बिजनौर: क्रांति की ज्वाला जगाने वाले कवि दुष्यंत कुमार का पैतृक आवास अब बनेगा संग्रहालय

संजीव शर्मा

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‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए. मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए’ इन क्रांतिकारी पंक्तियों का सृजन करने वाले देश के जाने-माने कवि दुष्यंत कुमार का पैतृक आवास अब अध्ययन केंद्र और संग्रहालय में तब्दील किया जाएगा. दअरसल, बिजनौर जिले के राजपुर नवादा गांव में स्थित दुष्यंत कुमार के पैतृक आवास को केंद्र सरकार और जिला प्रशासन की ओर से सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र और संग्रहालय के रूप में विकसित करने की दिशा में तैयारी शुरू हो गई है. इसको लेकर, दुष्यंत कुमार के गांव और परिजनों में भारी खुशी है. परिजनों का कहना है कि यह अच्छा कदम है और इससे दुष्यंत कुमार को अपने जन्मस्थली क्षेत्र में वह पहचान मिलेगी, जिसके वह अभी तक हकदार थे.

बिजनौर के जिलाधिकारी ने बताया,

“प्रसिद्ध गजलकार और कवि दुष्यंत कुमार जी बिजनौर के रहने वाले थे और और उनका पैतृक आवास यहां है. अब भारत सरकार के साथ मिलकर हम उनके पैतृक आवास को सांस्कृतिक पर्यटन केंद्र और संग्रहालय के रूप में विकसित करने के लिए भारत सरकार को डीपीआर भेज रहे हैं. प्रयास है कि दुष्यंत कुमार जी की स्मृतियों को लोगों तक पहुंचाया जा सके और नई पीढ़ी को बताया जा सके कि महान कवि दुष्यंत कुमार बिजनौर जिले में पैदा हुए थे. उनके दोनों बेटों ने आवास को संग्रहालय बनाने के लिए अपनी सहमति दे दी है.”

उमेश मिश्रा, जिलाधिकारी

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आपको बता दें कि प्रसिद्ध कवि और गजलकार दुष्यंत कुमार का बिजनौर की नजीबाबाद तहसील के राजपुर नवादा गांव में 31 सितंबर, 1933 में जन्म हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा इसी गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई थी. यह स्कूल आज भी संचालित है. परिजनों के अनुसार, दुष्यंत कुमार 1972 तक गांव में रहे और बाद में वह अपने परिवार के साथ भोपाल चले गए. इसके बाद उनका यह घर खंडहर में तब्दील हो गया.

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हालांकि, दुष्यंत कुमार के पैतृक गांव में उनके नाम पर एक मुख्य द्वार भी बनाया जा रहा है. इसके अलावा एक पुलिस चौकी का नाम भी दुष्यंत कुमार के नाम पर रखा गया है. अब उनका घर संग्रहालय में परिवर्तित होगा. इसके साथ ही वहां पर एक वाचनालय संग्रहालय और पार्क भी बनाया जाएगा, जिसमें दुष्यंत कुमार की एक प्रतिमा भी लगाई जाएगी.

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