महाकुंभ में नागा साधु का हठ योग, कड़ाके की ठंड में 61 मटकों के पानी से किया स्नान
प्रयागराज के कुंभ मेले में नागा बाबा प्रमोद गिरी महाराज की अद्वितीय हठयोग साधना. जानिए उनके कठिन तपस्या के 21 दिनों के संकल्प, गुरु की परंपरा, और विश्व कल्याण के लिए किए जा रहे प्रयास.
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प्रयागराज के संगम क्षेत्र में कुंभ मेले की रौनक को और बढ़ाते हुए नागा बाबा प्रमोद गिरी महाराज अपनी हठयोग साधना के लिए प्रसिद्ध हो रहे हैं. राजस्थान से आए ये बाबा पिछले 9 वर्षों से हठयोग कर रहे हैं. उनके शिविर में आने वाले श्रद्धालु, बाबा की कठिन साधना और तपस्या को देखकर चकित हो जाते हैं.

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नागा बाबा प्रमोद गिरी महाराज, श्री श्री 1008 श्री दिगंबर राम गिरि जी महाराज (हांडी कुंडी वाले नागेश्वर बाबा) के शिष्य हैं. बाबा ने अपने गुरु की परंपरा को अपनाते हुए तपस्या को अपने जीवन का आधार बना लिया है. उनकी साधना उनके गुरु की शिक्षाओं और परंपराओं का सजीव उदाहरण है.

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बाबा हर सुबह 4:15 बजे, चाहे ठंड कितनी भी हो, मिट्टी के घड़े में रखे ठंडे गंगाजल से स्नान करते हैं. उनका यह तपस्वी जीवन सर्दियों में ठंडे पानी से स्नान और तपस्या का अद्वितीय उदाहरण है.

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बाबा ने कुंभ मेले में 21 दिनों तक प्रतिदिन बढ़ते घड़ों के पानी से स्नान करने का संकल्प लिया है. हर दूसरे दिन दो घड़े बढ़ाकर यह संख्या 21वें दिन तक 108 तक पहुंच जाएगी. यह अद्वितीय हठयोग दर्शाता है कि वे तपस्या में कितने दृढ़ हैं.

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बाबा के शिविर में रखे घड़ों में गंगाजल शाम 6 से 7 बजे के बीच भर दिया जाता है. यह पानी सुबह तक और अधिक ठंडा हो जाता है. यह कठोर तपस्या बाबा के दृढ़ संकल्प और तपस्वी जीवन को उजागर करती है.

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गर्मी के दिनों में बाबा चारों ओर आग जलाकर उसके बीच में बैठते हैं. यह कठिन साधना उनके अद्वितीय हठयोग का हिस्सा है जो उनके तपस्वी जीवन और मानसिक दृढ़ता को दर्शाती है.

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बाबा का शिविर श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़े के पास सेक्टर 20 में है. उनके शिविर के सामने मिट्टी के घड़े और फूलों से सजा आसन बाबा की तपस्या को दर्शाता है. यह दृश्य श्रद्धालुओं को उनकी साधना की ओर आकर्षित करता है.

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नागा बाबा भारत के कल्याण और विश्व शांति के लिए यह कठिन हठयोग कर रहे हैं. उनका उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ सामाजिक शांति का संदेश देना है.

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बाबा के 21वें दिन की साधना में 108 घड़ों के पानी का उपयोग होगा. यह दिन उनकी तपस्या का चरम और समर्पण का प्रतीक होगा. बाबा की यह साधना कुंभ मेले के इतिहास में एक यादगार घटना बन गई है.