नोएडा: फर्जी इंटरनेशनल कॉल सेंटर चलाने वाले 10 अरेस्ट, STF ने बताई ठगी की हैरतअंगेज कहानी

संतोष शर्मा

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उत्तर प्रदेश विशेष जांच दल (एसटीएफ) ने विदेशियों के लैपटॉप-कंप्यूटर में वायरस डालने के बाद फिर उसे ठीक कराने के नाम पर 170 करोड़ रुपये से ज्यादा की ठगी करने वाले फर्जी अंतरराष्ट्रीय कॉल सेंटर का खुलासा किया है. बता दें कि इस संबंध में शुक्रवार को 10 लोगों को गिरफ्तार किया.

क्या है पूरा मामला?

उत्तर प्रदेश एसटीएफ के प्रभारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक विशाल विक्रम सिंह ने बताया कि जांच के दौरान पता चला है कि फर्जी दस्तावेज के आधार पर आरोपियों ने अलग-अलग नाम से कंपनियां बना रखी थीं. कॉल सेंटर से विदेशी नागरिकों से संपर्क कर कंप्यूटर-लैपटॉप में वायरस डालकर ठीक करने का झांसा दिया जाता था. तकनीकी सहयोग के नाम पर आरोपी अलग-अलग सॉफ्टवेयर से लैपटॉप-कंप्यूटर को हैक कर लेते थे और विदेशी नागरिकों के ऑनलाइन खाते या क्रेडिट कार्ड की डिटेल चुराकर किराए पर लिए गए विदेशी खातों में रुपये ट्रांसफर कर लेते थे.

आरोपियों ने बताई ये कहानी-

गिरोह के मास्टरमाइंड करन मोहन व विनोद सिंह द्वारा बताया गया कि ‘हमारे अतिरिक्त, धु्रव, मयंक गोगिया, अक्षय मलिक, धीरज कटारिया, शेर सिंह, अविनाश, सावन, विपिन झा, मोहित वंशल, गौरव मलिक, तुषार व तोहीन का टीम में शामिल हैं.

आरोपियों ने बताया, “हम लोगों द्वारा फर्जी व कूटरचित दस्तावेज के माध्यम से Vmak Research And Services Private Limited, Vmak Electricals Private Limited, DMV Marketing & Research Llp, DMV Marketing & Research LLP, VMAK ELECTRICALS PRIVATE LIMITED, MAX VALUE PLUS CAPITAL PRIVATE LIMITED, AMPG TECHNOLOGY PRIVATE LIMITED आदि विभिन्न कंपनियों की आड में फर्जी काल सेंटर खोला गया था.”

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उन्होंने बताया कि फर्जी कॉल सेंटर का नेटवर्क दुनिया के कई देशों में है। आरोपियों ने अमेरिका, कनाडा, लेबनान, ऑस्ट्रेलिया, दुबई से लेकर कई पश्चिमी देशों के लोगों से ठगी की है। नोएडा के कॉल सेंटर में पचास से अधिक लोग रोजाना काम कर रहे थे. बाकी आरोपियों की तलाश की जा रही है.

एसटीएफ अधिकारी ने कहा कि आरोपियों ने बताया कि उनके पास हवाला के माध्यम से भारतीय मुद्रा में नकद आता था. किराए के खाते में डॉलर में पैसे जाते थे. फिर किराए पर खाता मुहैया कराने वाले कमीशन काटकर भारत में रुपये हस्तांतरित कर देते थे.

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वीओआईपी कॉल का मतलब वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल होता है. उन्होंने बताया कि यह व्हाट्सऐप कॉलिंग जैसे काम करता है. इसकी रिकॉर्डिंग नहीं होती है. यह इंटरनेट कॉलिंग है. इसमें कहां से किसे फोन किया जा रहा है, पता नहीं लगता है. कॉल सेंटर से वीओआईपी कॉलिंग का सर्वर लगाकर विदेशियों के लैपटॉप-कंप्यूटर में वायरस डाला जाता था. इसके बाद, तकनीकी सहयोग के नाम पर उन लोगों से संपर्क कर लैपटॉप-कंप्यूटर को रिमोट पर लेकर ऑनलाइन अकाउंट से भारतीय अकाउंट में रकम भेजी जाती थी.

अधिकारी ने बताया कि आरोपियों के पास से 12 मोबाइल, 76 डेस्कटॉप, 81 सीपीयू, 56 वीओआईपी डायलर, 37 क्रेडिट कार्ड समेत अन्य सामग्री बरामद की गई है.

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