सस्पेंडर टूट गए, जबकि दूसरे तरफ के संस्पेंडर साइकलिक फेल्योर में टूट गया.

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उन्होंने संस्पेंशन ब्रिज की क्षमता के बारे में बताया कि ऐसे पुल की क्षमता उसके संस्पेंडर केबल के मुताबिक इसकी डिजाइन होती है. जिसके लिए IRC ने मानक निर्धारित भी कर रखा है. लेकिन मोरबी पुल ब्रिटिश कोड के मानक के 100 लोगों की क्षमता के अनुसार था. इस ब्रिज को रिहैब किया गया था. यह कोई नया ब्रिज नहीं है. जनता इससे बेखबर भी थी, चूकि ऐसे ब्रिज में लोग एक तरफ से जाकर दूसरी तरफ निकलते रहते हैं. लेकिन इस पुल पर लोग काफी देर तक रूके रह गए और जाम की स्थिति बन गई और ओवरलोडिंग बढ़ती चली गई. जिसपर जंपिंग की वजह से डायनेमिक लोडिंग भी बढ़ गई.

उन्होंने आगे बताया कि इस तरह के पुल की चेकिंग के समय दो चीजों की मु्ख्य रूप से चेकिंग होती है. पहला संस्पेंडर का लोड और दूसरा स्लीपेज. इस केस में हो ये भी सकता है कि कोई केबल स्लीप कर गई हो जिसका लोड दूसरे केबल पर चला गया. तस्वीरों में भी दिखता है कि पुल के टूटने के काफी देर तक वह आक्सीलेशन की वजह से झूलता है. टूटता पुल वाइब्रेशन मोड में चला जाता है. उन्होंने एक बार फिर बताया कि इस पुल के टूटने की वजह ओवरलोडिंग है. जिसको सुधारकर आगे की घटना से बचा जा सकता है.

पुल की डिजाइन के बारे में प्रो केके पाठक ने बताया कि इस पुल को केबल ब्रिज भी कहते हैं। ऐसे पुल पूरी दुनिया में केबल के सहारे ही बनाए जाते हैं। क्योंकि यह सस्ते और आसानी से बन भी जाते हैं. लेकिन इसमें सावधानी जैसे रोजाना चेकिंग होते रहने चाहिए. इसका मेंटेनेंस भी होते रहना चाहिए. हो सकता है कि पुल के किसी सस्पेंडर में जंग लग गया हो. 100 साल पहले जो मेटेरियल लगा आज वह इस्तेमाल नहीं होता है. क्योंकि वह मटेरियल प्रापर्टी अलग थी. उन्होंने आगे बताया कि ऐसे पुल स्टील राड और हाईटेंशन तार से बनता है। इनपर भी मौसम की मार पड़ती है. जिसकी भी चेकिंग होते रहना चाहिए.

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