ज्ञानवापी मामला: हाईकोर्ट ने जवाब नहीं दाखिल करने पर मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर पर लगाया जुर्माना
ज्ञानवापी विवाद से जुड़े मामले में दाखिल याचिकाओं पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से हलफनामा दाखिल न करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ा…
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ज्ञानवापी विवाद से जुड़े मामले में दाखिल याचिकाओं पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से हलफनामा दाखिल न करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है. हाईकोर्ट ने हलफनामा दाखिल न करने पर मिनिस्ट्री आफ कल्चर पर 10 हजार का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने केन्द्र सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 31 अक्टूबर तक की मोहलत दी है.
कोर्ट ने कहा है कि अगर ASI के डायरेक्टर जनरल बीमार हैं तो उनके बाद दूसरे नंबर के अधिकारी की ओर से भी व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल किया जा सकता है.
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी के विवादित परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण को लेकर केंद्र सरकार के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के डायरेक्टर जनरल से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा था. लेकिन तीसरी बार मौका देने के बावजूद एएसआई के डायरेक्टर जनरल आज भी कोर्ट में पेश नहीं हुए.उनकी ओर से हलफनामा भी नहीं दाखिल किया गया. एएसआई के अधिवक्ता की ओर से डायरेक्टर जनरल की बीमारी का हवाला दिया गया. कोर्ट ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई और कहा कि जानबूझकर मामले को टालने के लिए ऐसा किया जा रहा है. कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसा याचियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य किया जा रहा है.
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दरअसल हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी का एएसआई से सर्वेक्षण कराए जाने के मामले में एएसआई के डायरेक्टर जनरल से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा था. कोर्ट ने अब केन्द्र सरकार को 31 अक्टूबर तक हलफनामा दाखिल करने की मोहलत देते हुए 31 अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई करेगी.
बता दें कि ज्ञानवापी विवाद से जुड़ी हुई पांच अर्जियों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है. इनमें से तीन अर्जियों पर 12 सितंबर को ही सुनवाई पूरी हो चुकी है और कोर्ट ने फैसला रिजर्व कर लिया है. जिला कोर्ट वाराणसी द्वारा विवादित परिसर का सर्वेक्षण कराने के आदेश के खिलाफ दाखिल दो अर्जियों पर ही हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही है. इनमें से एक अर्जी ज्ञानवापी मस्जिद की इंतजामिया कमेटी और दूसरी यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से दाखिल की गई है.इलाहाबाद हाईकोर्ट को मुख्य रूप से यही तय करना है कि वाराणसी की जिला अदालत में 1991 में दाखिल किए गए मुकदमे की सुनवाई हो सकती है या नहीं.
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