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कोरोना से खराब हो गए थे मेरठ के ज्ञान चंद के फेफड़े, डबल लंग ट्रांसप्लांट से यूं बची जान

तेजश्री पुरंदरे

दिल्ली के अस्पताल में पल-पल के लिए सांसों के लिए मोहताज एक शख्स को जीवन देने के लिए अहमदाबाद से मदद मिली. उत्तर भारत में…

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दिल्ली के अस्पताल में पल-पल के लिए सांसों के लिए मोहताज एक शख्स को जीवन देने के लिए अहमदाबाद से मदद मिली. उत्तर भारत में ‘पहली बार’ किसी अस्पताल ने खास मशीनों की मदद से एक व्यक्ति में दोनों फेफड़ों का सफल ट्रांसप्लांट किया है. आपको बता दें कि जिस व्यक्ति के फेफड़ों का सफल ट्रांसप्लांट किया गया है वह उत्तर प्रदेश के मेरठ का रहने वाला है. मेरठ निवासी व्यक्ति के फेफड़े कोरोना संक्रमण के चलते खराब हो गए थे.

पूरे उत्तर भारत में ‘पहली बार’ एक्सटेंडेड एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन (ईसीएमओ) सपोर्ट की मदद से 55 वर्षीय मेरठ निवासी मरीज ज्ञान चंद की डबल लंग ट्रांसप्लांट सर्जरी की गई है. मैक्स हेल्थकेयर में ट्रांसप्लांट सर्जन, पल्मोनोलॉजिस्ट, क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट, कार्डियक एनेस्थेटिस्ट और डॉक्टरों की कार्डियोपल्मोनरी रिहैब की एक कुशल टीम ने इस जटिल ऑपरेशन को अंजाम दिया है.

सबसे बड़ी बात यह है कि मरीज कोरोना से संक्रमित था, बावजूद इसके उसका प्रत्यारोपण सफल हुआ है.

बता दें कि मेरठ के रहने वाले 55 वर्षीय ज्ञान चंद क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से पीड़ित थे. उनके फेफड़े कोविड के कारण क्षतिग्रस्त हो गए थे, वे बहुत अस्थिर थे और बुरी तरह से सड़ रहे थे. उनके जीवन को बचाने का एकमात्र विकल्प फेफड़े का प्रत्यारोपण था. मैक्स अस्पताल, साकेत में उनका मूल्यांकन किया गया और उन्हें डॉ. राहुल चंदोला के नेतृत्व में हृदय फेफड़े के प्रत्यारोपण टीम की ओर से फेफड़े के प्रत्यारोपण के लिए वेटिंग लिस्ट में रखा गया था.

बता दें कि अहमदाबाद में 44 साल के मरीज की ब्रेन हेमरेज से मौत हो गई थी. इसके बाद टीम फेफड़ों को डिलोकेट करने के लिए अहमदाबाद चली गई. रोगी की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए अस्पताल के अधिकारियों की तरफ से उचित व्यवस्था की गई थी और हर कदम सही समय पर उठाया गया था.

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अहमदाबाद में सिविल अस्पताल और हवाई अड्डे के बीच एक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया था और फिर आईजीआई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और दिल्ली के साकेत में मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के बीच अंग को तुरंत लाने के लिए भी ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया था. 3 घंटे में 950 KM की दूरी तय करते हुए, फेफड़ों को बिना किसी गड़बड़ी के ले जाया गया.

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