न बिजली, न सड़क, यूपी के इस गांव के लोग नाव से नदी पार कर डालेंगे वोट, पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार भले ही विकास के बड़े-बड़े दावे कर ले, लेकिन हकीकत यह है की प्रदेश में आज भी ढकिया तालुके…
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उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार भले ही विकास के बड़े-बड़े दावे कर ले, लेकिन हकीकत यह है की प्रदेश में आज भी ढकिया तालुके महाराजपुर जैसे गांव बसते हैं. मन में यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर ढकिया तालुके महाराजपुर गांव में ऐसा क्या है? आपको बता दें कि पीलीभीत जिले के कलीनगर तहसील क्षेत्र में शारदा नदी के पार बसे ढकिया तालुके महाराजपुर गांव के 175 परिवार आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए मोहताज हैं. इस गांव में न तो सड़क है, न मोबाईल नेटवर्क है और न ही बिजली. सबसे बड़ी बात तो यह है कि नेता लोग भी यहां वोट मांगने नहीं आते हैं.
बता दें कि उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव बेहद नजदीक है और पीलीभीत जिले में चौथे चरण में मतदान होना है. विडंबना देखिए कि ढकिया तालुके महाराजपुर गांव के सैकड़ों ग्रामीण नाविक को किराया देकर बूथ तक पहुंचेंगे. यहां एक कहावत सटीक बैठती है कि ‘खाया पिया कुछ नहीं और गिलास तोड़ा 12 आने का’. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि ग्रामीण पैसा खर्च कर वोट डालने जाएंगे, सरकार बनाएंगे, लेकिन बदले में उन्हें मिलेगा क्या?
आखिर क्यों नहीं हुआ विकास?
आपको बता दें कि ढकिया तालुके महाराजपुर गांव शारदा नदी के पार स्थित है. गांव तक पहुंचने के शारदा नदी को नाव से पार करके जाना पड़ता है. सालों पहले सरकार ने थारू जनजाति के 45 परिवारों की आबादी को आवासीय पट्टे और कृषि पट्टे आवंटित कर बसाया था, लेकिन बाद में पट्टों को निरस्त कर दिया गया था. इसके बाद गांव वालों को दोबा पट्टे आवंटित नहीं किए गए.
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वन भूमि के क्षेत्र में गांव बसा होने के चलते यहां पक्का निर्माण पर रोक लगी है. बिजली से लेकर सड़कों तक की सुविधाएं गांव तक नहीं पहुंच सकी हैं. गरीबी की मार झेल रहे थारू परिवार जंगल की जमीन पर खेती कर अपना गुजर-बसर करने पर मजबूर हैं. ग्रामीणों का कहना है चुनाव में यहां कोई नेता वोट मांगने नहीं आता है. कभी-कभार आता है तो ‘झूठे वादे’ कर के चला जाता है.
गांव वाले इन परेशानियों का भी करते हैं सामना-
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नदी को पार करने के लिए नाव के ठेकेदार को देना पड़ता है छमाही खर्च.
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वन्यजीवों का झेलना पड़ता है ‘आतंक’.
हर साल बरसात के दौरान नदी में बाढ़ आने पर, गांव बन जाता है टापू.
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गर्भवती महिलाओं को प्रसव से एक सप्ताह पहले ही नदी को पार अस्पताल ले जाना होता है.
रोजमर्रा का सामान लाने के लिए भी ग्रामीणों को नदी पार करनी पड़ती है.
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